निशा मसीह, लैलूंगा। हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा, यह कहावत तो आप ने भी सुनी होगी कि जो इंसान हिम्मत करता है उसकी मदद भगवान भी करते हैं. ठीक ऐसा ही उदाहरण रायगढ़ जिले के लैलूंगा में देखने को मिला. जहां गरीबी की वजह से एक युवक का बचपन जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गया. कम उम्र में कंधों में आई जिम्मेदारियों की वजह से पढ़ाई भी बीच में छूट गई. किस्मत ने जमकर संघर्ष भी कराया लेकिन युवक ने जरा भी हिम्मत नहीं हारी और आज अपने उसी जज़्बे और जुनून की वजह से वह खुद एक मिसाल बन गया है. जहां परिवार के अलावा पूरे क्षेत्र के नव युवक उसे आदर्श मानने लगे हैं तो बड़े बुजुर्ग उसकी तारीफ करते नहीं थकते.
हम बात कर रहे हैं लैलूंगा के जतरा गांव में रहने वाले रोशन कुमार सिदार की. एक गरीब परिवार में जन्मे रोशन के पिता पेशे से कृषक थे. कम ही उम्र में उसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारी आ गई. पैसों के अभाव और परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से खेलने और पढ़ने की उम्र में उसे खेतों में पिता के साथ काम करना पड़ता था. जैसे-तैसे बारहवीं तक उसने अपनी पढ़ाई पूरी की लेकिन परिवार की माली हालत आगे और पढ़ाई करने की इजाजत नहीं दे रही थी. लिहाजा उसने आगे पढ़ने की बजाय उसने काम करने का फैसला ले लिया. महज 15-16 साल की उम्र जिसमें युवा मन न जाने क्या-क्या सपने संजोता है उस उम्र में वह पिता के साथ मिलकर पूरी खेती-किसानी संभालने लगा.
कहते हैं गरीब की भगवान भी ज्यादा ही परीक्षा लेते हैं, अभी वह खेती किसाने के बारे में ठीक से जाना भी नहीं था कि सर से पिता का साया उठ गया. 18 साल की उम्र में ही उसके ऊपर दोनों बहने और मां की जिम्मेदारी आ गई. गरीबी की वजह से वह खेतों में काम करने के साथ ही घर-घर जाकर मेहनत मजदूरी करने लगा. जहां जैसा काम उसे मिल जाता वह वैसा काम करने लग गया. उसके गांव से कई लोग रोजी रोटी कमाने शहर जाते थे. जहां वे घरों में रंग-रोगन और पुताई का काम किया करते थे. रोशन भी उन लोगों के साथ काम करने शहर जाने लगा. वह भी उनके साथ रंग-रोगन और पुताई का कार्य करने लगा.
गरीबी की मार से जूझ रहे इस युवक ने हौसला नहीं छोड़ा न ही उसने अपने सपनों को दम तोड़ने दिया. उसका सपना दोनों बहनों को पढ़ा-लिखा कर एक काबिल अफसर बनाने का था, उनकी शादी करने के साथ ही अपनी पारिवारिक स्थिति अच्छी करने का था. लेकिन वह जितना कमाता था उससे न तो परिवार का खर्चा चल पा रहा था और न ही उसके सपने उसमें पूरा हो पाते. हर रोज वह इसी उधेड़ बिन में लगे रहता कि आखिर वह ऐसा क्या करे कि उसका ख्वाब पूरे हो जाए और घर की सारी गरीबी दूर हो जाए.
इसी दौरान उसकी मुलाकात ग्रेड 3 में काम करने वाले एक मुंहबोले चाचा से हो गई. जहां उन्होंने उसकी माली हालत देखते हुए उसे लाइवलीहुड कॉलेज में दिए जाने वाले प्रशिक्षण के बारे में बताया. चाचा के बताए अनुसार वह दूसरे दिन ही लाइवलीहुड कालेज पहुंच गया जहां उसने काउंसलर से मुलाकात कर कॉलेज में संचालित सभी ट्रेडों की जानकारी ली. रोशन हैण्डपंप से संबंधित व्यवसाय में प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहता था. लेकिन वह व्यवसाय वहां उपलब्ध न होने की वजह से आखिरकार उसने पेंटर ट्रेड को चुना. 2015 में उसने पेंटर ट्रेड में ढाई महीने तक प्रशिक्षण लिया. ट्रेड में निपुण होने के बाद वह गांव और आस-पास के क्षेत्रों में पेंटिंग का काम करने लगा. जिसके तहत वह रंग-रोगन के साथ-साथ वाल राइटिंग जैसे कार्य करने लगा. गांव के सरपंच और सचिवों की मदद से उसे छोटे-मोटे काम मिलने लगे. इसी दौरान वह सरकारी ठेके का भी कार्य लेने लगा. जिसमें स्वच्छता अभियान के तहत बनाए जाने वाले शौचालय, सरकारी भवन इत्यादि के कार्य करने लगा. देखते ही देखते उसे अच्छी खासी आमदनी होने लगी. घर के खर्चों के साथ-साथ उसने पैसों की बचत करना भी शुरु कर दिया.
गरीबी से बाहर निकलने के ख्वाब को सच करने के लिए उसने उन्हीं बचत किए गए पैसों से एक ट्रैक्टर किराए पर लिया और उससे न सिर्फ अपने खेतों में खेती करने के साथ ही अन्य कार्य भी करने लगा. देखते ही देखते उसने खुद का एक ट्रैक्टर अब खरीद लिया है. ट्रैक्टर खरीदने के बाद उसे भी काम पर लगा दिया है. जहां अब वह ट्रेक्टर की किश्त भरने के बाद 26 हजार रुपए हर महीने कमाने लगा. गरीबी की वजह से उसकी तो पढ़ाई बीच में ही छूट गई थी लेकिन वह अपनी दोनों बहनों को अच्छे से पढ़ा रहा है. एक बहन दसवीं और दूसरी बारहवीं में पढ़ाई कर रही है. अब वह दोनों बहनों को पढ़ा लिखा कर उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाना चाहता है. रोशन ने बताया कि आज वह जिस मुकाम पर पहुंचा है वह सिर्फ लाइवलीहुड कॉलेज की वजह से जिसने उसकी जिंदगी को एक नया मुकाम दे दिया है. जहां वह अपने और परिवार के सारे ख्वाबों को पूरा करने में सक्षम हो गया है.