सुशील सलाम/ अमर मंडल कांकेर- सरकार अंदरूनी इलाके के आखिरी छोर तक विकास पहुंचाने के लाख दांवे करती है लेकिन आज भी ऐसे कई गांव है जहां की जमीनी हकीकत उन तमाम दावों की पोल खोलती है. हम बात कर रहे हैं नारायणपुर और कांकेर जिले के पर्वत-पहाड़ों और घनघोर जंगलों के मध्य बसा बिनागुंडा की. गांव में पहुंचने पर ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसको देखकर कोई यकीन नहीं करेगा. गांव में 26 परिवार निवासरत है और यहां किसी को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के बारे में जानकारी तक नहीं है और न ही अन्य महत्वकांक्षी योजनाओं की.

यहां शासन-प्रशासन ने ग्रामीणों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है. प्रशासन ने बच्चों के बेहतर और उच्च शिक्षा देने के लिए गांव में प्राथमिक स्कूल तो खोल दिया, लेकिन बच्चों को मिलने वाली सुविधाओं से महरूम कर दिया है. शिक्षक की नियुक्ति की है, लेकिन वे आते नहीं है. और न ही कोई अधिकारी मॉनिटरिंग करने आता है. स्कूल भवन भी नहीं है. और बच्चों को मध्यान्ह भोजन भी नहीं मिलता.

इसकी जानकारी उच्च अधिकारियों को हैं लेकिन वे कुछ कार्रवाई नहीं करते. जब ग्रामीणों ने देखा कि उनके बच्चों की भविष्य प्रशासन ने राम भरोसे छोड़ रखी तो स्थानीय ग्रामीणों ने जनसहयोग से बांस और बल्ली के जरिये झोपड़ी का निर्माण किया, ताकि बच्चों को पढ़ने का स्थान मिल सके. साथ ही गांव के स्थानीय युवा को स्कूल में पढ़ाने के लिए प्रेरित किया. ताकि बच्चों की पढ़ाई हो सके.

वर्ष 2013 से निःशुल्क शिक्षा दे रहा मैनू राम

जब ग्रामीणों ने देखा कि प्रशासन बिनागुंडा गांव की उपेक्षा कर रहा है तो बच्चों के भविष्य को लेकर काफी चिंतित हुए. जिससे कक्षा पांचवीं तक शिक्षा प्राप्त किए मैनू राम ने स्कूल के बच्चों को पढ़ाने की ठानी. मैंनू राम बिनागुंडा गांव के प्राथमिक स्कूल में सन 2013 से निःशुल्क शिक्षा दे रहा है. और ऐसी शिक्षा की यहां के बच्चे अन्य स्कूलों के बच्चों से बेहतर और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगे हैं और लिखने लगे हैं. यह सब मैनू राम के सकारात्मक पहल से संभव हो सका है.

शिक्षित युवक मैनू राम नुरेटि का कहना है कि प्रशासन को कई बार इन तमाम असुविधाओं के संबंध में जानकारी दी गई, फिर भी प्रशासन गंभीर नहीं है. और बच्चों का भविष्य अंधकार में जाता देख मुझसे रहा नहीं गया. जिससे मैं स्वयं बच्चों को छह वर्षों से पढ़ा रहा हूं. बच्चों को शिक्षा देकर अपने आप को काफी गौरवांवित महसूस करता हूं.

आजतक अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया

गांव में सभी के पास राशन कार्ड है लेकिन पूरी बस्ती में एक भी शौचालय नहीं है. उज्ज्वला योजना, जनधन योजना सहित केंद्र और राज्य सरकार की अन्य कोई भी योजना इस बस्ती तक नहीं पहुंची है. लोगों के पास वोटर आईडी और आधार कार्ड जरूरी है. लेकिन आजतक अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया. गांव में आजतक बिजली नहीं पहुंची है. जिससे यहां के ग्रामीण आज भी लालटेन युग मे जीने को मजबूर है. यहां के ग्रामीणों को राशन लेने के लिए 50 किलोमीटर दूर कांकेर जिले के छोटेबेठिया आना पड़ता है. बरसात के दिनों में नदी नाले में पानी होने के कारण राशन लेने तक नहीं जा पाते. यहां शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी तमाम सुविधाओं से महरूम है.

भगवान भरोसे होता है इलाज

गांव में किसी की तबियत खराब हो जाये तो मरीज को खाट में लादकर पथरीली और पगडंडियों के सहारे 50 किलोमिटर दूर करीबन तीन घण्टे का सफर तय कर छोटेबेठिया या पखांजूऱ अस्पताल लाया जाता है. या गांव में जड़ी बूटी के जरिये उपचार किया जाता है.

सरकारी योजना मुहैया कराने व्यवस्था की जाएगी

नारायणपुर जिले के कलेक्टर टीएस एल्मा ने कहा कि अंदरूनी क्षेत्र होने के कारण वहां समस्याएं हैं. उस गांव के लोगों के लिए सरकारी योजनाएं मुहैया कराने व्यवस्था की जाएगी. सगांव के स्कूल में पढ़ाने वाले युवक के लिए वेतन की व्यवस्था की जाएगी.