रायपुर. छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पी.एल.पुनिया ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज विशेष रुप से आपको अवगत कराना चाहते हैं कि SC-ST एक्ट के ऊपर जो 20 मार्च को जजमेंट हुआ था और उसको लेकर 2 अप्रैल को भारत बंद का आहवान कुछ संगठनों ने किया। हर व्यक्ति, हर संगठन उस बंद के समर्थक बने और दलित समाज ने एकता का परिचय दिया, ये भी अपनी जगह सही हैं कि उसमें वायलेंस हुआ, ये भी अपनी जगह सही है कि जो भारत बंद में संलिप्त हुए थे, उन्हीं लोगों पर ज्यादा हमला हुआ और कुछ जानें भी गई। वायलेंस किसी भी तरह से हो उसकी निंदा की जानी चाहिए और यह चिंता की बात है। इसलिए जब उपवास रखा, उपवास का आहवान किया गया 9 अप्रैल को, ये विशेष रुप से लोगों से कहने के लिए कि अपनी मांगें हो सकती हैं, लेकिन हिंसा की कोई गुंजाईश उसमें नहीं है। हम महात्मा गाँधी  के बताए गए रास्ते पर चलने वाले लोग हैं, पार्टी हैं और कानून को अपने हाथ में लेने का किसी को अधिकार नहीं है।

भारत का संविधान हमारे लिए सबकुछ हैं, डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का बनाया हुआ संविधान वो हम लोगों के लिए एक रक्षा कवच के रुप में भी है और एक मार्गदर्शक भी है। इसको लेकर सरकार ने अनेक दावे किए, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री जी भी इस सीमा तक गए कि हम किसी भी सूरत में SC-ST एक्ट को कमजोर नहीं होने देंगे और ऑर्डिनेंस तक लाने की बात कही गई। इसका प्रभाव अभी दिखाई देने लगा है। प्रधानमंत्री जी भले ही कुछ कहें लेकिन छत्तीसगढ़ में प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के अनुसार ये आदेश जारी किया है कि एफ.आई.आर दर्ज नहीं की जाएगी जब तक कि उसकी प्रारंभिक रिपोर्ट (preliminary report) नहीं हो जाएगी। गिरफ्तारी नहीं होगी जब तक कि अपोयटिंग अथोर्टी की अनुमति ना मिल जाए और सरकारी, गैर-सरकारी लोगों के लिए एस.एस.पी की अनुमति ना मिल जाए और अनुमति लेने वक्त उन्हें अपने कारण भी रिकोर्ड़ करने होंगे। जमानत के बारे में भी हालांकि ये Non Cognizable offence है एक्ट का, उसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार ने डीजीपी ऑफिस से जो आदेश जारी हुए, उसमें स्पष्ट लिखा है कि Anticipatory bail, There is no absolute ban on anticipatory bail. दी जा सकती है, ये आदेश जारी किया और उसके साथ-साथ ये भी कहा है कि इनका सख्ती से पालन किया जाए और इसमें कोई यदि ढील हुई तो उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही की जाएगी, अपने जो सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस और सभी नीचे के अधिकारी हैं, उनके लिए ये निर्देश जारी किए हैं।

एक तरफ ये सरकार कहती है कि हम किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। प्रधानमंत्री जी ने तो कहा कि आज तक किसी सरकार ने इतना नहीं किया, जितना उन्होंने किया है। हमें लग रहा है इतना कहीं नहीं किया, क्योंकि अपना वायदा करके, झूठ बोलकर फिर भी एक तरफ कहते हैं कि कानून को हम कमजोर नहीं होने देंगे और दूसरी तरफ राज्य सरकारें जो हैं, जो भाजपा की सरकारें हैं, उनसे कहा गया है उनके हिसाब से कार्यवाही करो, कोई ढिलाई नहीं होनी चाहिए। ये छत्तीसगढ़ सरकार ने किया है। अब सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि अन्य राज्य भी करेंगे। हमने राज्यों की तरफ से, वो प्रतिक्षा होनी चाहिए और आज हकीकत है दलित समाज की रिपोर्ट थानों में लिखी नहीं जा रही है। एक अपराध के लिए दो कानून हैं। एक अनुसूचित जाति के कंपेलनर हैं, वो कहेंगे कि आपकी दर्खास्त आएगी तो हम जांच करेंगे और अन्य लोगों के लिए नियम है, FIR, इसका मतलब है कि First Information Report, जो रिपोर्ट पहले आई, उसके कंटेट के हिसाब से, जो क्रिमिनल कंटेट हैं, उसके हिसाब से FIR दर्ज हो जाएगी। ये सामान्य काम है। लेकिन यहाँ पर जो दलित समाज की जो दर्खास्त आएगी, उसकी पहले जांच कराई जाएगी। एक सब इंस्पेक्टर अब दूसरे अपराधों में एक सब इंस्पेक्टर – इंस्पेक्टर को गिरफ्तारी कर सकता है, लेकिन इसमें गिरफ्तारी नहीं कर सकता, हालांकि डिप्टी एसपी रेंक के अधिकारी जांच ऑफिसर होते हैं, POA एक्ट में, लेकिन उनको इसके बावजूद एसएसपी की ईजाजत लेनी पड़ेगी, ये कानून आज दूसरा है।

अनेकों वायदे किए, सबसे पहले कहा कि हम तो पार्टी ही नहीं थे इसमें, सेंट्रल गवर्मेंट पार्टी ही नहीं थी, कितना बड़ा झूठ है। 20 नवंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया था और महाराष्ट्र सरकार को भी किया और सेंट्रल गवर्मेंट को भी किया और अटोर्नी जनरल के लिए कहा कि आप असिस्ट करें। जब सुनवाई होती है तो अटोर्नी जनरल नहीं आते हैं, सॉलिसिटर जनरल नहीं आते हैं, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल आते हैं और वो जो बयान करते हैं, अपना तथ्य सामने रखते हैं, सुप्रीम कोर्ट के सामने, उसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय किया और जब ये रिव्यू के लिए गए तो इन्होंने कहा ये तो राष्ट्र का अहित हो गया, ये राष्ट्रहित में नहीं है जजमेंट, जब ये सरकार की तरफ से कहा गया तो बेंच ने कहा कि आपने ही तो कहा था कि इसका दुरुपयोग होता है, आपके कहने से ही तो हमने ये आदेश किया। तो इनकी कथनी और करनी में कितना फर्क है। एक तरफ कहते हैं कि SC-ST एक्ट का दुरुपयोग होता है और दूसरी तरफ कहते हैं कि हम इसको कमजोर कतई नहीं होने देंगे और इन्होंने कहा कि रिव्यू हमने तत्काल दाखिल कर दी।

आप देखें हर एक के बयान, थावर चंद गहलोत जी ने कुछ दिन के बाद जरुर कहा कि इसमें रिव्यू पेटिशन फाईल करें, लेकिन उनकी मिनिस्ट्री तो इसको नहीं देखती। लॉ मिनिस्ट्री ने जब 2 तारीख का भारत बंद था, उससे एक दिन पहले ये कहा कि लॉ मिनिस्ट्री इसको एग्जामिन कर रहे हैं, रिव्यू पेटिशन फाईल करना डिजायरेबल है कि नहीं है। अब मीडिया के माध्यम से ये पूरा मामला सामने आया है कि अब डिजायरेबलिटी ध्यान इनका है, अगर 2 तारीख से पहले सरकार की तरफ से या प्रधानमंत्री जी की तरफ से स्पष्ट रुप से कहा होता कि हम इस कानून में जो डॉयल्यूशन हुआ है SC-ST एक्ट का, इसको निष्प्रभाव करने के लिए कार्यवाही करेंगे, हर हालत में किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। तो आज रिव्यू पेटिशन फाईल करके निश्चिंत हो गए और ये भी मालूम है कि रिव्यू पेटिशन उन्हीं जजों के पास जाता है, जिन्होंने सुनवाई की है, तो इसका क्या भविष्य होगा, हम सुप्रीम कोर्ट के ऊपर छोड़ते हैं। उसके ऊपर टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन उसी समय हम लोगों ने ये मांग रखी थी कि लेजिस्लेटिव इंटरवेंशन इसमें होना चाहिए। संसद का सत्र चल रहा था और संसद के सत्र के दौरान हमने कहा कि इसके ऊपर आप बिल लेकर आईए, लोकसभा-राज्यसभा में पास कराईए। राज्यसभा में पहले लाते तो वहाँ से हम पास कराएंगे और फिर लोकसभा में ले जाईए, लेकिन उसके बारे में मौन हैं। पूरी तरह से मौन हैं।

आज जो इस तरीके से जगह-जगह पर इसको इम्पलिमेंट हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट पर इम्पलिमेंट होना चाहिए। लेकिन जो सरकार कर सकती थी, वो सरकार ने नहीं किया और दलित समाज के साथ ये धोखा किया कि एक तरफ आप ये कहते रहिए कि हम आपको कुछ नहीं होने देंगे और दूसरी तरफ सख्ती से आदेश भी जारी करने के बाद ये लोग ऐसा करते हैं। फिर ये कहा कि साहब ये तो हम ही हैं कि हमने इस एक्ट को और मजबूत बनाया, 2015 का बिल लेकर आए। क्या ये सबको नहीं मालूम है कि इस एक्ट को मजबूत करने के लिए ये भी मैं बताना चाहूंगा कि दुरुपयोग की शिकायत सुप्रीम कोर्ट में गई और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने उसकी पुष्टी की। लेकिन अपनी जगह एक हकीकत है कि FIR संभाल कर नहीं लिखी जाती है और उसकी जांच में विलंब होता है, जांच में कमी रह जाती है, ट्रायल में सही काम नहीं होता और इसी वजह से अपराधी छूट जाते हैं। ये तो हमारी शिकायत थी कि इसकी व्यवस्था को ठीक किया जाए, इसको मजबूत किया जाए। उसको मजबूत करने के लिए जब ये फरवरी, 2014 जब यूपीए की सरकार थी, कुमारी शैलजा जी Social Justice and Empowerment Minister थीं, उस समय ऑर्डिनेंस जारी किया, फरवरी, 2014 में और उसी को ऑर्डिनेंस को एक्ट में लाया 2015 में, उसमें अमेंडमेंट हुआ। उसमें ऑर्डिनेंस से क्या मजबूत किया होता तो बता सकते, लेकिन फूल स्टॉप (.), कोमा (,) तक परिवर्तन नहीं हुआ। हूबहू जो जारी हुआ था, वही का वही एक्ट में बिल में पास हुआ।

तो ये पूरी तरह से गलत बयानी करते हैं। हर मंत्री, प्रधानमंत्री कहते हैं, कानून मंत्री कहते हैं, इनके बाकी प्रवक्ता बार-बार कहते हैं कि हम पर कैसे आरोप लग सकता है कि हमने तो मजबूत करने का काम किया, मजबूत करने के पीछे की कहानी ये है। ये हम नहीं कह रहे हैं, कांग्रेस पार्टी नहीं कह रही है, विपक्ष नहीं कह रहा है। उनके अपने सांसद उदित राज जी हैं, फिर बहराई से सावित्रीबाई फूले हैं, यहाँ बिजनौर नगीना से यशवंत सिंह जी हैं, इटावा से अशोक दोहरे हैं, सोनभद्र से छोटेलाल खरवार हैं, इन सबने कहा है कि 4 साल में किया क्या? एक कोई काम दिखा दें जो दलित समाज के भले के लिए किया हो और दूसरी तरफ अनेक ऐसे उदाहरण हैं जो दलित समाज का अहित करने का काम इन लोगों ने किया है। शेड्यूल कॉस्ट सब प्लॉन, ट्राईबल सब प्लॉन जिस तरह से इन्होंने वापस लिया, अभी जो UGC की गाईड लाईन जारी हुई हैं, उससे आरक्षण खत्म हो गया, एजूकेशन संस्थाओं में, यूनिवर्सिटी में आरक्षण पूरी तरह से खत्म हो गया। जो अपराथ हो रहे हैं, निरंतर अपराध हो रहे हैं और खास तौर से जो बीजेपी शासित राज्य हैं, उनमें सबसे ज्यादा अपराध की दर भी और उसकी संख्या भी ज्यादा है और उसकी पेरवी में कमी रहते हुए सबसे कम कनविक्शन रेट भी आया है। तो ये वास्तव में इनका माईंड सेट है, जो दलित समाज को इनसे अलग करता है और इनके अपने सांसद भी उसकी पुष्टि करते हैं।

कांग्रेस पार्टी ही 1989 में ऑरिजनल बिल लेकर आई और 2014 में ऑर्डिनेंस लेकर आई और जब ये सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी जी के नेतृत्व में कई विपक्षी दलों के साथ सबसे पहले 27 मार्च को राष्ट्रपति जी को ज्ञापन दिया कि इसमें हस्तक्षेप होना चाहिए, इसमें लेसलिटेट इंटरवेंशन भी होना चाहिए, रिव्य़ू के साथ-साथ और राष्ट्रपति जी ने कहा कि इसमें अवश्य होना चाहिए। तो ये हम आपको बताना आवश्यक समझते हैं कि इनको जो दोहरी नीति रहती है, कथनी-करनी में जो फर्क है, वास्तव में दलित विरोधी मानसिकता है, वो आपके सामने उजागर करना आवश्यक है।

एक प्रश्न के उत्तर में पुनिया ने कहा कि छत्तीसगढ़ से शुरु हुआ। छत्तीसगढ़ ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को तत्काल लागू करने के लिए आदेश जारी किए हैं। वे आदेश आपको उपलब्ध हैं। दूसरा अनेक ऐसे शिकायतें आई हैं, भारतीय मूल निवासी संगठन के लोग वो आज मिले थे और उन्होंने कहा, इन्होंने फोटो ग्राफ भी दिए हैं कि भारत बंद के दौरान अपना ज्ञापन दिया, मजिस्ट्रेट को ज्ञापन दिया, शांतिपूर्ण ढंग से दिया क्योंकि ज्ञापन में मेरठ में, क्योंकि ज्ञापन में उनके नाम थे, तो जो नाम थे उनको लेकर वारंट जारी कर दिया और उनके घर पर छापे ड़ल रहे हैं और हर थाने में, मैं दावे के साथ कह सकता हूं, हापुड़ है, मेरठ है, मुज्जफरनगर है, सहारनपुर है, बहुत सारे महिला और युवा उनको थाने में बुलाया गया है कि आप उस बंद में शामिल थे। आपके खिलाफ कार्यवाही होगी। ये तत्काल जो समाज को प्रभावित करने वाले ये घटनाएं हुई हैं। इसलिए आपके सामने रखी हैँ।

एक अन्य प्रश्न पर कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जो आदेश जारी किया है, क्या कहेंगे, पुनिया ने कहा कि मैंने आपको बताया कि अभी छत्तीसगढ़ सरकार का आदेश है और बाकि राज्यों में भी इस तरह से होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। लेकिन जो केंद्र सरकार कर सकती थी, उन्होंने क्यों नहीं किया? आप रिव्यू पेटिशन फाईल करके घर बैठ गई, आपके पास ऑर्डिनेंस का रास्ता है, उसमें विलंब करने की कोई गुंजाईश नहीं थी। प्रधानमंत्री जी ने खुद वायदा किया, लेकिन आदेश इसी तरह से नीचे-नीचे जारी करते रहेंगे और दलित समाज के हकों को छीना जाएगा जो वायदे कर रहे थे जगह-जगह जाकर, 13 तारीख को यहाँ पर अलीपुर वहाँ मैमोरियल में, छत्तीसगढ़ में जाकर बोले हैं, तो प्रधानमंत्री बोलें तो सोच-समझ कर बोलें, जो करना है वही बोले, लेकिन उनके लिए तो ये बहुत दूर की बात है।

एक अन्य प्रश्न पर कि आज NIA की अदालत ने मक्का मस्जिद बम धमाके के सभी आरोपियों को बरी कर दिया है, भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस व कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी द्वारा भगवा आतंकवाद का आरोप लगाया गया था, इसके उत्तर में श्री पुनिया ने कहा कि आज NIA की अदालत ने साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी किया है। इससे पहले पिछले महिने अदालत ने आश्र्चर्य जाहिर किया था कि आरोपी का इकबालिया बयान अचानक कैसे गायब हो गया? इसी से संबंधित एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि सरकारी वकील ने आरोप लगाया था कि उनके ऊपर आरोपियों के साथ नरमी बरतने का दबाव था। अब देखना यह है कि सरकार इसके बाद क्या कदम उठाती है। कांग्रेस पार्टी का मानना है कि आतंक का कोई मजहब अथवा धर्म नहीं होता। आतंकवाद से हर सूरत में सख्ती से निपटा जाना चाहिए और कांग्रेस ने आतंक के हर प्रयास को सफलता से समय रहते समाप्त किया। फिर भी पार्टी की ओर से विस्तृत प्रतिक्रिया फैसले की पूरी जानकारी और अध्ययन करके ही कर पाएंगे।

एक अन्य प्रश्न पर कि उन्नाव-कठुआ की घटना के बाद अब हरियाणा में रेप की जघन घटना सामने आई है, श्री पुनिया ने कहा कि कठुआ, जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी की सरकार है। उन्नाव, उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है, हरियाणा में आज घटना हुई है, भाजपा की सरकार है। ये दिखाता है, कहने को भले ही कह दें, उत्तर प्रदेश में और बाकि जगह कि वो लॉ एंड ऑर्डर लागू करने के लिए बहुत सख्ती से कार्यवाही कर रहे हैं, लेकिन अपराध बढ़ रहे हैं, महिलाओं पर अपराध बढ़ रहे हैं, मासूम बच्चियों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है, उनके साथ सामूहिक बलात्कार हो रहे हैं, ये तो बहुत शर्म की बात है। प्रधानमंत्री जी बहुत दबाव बनता है, तब भले ही थोड़ा बहुत कह दें, लेकिन इसके ऊपर मुखर होकर जो प्रधानमंत्री जी से अपेक्षा है, बोलना चाहिए, वो तो नहीं बोलते हैं। कोई कार्यवाही होती दिखाई नहीं दे रही है।