डिफाल्टर की सिफारिश में फंसे नेताजी

सत्ताधारी दल से हैं तो क्या हुआ… ओहदेदार नेता हैं तो क्या हुआ… कभी-कभी ऐसा पांसा भी पड़ जाता है कि ये सब का सब धरा रह जाता है। ये ऐसा वाकया है, जिसके बाद बीजेपी के आला दर्जे के नेता को एहसास हो गया कि उनकी सिफारिश फिज़ूल है। मामला भोपाल के एक थाने से जुड़ा है, जहां नेताजी किसी डिफाल्टर की शिकायत पर कार्यवाही के लिए दबाव बना रहे थे। 20 से ज्यादा मोबाइल कॉल मिस्ड हुए तो बीजेपी नेता ने तेवर बदले और तमतमाकर शिकायत पर गिरफ्तारी की कार्यवाही करने के निर्देश दे दिए।टीआई ने नेता को समझाने की काफी कोशिश की। जब नहीं माने तो एक और बड़ी हकीकत बयां करनी पड़ी और कहा कि आपसे ऊपर का फोन आ गया है। जिस जगह से फोन आना बताया गया तो नेताजी ने चुप रहकर कल्टी करने में भलाई समझी। मामला दो कारोबारियों के बीच विवाद का था। डिफाल्टर कारोबारी ने दूसरे की शिकायत कर दी और गिरफ्तारी के लिए नेताजी के दरबार में दस्तक दे दी थी। लेकिन नेताजी को पता लग गया कि दूसरे कारोबारी को बचाने वाला बड़ा तुर्रम है।

केंद्रीय मंत्री के हवन करते हाथ जले

ग्वालियर अंचल में पिछले दिनों पड़े आयकर छापों के बाद एक दिग्गज नेता ने दखल किया तो ‘होम करते हाथ जले’ वाली कहावत फिर चरितार्थ हो गई। फोन करने से फर्क कुछ नहीं हुआ लेकिन नेताजी सीधे दिल्ली की टॉप लीडरशिप की निगाह में ज़रूर आ गए हैं। दरअसल, छापेमारी के बाद नेताजी ने एक आईआरएस को फोन लगाया था। कोशिश इस बात की थी कि मामले की तह पता लगेगी और फोन के बाद कार्यवाही कमजोर पड़ जाए। आपको यह भी बताते चलें कि छापेमारी दस्ते के हाथ यह जानकारी लग गई कि एमपी के कई अफसरों की ब्लैक मनी यहां लगी हुई है। अफसरों को अब दिग्गज नेता से उम्मीद थी सो दिल्ली की ताकत का एहसास कराते हुए तुरंत आईआरएस को फोन लगा दिया। नेताजी को पता यह लगा कि जिन आईआरएस का फोन मिलाया गया है वही इस छापेमारी के सूत्रधार हैं, और ये कार्यवाही सीधे पीएमओ के आदेश पर की गई है। इसमें दखल देने वाले की जानकारी पीएमओ में देना आवश्यक है। नेताजी के हाथ पैर अब भी फूले हुए हैं। यह सीक्रेट भी बताते चलते हैं कि नेताजी का नाता भी ग्वालियर अंचल से ही है।

निकाय रिजल्ट से अफसर भी खुश

इस खुशी का अफसरों के बीजेपी-कांग्रेस से लगाव का कोई वास्ता नहीं है। शुद्ध रूप से प्रशासनिक कुर्सी का मामला है। ऐसे अफसर जो फील्ड पोस्टिंग की चाहत रखते हैं, उन्हें निकाय चुनाव के रिजल्ट ने उम्मीद की नई किरण दिखला दी है। दरअसल, ऐसे इलाकों से भी बीजेपी हार गई है, जहां सीएमओ के चहेते अफसरों की पोस्टिंग है। आने वाले दिनों में प्रशासनिक सर्जरी तय है, तो उम्मीद लगाई जा रही है कि प्रशासनिक मरम्मत में ये सारी कुर्सियां भी खाली हो जाएंगी। लिहाजा अब लूप लाइन में बैठे अफसरों और फील्ड पोस्टिंग की मंशा रखने वाले अफसरों ने सक्रियता बढ़ा दी है। चुनाव से पहले फील्ड पोस्टिंग मिल गई तो वारे-न्यारे हो सकते हैं। इसके लिए अपने पुरानी प्रोफाइल में किए गए कामों को जिम्मेदार लोगों तक पहुंचाने का सिलसिला शुरू हो गया है।

मानसूनी सत्र से अफसरों की बल्ले-बल्ले

मानसून सत्र आगे बढ़ा दिया गया है। लोकतंत्र के मंदिर के पुजारियों ने हाहाकार मचाना शुरू कर दिया कि इतनी लेटलतीफी ठीक नहीं। इस नाराज़गी भरे आलम में मानसून सत्र का आगे बढ़ने एक वर्ग को प्रसन्न कर गया। यह वर्ग है अफसरों का। खास तौर पर वे आला अफसर जिनके महकमे के सवाल यदि विधानसभा पहुंच जाएं तो पूरी एक चेन उलझ सकती है और महकमे के काले-चिट्ठे सदन के जरिए बाहर आ सकते हैं। अब इन अफसरों ने चुनाव की गहमागहमी के बाद निचले स्तर के अफसरों को विधानसभा भेजना शुरू कर दिया है। कोशिश की जा रही है कि उलझाने वाले सवाल ‘अग्राह्य’ यानी ‘पूछे जाने योग्य नहीं’ घोषित कर दिए जाएं। इन दिनों मंत्रालय और विभागाध्यक्षों के खासमखास अफसर अलग-अलग टीमों में विधानसभा परिसर में चहल-कदमी करते दिखाई दे जाएं तो आने की वजह मत पूछिएगा। बल्कि यह जानने की कोशिश कीजिएगा कि विधानसभा में महकमे का कौन सा सवाल लगा है ? 

हार कर भी मुस्कुराने वाले तब उबल पड़े

मालवा के एक विधायक हारने के बाद भी मुस्कुराते हुए दिखाई दे रहे हैं। वे हर किसी से हाथ जोड़कर चिरपरिचित मुस्कान के साथ ही मिल रहे हैं। हालांकि मिलने वाला विधायक के सामने सहानुभूति प्रदर्शित करने की कोशिश करता है। लेकिन विधायक यह जतलाने की कोशिश करते हैं कि वे हार के लिए तैयार हैं। विधानसभा में राष्ट्रपति चुनाव के लिए जब एक सज्जन ने उनसे ‘बेटर लक नेक्स्ट टाइम’ कहा तो विधायक ने यही तरीका अपनाया। लेकिन वोट डालने के बाद जब वे अपने दल के कक्ष में पहुंचे तो अपने ही जिले के दूसरे दिग्गज विधायक को पाकर कुलबुलाहट बाहर आ गई। इतना उबले की नौबत तू-तू मैं-मैं तक पहुंच गई। आसपास खड़े विधायक उस तू-तू मैं-मैं के साक्षी बन गए। हारे हुए विधायक ने सवाल दागा कि तूने खुद के विधानसभा क्षेत्र भी मुझे हरवाया। सामने खड़े विधायक ने जवाब दिया – तू अपनी विधानसभा देख, वो भी तो तू हार गया। सुना है मामला खत्म नहीं हुआ है, उबाल रह-रहकर आ रहा है। आने वाले दिनों में जब सियासत गर्म होती तो कुछ उटपटांग नहीं हो जाए।

दुमछल्ला…

सियासी गलियारों में इस बात के काफी मायने निकाले जा रहे हैं कि दिग्गज अपने इलाके में कितने कामयाब रहे। बात निकाय चुनाव के रिजल्ट की हो रही है। निकाय चुनाव में सभी दिग्गजों का सीधे हस्तक्षेप का अधिकार और जिताने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस में चंद ही कामयाब रहे हैं। कुछ ने अपने इलाके में शुरूआत से ही निर्विरोध नतीजे देकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया था, तो कुछ ने पर्दे के पीछे रहकर चाणक्य चालें चली और कमजोर कही जाने वाली सीट पर पार्टी को जीत दिलवाई। ऐसे दिग्गजों के नाम खोजिए और भविष्य की सियासत पर चर्चा शुरू कर दीजिए।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus