अभिषेक अवस्थी, सिरोंज (विदिशा)। मध्य प्रदेश के सिरोंज में होली के दूसरे दिन विजय ध्वज (निशान)उत्सव मनाया जाता है। जिसे कलगी तुर्रा कहा जाता है। इसमें बाजार में बड़े-बड़े झंडे, ताशे, धूंशा, नगाड़े, ढपली जुलूस के रूप में निकाले जाते है। करीब 200 साल पहले सिरोंज के विद्वानों ने काशी के विद्वानों से शास्त्रार्थ पर विजय प्राप्त की थी।
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करीब 200 साल पहले काशी के विद्वानों का सिरोंज के विद्वानों से शास्त्रार्थ हुआ था। तीन साल तक काशी के विद्वान सिरोंज आए और शास्त्रार्थ किया। जिसमें सिरोंज के विद्वान जीत गए। तभी से विजय निशान उत्सव मनाया जा रहा है। पं.नलिनीकांत शर्मा ने बताया कि तिवारी परिवार रावजी पथ, ज्योतिषी परिवार गणेश की अथाई के उनके पूर्वज ओर शुक्ल परिवार के विद्वानों ने शास्त्रार्थ में काशी के विद्वानों को परास्त किया था।
कलगी (शक्ति) बड़ी या तुर्रा (ब्रह्म) , ज्योतिष जैसे विषयों पर यह शास्त्रार्थ हुआ था। तब काशी के विद्वानों ने पुरस्कार स्वरूप अपने झंडे, ताशे, नगाड़े, ढपली सिरोंज के विद्वानों को सौंप दिए। वह होली का दूसरा दिन(दोज का दिन) था। तभी से होली के दूसरे दिन रात में बड़े-बड़े झंडे विजय स्मृति के रूप में निकालने की यह परंपरा प्रारंभ हुई। इसी के साथ कलगी तुर्रा गायन भी किया जाता है।
जिसमें एक पक्ष शक्ति (कलगी) को बड़ा बताता है और दूसरा पक्ष तुर्रा (ब्रह्म) को बड़ा बताता है। यह उत्सव सम्पूर्ण भारत में सिर्फ सिरोंज में ही मनाया जाता है। विधायक उमाकान्त शर्मा ने कहा प्राचीन समय मे ज्ञानी पंडित लोग एक जगह से दूसरी जगह जाकर शास्त्रार्थ करते थे। यह उत्सव उसी की निशानी है।
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