पुरुषोत्तम पात्रा, गरियाबंद। जिले के 14 बुनकर सहकारी समितियों में 5 साल पहले तक 654 बुनकर अपने परम्परागत कार्य मे लगे हुए थे, सुविधा व बढ़ते महंगाई के अनुपात में मेहनताना नहीं मिला तो आज इनकी संख्या घट कर आधी हो गई. काम पर जमे उम्रदराज बुनकरों का कहना है कि दूसरा काम नहीं कर सके इसलिए मजबूरी में इसे कर रहे. कई नौजवान मजदूरी कर अपने जीवन बसर कर रहे हैं. कई तो रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेश पलायन तक कर चुके हैं.

राज्य के अस्तित्व में आने के बाद हथकरघा जैसे परपरागत कार्यों को बढ़ावा देने भले ही छतीसगढ़ हथकरघा बोर्ड का गठन हुआ हो पर जिले के बुनकरों की अनदेखी के कारण आज यह परिवार हाशिये पर चला गया है. ताना बाना के सहारे जीवन गढ़ने की उम्मीद लगाए बुनकर, आज इसी ताना बाना में ही उलझ कर रह गए है.

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हथकरघा विभाग के प्रभारी सहायक संचालक एल डी निपजे द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, जिले के 14 बुनकर समितियों में आज भी 537 बुनकर काम कर रहे हैं. उनका दावा है कि इन सभी को पर्याप्त काम उपलब्ध कराया गया है. निपजे ने कहा कि जो लगन व मेहनत से काम कर रहे है उन्हें पर्याप्त मजदूरी भी उपलब्ध हो रही है. ये भी कहा कि जो छोड़ चुके है, उन्हें जबरिया काम नही करा सकते हैं.

जिले भर के 14 में से मैनपुर व गरियाबन्द के दो समितियों को छोड़कर हमने देवभोग इलाके में मौजूद 12 समितियों में से ग्राउंड रिपोर्ट लेने सबसे बड़ी समिति मूंगझर के अलावा गिरशूल, सिनापाली, सागुनभाड़ी, उरमाल व कुम्हडाई कला पहुंचे. जो बातें सामने आई है उससे यहां बुनकरों की माली हालत का सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं.

15 वर्षो में 7 रुपये इजाफा किया मजदूरी दर में

राज्य छतीसगढ़ हथकरघा विभाग एपेक्स बैंक के माध्यम से इस इलाके में समितियों का संचालन करवाती है. यहां के बुनकरों को ज्यादातर गणवेश शर्ट, कपड़ा बुनने ही पोलिस्टर धागा का उपलब्ध कराती है. बुनकर माखन कश्यप ने बताया कि 2003 में प्रति मीटर बुनाई का 17 रुपये मिलता था, 2015 में 20 रुपये व 2018 में 24 रुपये 20 पैसे किया गया. 64 वर्षीय माखन के मुताबिक जिस अनुपात में महंगाई बढ़ा, उस अनुपात में मजदूरी राशि नहीं मिली, बुजुर्ग है इसलिए महीने में 200 मीटर बुन सकते है, अन्य मजदूर अधिकतम 250 मीटर तक बुनते है.

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बुनकर के इस मेहनत के पीछे परिवार के महिला सदस्यों का भी हाथ होता है, क्योंकि धागे का जो कोन दिया जाता है, उस कोन को चरखे से कात कर बाइबिंग में धागा गुथने का काम महिलाएं करती है, इसी बाइबिंग में गुथे धागे को ही फ्रेम में लाकर ताना बनाना होता है, तब जाकर बाना के साथ बुनाई का काम शुरू हो पाता है. 20 किलो धागे के कोन को बुनाई लायक धागे बनाने में 7 से 10 दिन का समय लगता है. महीना अधिकतम 5 से 7 हजार रुपये कमाई होता है, जिससे घर चलने में दिक्कत होती है.

राजमिस्त्री, दर्जी,पशु पालक बन गए बुनकर

मूंगझर में 120 से भी ज्यादा परिवार बुनकरों के है, लेकिन अब केवल 40 से 50 लोग इस काम मे जुड़े है. इसी तरह गिरशूल में 55 में से 23, मोखागुड़ा में 60 में से 25, सागुनभड़ी में 22 में से 9, उरमाल में 35 में से 12 परिवार ही बुनकर का काम कर रहे है. मूंगझर का अभिराम कश्यप बकरी पालन कर रहा, बोइरगुड़ा का देवी सिंह कश्यप दर्जी का काम कर रहा है, गिरशूल के मोहनेश्वर कश्यप भुवेंद्र सिंह भी दर्जी के पेशे से गुजारा कर रहे. पोषणलाल कश्यप बतौर राजमिस्त्री काम कर गुजारा कर रहे है.

65 वर्षीय बुजुर्ग चेतन के मुताबिक, पुराने समय मे भूमिहीन जितने थे. सभी बुनकर पेशे में आ गए. महंगाई बदला, फैशन बदले तो गुजारा मुश्किल हुआ, इसलिए बुनकरों को अन्य व्यवसाय चुनना पड़ा है. जो कुछ भी नहीं कर सके, ऐसे 200 से ज्यादा लोग ओड़िसा, आंध्रा पलायन कर मजदूरी करने मजबूर है. जो नहीं जा सकते लोकल में मजदूरी का काम करने लगे है पर पलट कर भी लूम फ्रेम (बुनाई का परम्परागत मशीन) को हाथ नहीं लगाया.

दो वर्षों से बंद है उरमाल की समिति

उरमाल समिति में सरकारी रिकार्ड में 14 लोग को काम पर होना बताया जा रहा है, यहां के मजदूर लुमेश कश्यप ने बताया कि चनाभांटा उरमाल ग्राम से कभी 35 परिवार काम पर लगे थे, समय बदला तो केवल 14 लोग ही काम करते रहे, लेकिन पिछले 2 वर्षों से बुनाई कर के रखे कपड़ों को प्रबंधन ने एपेक्स तक नहीं पहुंचाया. 70 से 80 हजार रुपये की मजदूरी नहीं मिली. धागा आना बंद हो गया और समिति बन्द हो गया. सभी मजदूरी करते है. लुकेश के इस खुलासे ने सहायक संचालक द्वारा ताजा जानकारी बताकर उपलब्ध कराई सूची की पोल खोल दिया है. विभाग के रिकार्ड के मुताबिक यंहा 14 लोग काम कर रहे हैं.

दो ऐसी योजना जिसका लाभ कभी नहीं मिला

सहायक संचालक के मुताबिक बुनकर सदस्य का विभाग बीमा करवाती है, जिसके लिए सालाना 80 रुपये प्रीमियम भरती है. पर इसका फायदा किसी को नहीं मिला. बुनकर केशरी व माखन बताते है उनकी उम्र 60 से पार हो गई, अब उनका प्रीमियम नहीं कट रहा, क्योंकि 60 के उम्र के भीतर ही बीमा का प्रावधान है. दोजों बुजुर्ग मजदूर धागे के डस्ट से दमा जैसे बीमार से ग्रसित भी है.

दूसरी योजना बुनकर परिवार के ऐसे बच्चे जो बोर्ड में कम से कम 60 प्रतिशत अंक अर्जित करते है उन्हें प्रतिशत के आधार पर स्कॉलरशिप का प्रावधान है, पर किसी भी छात्र को इसका फायदा नहीं मिला. समाजिक कार्यकर्ता गौरी शंकर कश्यप व माखन कश्यप ने बुनकरों को प्रोत्साहित करने उनके हितों में योजना संचालन की मांग की है.