रायपुर। रायपुर की दक्षिण की सीट पर वही कहानी दोहराई गई जो 2013 के चुनाव में रायपुर पश्चिम पर दोहराई गई. रायपुर पश्चिम की टिकट दिल्ली से फाइनल हो चुकी थी. विकास उपाध्याय को टिकट मिल गई. लेकिन तभी दिल्ली में टिकट के दावेदार प्रमोद दुबे को तलब किया गया. इस ख़बर के बाद विकास उपाध्याय की टिकट रोक दी गई. हालांकि बाद में विकास की टिकट का ऐलान कर दिया गया था.

2018 में ऐसा ही हुआ. ऐन नामांकन दाखिल करने का वक्त उनकी दावेदारी रायपुर दक्षिण से आ गई लेकिन एक हफ्ते के भीतर ही ये बात साफ हो गई कि वे रायपुर दक्षिण में मंत्री बृजमोहन के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेंगे. बताया जा रहा है कि प्रमोद दुबे ने खुद चुनाव न लड़ने की अपनी इच्छा से आलाकमान को अवगत करा दिया था.

दरअसल, जब रायपुर दक्षिण में दूसरे दावेदार अपनी तैयारियों में जुटे थे तभी अचानक ये ख़बर आई कि रायपुर दक्षिण से पार्टी प्रमोद दुबे को लड़ा रही है. ये ख़बर उस घटना के बाद उड़ी जब दूसरे दावेदारों की तैयारियों के बीच एक सुबह सुंदरनगर पार्टी के लिए वोट मांगने पहुंच गए. इसके बाद रायपुर दक्षिण में ये खबर फैल गई. शाम होते-होते स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा मेयर प्रमोद दुबे को दिल्ली बुलाने की खबर आ गई.शाम करीब सात बजे प्रमोद दुबे ने मीडिया द्वारा फोन करने पर ये जानकारी दी कि वे दिल्ली जा रहे हैं. एरोप्लेन में बैठ चुके हैं. इसके दस मिनट बाद प्रमोद दुबे को दूसरे मीडिया वाले ने फोन किया. प्रमोद दुबे को घंटी लगी. लेकिन फिर इनका फोन स्विच ऑफ हो गया. यहां ये बात जाहिर हो गई कि प्रमोद दुबे विमान से दिल्ली के लिए उड़ चुके हैं.

लेकिन आधे घंटे बाद ही उनका फोन फिर से लगने लगा. जबकि दिल्ली जाने में विमान में करीब 1 घंटे का वक्त लगता है. रायपुर शहर में हल्ला हो गया कि प्रमोद दुबे दिल्ली पहुंच गए हैं. उसी वक्त वे रायपुर के कटोरा तालाब में देखे गए. प्रमोद दुबे ने उस दिन किसी मीडिया वाले का फोन नहीं उठाया. दो दिन बाद प्रमोद दुबे सुबह-सुबह दिल्ली रवाना हुए.

दिल्ली में उन्होंने प्रभारी समेत स्क्रीनिंग कमेटी के साथ बैठक की. सूत्रों के मुताबिक दिल्ली में उनसे राय ली गई तो उन्होंने बताया कि उन्होंने उत्तर से दावेदारी की है. अन्यथा वे लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं. चर्चाओं के  मुताबिक उन्होंने दक्षिण से लड़ने पर वही बात कही जो शुरु से कहते आए थे. उन्होंने कहा कि दक्षिण से चुनाव लड़ने के लिए वक्त की कमी है. लेकिन वे पिछले चार साल से मेयर के रुप में सक्रिय थे.

गौरतलब है कि प्रमोद दुबे ने जब चुनाव लड़ने से मना कर दिया था तभी पार्टी ने रुचिर गर्ग को दक्षिण से लड़ाने का फैसला किया. पार्टी के पास बृजमोहन को टक्कर देने वाला कोई उम्मीदवार बचा नहीं था तो रुचिर गर्ग की स्वच्छ छवि को देखते हुए उन्हें चुनाव लड़ाने का फैसला हुआ. पार्टी के दो-तीन पार्षदों ने उनकी दावेदारी का विरोध किया. लेकिन ये विरोध बहुत बड़ा नहीं था.

प्रमोद दुबे को पार्टी आलाकमान से लेकर कार्यकर्ता तक हर कोई शुरु से दक्षिण से लड़ाना चाहता था. उन्हें मेयर के चुनाव में रायपुर दक्षिण से 10 हज़ार से ज़्यादा की लीड मिली थी. वे ब्राह्मण समाज से आते हैं जिनके बड़ी तादाद इस विधानसभा में है. लेकिन प्रमोद दुबे तैयार नहीं थे. उनका कहना था कि दक्षिण से लड़ने के लिए उनके पास पर्याप्त समय नहीं था. लेकिन क्या इस दलील को माना जा सकता है. वे चार साल से मेयर हैं. रायपुर के सभी विधानसभाओं में वे मेयर होने के नाते सक्रिय थे.

पार्टी के ढुलमुल रवैये को देखते हुए रुचिर गर्ग ने चुनाव को लेकर अपनी अनिच्छा जाहिर कर दी. उन्होंने कम वक्त का हवाला दिया. बदले हालात में कन्हैया अग्रवाल को आखिरकार कांग्रेस ने दक्षिण से फाइनल किया. कन्हैया अग्रवाल कांग्रेस से दक्षिण के दसियों साल पुराने दावेदार रहे हैं. पार्टी ने उनकी प्रतिबद्धता देखते हुए उन्हें एक मौका देने का फैसला किया.

बड़ा सवाल है प्रमोद दुबे  ऐसी परिस्थियों में सवाल खड़ा होता है कि दक्षिण से यकायक प्रमोद दुबे का नाम उस वक्त क्यों आ गया. जब रुचिर गर्ग को लेकर बड़ी तादाद में गैर राजनीतिक लोग जुड़ रहे थे.