Tabla Maestro Ustad Zakir Hussain Passes Away:  तबले पर उंगलियां थिरकाकर लोगों को बैठे-बैठे उनकी सीट पर झुमा देने वाला उस्ताद जाकिर हुसैन अब इस दुनिया में नहीं रहे। भारत के सबसे प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकारों में से एक मशहूर तबला वादक (Tabla player) जाकिर हुसैन का अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में सोमवार सुबह (भारतीय समय के अनुसार) 73 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। परिवार ने सोमवार अल सुबह उनके मौत की पुष्टि की है।

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जाकिर हुसैन को किसने ‘उस्ताद’ नाम दिया?, किसने उन्हें तबले की जादुगरी सिखाई?, कैसे उनकी शादी हुई? ‘उस्ताद’ की अनसुनी कहानियों को हम यहां छुने की कोशिश करते हैं।

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पंडित रविशंकर ने दिया ‘उस्ताद’ नाम

सदी के सबसे महान सितारवादकों में से एक पंडित रविशंकर के साथ उस्ताद जाकिर हुसैन की जुगलबंदी की पूरी दुनिया मुरीद है। जब भी दोनों की जुगलबंदी शुरू होती थी तो वहां मौजूद सभी लोग झूमने लगते थे। सभी लोगों को एक अलग ही दुनिया में होने का एहसास होता था। तबले पर उंगलियां थिरकाकर लोगों को बैठे-बैठे उनकी सीट पर झुमा देने वाले हुनर को देखते हुए महान सितारवादक पंडित रविशंकर ने ही जाकिर हुसैन को सबसे पहले उस्ताद नाम दिया था। इसके बाद से ही जाकिर हुसैन ‘उस्ताद जाकिर हुसैन’ के नाम से पूरी दुनिया में पहचाने गए।

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पिता ने सिखाई तबले पर उंगलियां थिरकाने की जादुगरी

20वीं सदी के सबसे विख्यात तबलावादक उस्ताद अल्लाह रक्खा कुरैशी ने जब अपने बेटे को गोद में लिया था तो कान में आयत नहीं पढ़ी, बल्कि तबले के बोल कहे। जब परिवार ने वजह पूछी तो कहा, तबले की ये तालें ही मेरी आयत है। वो बच्चा था जाकिर हुसैन, जिसने दुनियाभर को तबले की थाप पर झूमने का मौका दिया।

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उनके पिता का भी मौसिकी की दुनिया में बड़ नाम था। वो भी तबला वादक थे। तबले पर जुगलबंदी करने का शौक उस्ताद को पिता को देखकर लगा। पिता ने भी बेटे को शिद्दत से तबले की बारीकियां सिखाई. उस्ताद ने भी उन्हें नाराज नहीं किया, अपने समर्पण से उस्ताद ने बहुत जल्द तबले की हर बारीकी को न सिर्फ समझा, बल्कि उसे अपनी सांसों में समाते हुए जिंदगी में उतार लिया और पूरी दुनिया उनकी मुरीद है।

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पहली कमाई में मिले 5 रुपये

जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को महाराष्ट्र में उस्ताद अल्लाह रक्खा और बावी बेगम के घर हुआ था। बचपन पिता की तबले की थाप सुनते ही बीता और 3 साल की उम्र में जाकिर को भी तबला थमा दिया गया, जो फिर उनसे कभी नहीं छूटा। जाकिर हुसैन ने अपने पिता से तीन साल की उम्र में ही मृदंग (एक शास्त्रीय वाद्य) बजाना सीख लिया था। 12 साल की उम्र से ही वह म्यूजिक शो में परफॉर्मेंस देने लगे थे। उस दौरान आयोजकों में से किसी एक ने छोटे से जाकिर को अल्ला रक्खा खान के सुपुत्र होने की वजह से स्टेज पर पुकारा. उम्दा प्रदर्शन की वजह से उस दिन उन्हें इनाम में 5 रुपए मिले थे। उस दौर में वो बड़ी रकम थी। उससे बड़ी बात ये कि उन्हें ये कमाई संगीत की कई महान विभूतियों के बीच मिली। ये किस्सा बताते हुए जाकिर हुसैन साहब ने कहा था कि वो उनके लिए सबसे कीमती तोहफों में से था।

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‘उस्ताद’ का निकाह

जाकिर हुसैन ने 1978 में एक कथक परफार्मर एंटोनिया मिनेकोला से शादी की. एंटोनिया इटैलियन अमेरिकी थीं। फैमिली की बात करें तो उनकी दोनों बेटियां अनीसा और इसाबेला कुरैशी हैं।

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एकसाथ तीन ग्रैमी अवॉर्ड समेत 5 बार यह अवार्ड जीतने वाले इकलौते भारतीय

इसी साल, 2024 में इस बैंड को 3 ग्रैमी अवॉर्ड से नवाजा गया है। वे एकसाथ 3 ग्रैमी अवॉर्ड जीतने वाले पहले भारतीय हैं।  छह दशकों के शानदार करियर के दौरान, उन्होंने पांच ग्रैमी अवॉर्ड सहित कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान हासिल किए हैं। एकसाथ तीन ग्रैमी अवॉर्ड समेत 5 बार यह अवार्ड जीतने वाले इकलौते भारतीय हैं।

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दो बार मिल चुका है पद्म विभूषण

उस्ताद जाकिर हुसैन को उनकी पीढ़ी का सबसे महान तबला वादक माना जाता है। भारत के सबसे प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकारों में से एक जाकिर हुसैन को 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है।

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