नई दिल्ली। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने गुरुवार को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री की अध्यक्षता में NCR के राज्यों के साथ आयोजित संयुक्त बैठक में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने को लेकर कई अहम सुझाव दिए. उन्होंने सभी राज्यों से युद्ध स्तर पर बायो डि-कंपोजर का छिड़काव करने की अपील करते हुए कहा कि राज्य सरकारें बायो डि-कंपोजर का घोल बनाने से लेकर खेतों में छिड़काव तक की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेंगी, तभी पराली की समस्या का जड़ से समाधान संभव है.
गोपाल राय ने कहा कि हमें पता चला है कि कुछ राज्य किसानों को केवल कैप्सूल बांटने की योजना बना रहे हैं, इससे यह काम जमीन पर नहीं उतर पाएगा. अगर दिल्ली सरकार घोल तैयार करने से लेकर छिड़काव करने तक की जिम्मेदारी अपने हाथ में नहीं लेती, तो दिल्ली में पराली की समस्या का समाधान नहीं हो पाता. उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें अभी पराली के नाम पर जितना पैसा खर्च कर रही हैं, उसके एक चौथाई पैसे में ही बायो डि-कंपोजर का छिड़काव कर सकती हैं. अगर सभी सरकारें समय रहते कदम नहीं उठाती हैं, तो इस बार भी दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत को पराली की समस्या झेलनी पड़ेगी.
दिल्ली में प्रदूषण स्तर बढ़ने का सबसे ज्यादा कारण बाहर से आना वाला प्रदूषण- गोपाल राय
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में वायु प्रदूषण के संबंध दिल्ली-एनसीआर के राज्यों के साथ आज ऑनलाइन आयोजित संयुक्त बैठक में हिस्सा लिया. इस बैठक में एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट कमीशन के चेयरमैन एम एम कुट्टी, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के पर्यावरण मंत्री और पंजाब के मुख्य सचिव भी शामिल हुए. बैठक में पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के समक्ष दिल्ली सरकार की तरफ से कई सुझाव दिए.
सिविल लाइन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दिए सुझावों की जानकारी देते हुए पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि संयुक्त बैठक में सभी राज्यों और केंद्र सरकार ने अपनी बात रखी. बैठक में मुख्य तौर पर जाड़े के समय में बढ़ने वाले प्रदूषण स्तर को लेकर चर्चा हुई. चूंकि प्रदूषण का दिल्ली केंद्र बिंदु है. उत्तर भारत के इलाकों में जितनी गतिविधियां होती हैं, भौगोलिक बनावट के कारण उन सबका सबसे ज्यादा प्रभाव दिल्ली पर पड़ता है. दिल्ली के अंदर जो प्रदूषण होता है, उसमें दिल्ली में पैदा होने वाले प्रदूषण की भी हिस्सेदारी होती है, लेकिन उससे ज्यादा दिल्ली में प्रदूषण स्तर बढ़ने का कारण बाहर का प्रदूषण है.
हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली में बढ़ता है पॉल्यूशन
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि हम पिछले पिछले एक हफ्ते से वायु गुणवत्ता की निगरानी कर रहे हैं. अक्टूबर का महीना आने वाला है. हमने सितंबर के कुछ दिनों के पीएम-10 और पीएम-2.5 के स्टेटस पर करीब से नजर रखा. जिसमें पाया कि 18 सितंबर को पीएम-10 का स्टेटस 67 था, जबकि पीएम-2.5 27 था। इसी तरह, 19 सितंबर को पीएम-10 85 व पीएम-2.5 35, 20 सितंबर को पीएम-10 78 व पीएम-2.5 31, 21 सितंबर को पीएम-10 81 व पीएम-2.5 31 और 22 सितंबर को पीएम-10 64 व पीएम-2.5 27 था. पिछले साल पीएम-10 और पीएम-2.5 के इंडेक्स को लगातार वॉर रूम से मॉनिटर किया गया था.
हमने बहुत सारी गतिविधियों के साथ-साथ एक चीज को मॉनिटर किया कि पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा राज्य में पराली जलने की घटनाएं जैसे ही बढ़नी शुरू होती हैं, दिल्ली के पीएम-10 और पीएम-2.5 का ग्राफ भी बढ़ता जाता है. गोपाल राय ने कहा कि आज की बैठक में मैंने सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से सबसे पहले यही अपील की है कि पराली की समस्या के जड़ से समाधान के लिए इमरजेंसी कदम के तौर पर सभी सरकारें बायो डि-कंपोजर का युद्धस्तर पर छिड़काव करने की तैयारी करें.
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि बैठक में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत कई सरकारों ने बताया कि वे बायो डि-कंपोजर के उपयोग का निर्णय ले रहे हैं, लेकिन कई जगह से हमें सूचना मिली है कि वे कैप्सूल खरीद कर किसानों में बांटने की योजना बना रहे हैं. मैं सभी राज्यों से अनुरोध करना चाहता हूं कि किसानों को केवल कैप्सूल बांटने से यह काम जमीन पर नहीं उतर पाएगा. अगर दिल्ली सरकार यह जिम्मेदारी अपने हाथ में नहीं लेती, तो दिल्ली के अंदर भी यह काम नहीं हो पाता. दिल्ली के अंदर तीन जिलों में खेती होती है, वहां कृषि विभाग के अधिकारी काम करते हैं. हमने हर जिले के कृषि अधिकारी की टीम को जिम्मेदारी दी है. हम कैप्सूल लेकर खुद घोल तैयार करा रहे हैं. साथ ही, घोल को किसानों के खेत में छिड़काव करने तक की सारी जिम्मेदारी सरकार अपने हाथ में ले रही है.
अगर सिर्फ कैप्सूल या घोल बांट दिया जाएगा, तो उससे जिस जिम्मेदारी के साथ इमरजेंसी स्तर पर काम करने की जरूरत है, वह काम जमीन पर लागू नहीं हो पाएगा, इसलिए सरकारों को आगे बढ़ कर इस काम को करने की जरूरत है. लागत की जहां तक बात है, तो दिल्ली में कैप्सूल खरीदने से लेकर छिड़काव तक लगभग 1000 रुपए प्रति एकड़ तक लागत आ रही है. घोल को बनाने से लेकर खेत में छिड़काव करने तक यह सरकार की लागत है.
अन्य राज्य सरकारें पराली के नाम पर अभी जितना खर्च कर रही हैं, उसके एक चौथाई पैसे में ही बायो डि-कंपोजर का छिड़काव करा सकती हैं- गोपाल राय
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि बैठक में मौजूद हरियाणा के मुख्यमंत्री एवं पर्यावरण ने बताया कि उन्होंने पराली न जलाने वाले लोगों के लिए 1000 रुपए प्रोत्साहन राशि (इंसेंटिव) घोषित किया है. इसके अलावा हम मशीनरी खरीदने के लिए 200 करोड़ रुपए अलग से सब्सिडी दे रहे हैं. मुझे लगता है कि इतना पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने 1000 रुपए जो इंसेंटिव घोषित किया है, केवल उतना ही लागू कर दिया जाए और घोल तैयार कर पराली पर छिड़काव कर दिया जाए, तो इस पराली की समस्या से हरियाणा मुक्त हो सकता है, पंजाब मुक्त हो सकता है.
पराली के नाम पर अभी सरकारें जितना पैसा खर्च कर रही हैं, उसके एक चौथाई पैसे में ही बायो डि-कंपोजर का घोल तैयार कर सरकार कृषि विभाग के अधिकारियों के माध्यम से हर खेत तक छिड़काव कर सकती है. मुझे लगता है कि अगर यह काम नहीं किया जाता है, तो इस बार भी दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत को कहीं न कहीं पराली की समस्या को झेलना पड़ेगा.