रायपुर. वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने झीरम घाटी मामले में जस्टिस मिश्रा  न्यायिक आयोग की रिपोर्ट पर कार्यवाही की बजाय, बिना पढ़े रिपोर्ट से किनारा कर जांच बढ़ाने और नया आयोग बनाए जाने को सरकार में निर्णयन क्षमता का अभाव बताते हुए लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विपरीत कार्य बताया है.

अमर अग्रवाल का कहना है कि झीरम घाटी मामले की जांच रिपोर्ट पिछले दिनों राजभवन को  जांच प्रस्तुत होती हैं बिना पढ़े उसे विवादास्पद बनाने और राज्यपाल के पद की संवैधानिक औचित्यता पर प्रश्न खड़े करना कांग्रेस की कार्यशैली पहचान है. उन्होंने कहा कि राजभवन द्वारा रिपोर्ट सरकार को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजने के पूर्व ही कयासों के आधार पर बिना परीक्षण  किये दो सदस्यीय आयोग बना कर  प्रस्तुत रिपोर्ट को नकार देना और मामले को आगे बढ़ा देने से सरकार की मंशा साफ है कि मामले के सच को सरकार टालना चाहती है.

बता दें कि 25 मई 2013 को झीरम घाटी की घटना हुई, उस समय भी केंद्र में यूपीए की सरकार थी, घटनाक्रम के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं राहुल गांधी छत्तीसगढ़ आये. केंद्रीय गृह मंत्री के द्वारा एनआईए की जांच बैठाई गई. 28 मई को उच्च न्यायालय के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में एक सदस्य आयोग का गठन किया गयॉ. उन दिनों तात्कालिक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल थे, उंस समय उन्होंने शिगूफा छोड़ा घटना के सबूत मेरी जेब में है. मौका ए वारदात पर वर्तमान राज्य मंत्रिमंडल सदस्य भी मौजूद थे. अमर अग्रवाल का कहना है कि 2013 से 21 तक पिछले सात वर्षों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सबूतों को न तो कभी राष्ट्रीय जांच एजेंसी के हवाले किया न हीं कभी न्यायिक जांच आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जी की जेब से झीरम घाटी मामले के सबूत किस पाकिटमार ने उड़ा दिए, यह प्रदेश की जनता जानना चाहती है.