विनोद कुशवाहा, बिलासपुर। इंसान की जिंदगी का अंतिम सच मौत है ये बात सभी जानते है लेकिन जब मौत बेमौत होने लग जाये तो जीवन का ये अंतिम सच लोगो को डराने लगता है. कोरोना के संक्रमण काल मे मौतों का जो तांडव हो रहा है उससे वे लोग भयभीत है जिनके घरों में बीते एक साल के दौरान कोरोना से जंग लड़ते परिवार का कोई सदस्य हमेशा हमेशा के लिए छोड़कर चला गया उस परिवार से पूछिए की उन पर अब भी क्या गुजर रही है.

अचानक जीवन मे इस बवंडर ने लोगो को जैसे झकझोर कर दिया है. लेकिन कुछ ऐसे है जिन्हें मौत के इस तांडव को देखकर डर ही नहीं लग रहा है. कुछ समय पहले तक बीमारी और सामान्य होने वाली मौतों से वह परिवार ग़मज़दा होता था जिसके परिवार में दुख का पहाड़ टूटता था, उनका कोई अपना उनसे बिछुड़ जाता था.

बीते साल 2020 के मार्च महीने से कोरोना के संक्रमण से मरने वाली मौतों ने उन लोगो को काफी ज्यादा दुख पहुंचाया जब किसी अपने के मरने पर उसे परिवार के लोग श्मशान तक अंतिम विदाई देने भी नहीं जा सके, शव को कफ़न तक ओढ़ा सके, शव को सजाकर चार कंधों के सहारे श्मशान तक भी नहीं पहुंचा सके.

बिलासपुर के निराला नगर में रहने वाले कच्छवाहा परिवार ने लल्लूराम की टीम से बात करते हुए बताया कि पिछले साल जब कोरोना ने दस्तक दी. उसी समय उनके परिवार में 5 लोग कोरोना संक्रमित हो गए. हालांकि परिवार एकाध सदस्य को छोड़कर किसी मे भी कोरोना के लक्षण नहीं थे, लेकिन कोविड नियमों के तहत सभी को होम आइसोलेट कर दिया गया. कोरोना का नाम उस समय लोगों को काफी ज्यादा डरा रहा था. ऐसे में परिवार सहित जो लोग कोरोना पॉजिटिव थे. उन्हें दहशत होना स्वाभाविक था, लेकिन सभी एक दूसरे को हिम्मत दे रहे थे.

दो दिन ही बीते थे कि परिवार के मुखिया कहलाने वाले रामलाल सुबह नहाकर निकले और अचानक ही फिसलकर गिर गए और इस दुनिया को अलविदा कह दिया. किसी को कुछ सोचने समझने का मौका ही नहीं मिला. चूंकि 20 लोगों के संयुक्त परिवार में ये घटना हुई. और परिवार के 5 लोग पॉजिटिव थे और बाकी के 15 लोग निगेटिव थे. ऐसे समय 5 लोग नीचे वाले कमरे में रहे थे और बाकी के 15 लोग ऊपर. जो लोग निगेटिव थे उनमें अधिकांश बच्चे और महिलाये थी. जाहिर है परिवार के मुखिया को अंतिम विदाई देने के लिए परिवार के पुरुषों को ही जिम्मेदारी निभानी थी. लेकिन वे सब पॉजिटिव थे और उन्हें घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी.

कोविड नियमों के तहत पॉजिटिव डेडबॉडी को परिवार के सदस्य उनके द्वारा बॉडी को पीपीई किट पहनाकर मुक्तजलि वाहन से शव को अंतिम संस्कार के लिए विदा कर दिया गया. कुछ रिश्तेदार इस खबर को सुनकर आये लेकिन मजबूरियों के चलते घर से दूर खड़े रहकर देखते रहे. महिलाएं घर के ऊपरी मंजिल से शव को रोते बिलखते विदा किया. हालात ये ऐसे दुख की घड़ी एक दूसरे के आसूं पोछने वाला भी कोई नहीं था, कुछ ऐसे ही दुखद बाते उन परिवार के साथ भी घटित हुई होंगी जिन्होंने कोरोना के दौरान अपनो को खोया होगा.

दरअसल इस पूरे वाकये का जिक्र करना वर्तमान हालातों में इसलिए जरूरी है क्योंकि लोग खुलेआम हर कोरोना से होने वाली मौतों का तांडव देख रहे है. बावजूद इसके ऐसे लोगों में कोई दहशत नहीं है जो मौत तांडव देखकर कोई सबक नहीं ले रहे है. ये तस्वीरें  है तोरवा छठ घाट स्थित मुक्तिधाम की, जहां कोविड से होनी वाले शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. यहां पर पहुंचने वाले परिजन बिना सोशल डिस्टेसिंग बिना मास्क के शवों का अंतिम संस्कार करने पहुंच रहे हैं.

अब जरा इन तस्वीरों को देखिये लॉकडाउन है लेकिन पुल के ऊपर खड़े ये वो लोग है जो कोविड डेड बॉडी का अंतिम संस्कर देखने पहुंचे है. इस तस्वीर को देखकर दो बातें साफ है कि लोगों को मौत का डर नहीं. दूसरी तरफ लॉकडाउन है लोग इतनी बड़ी संख्या में कोविड डेड बॉडी का अंतिम संस्कर देखने कैसे पहुंच रहे है. क्या उनके लिए लॉकडाउन का नियम नंही है या फिर लॉकडाउन के नाम पर केवल औपचारिकता की जा रही है. खैर ये समय ऐसा नहीं है कि कोई डंडा लेकर आपको समझाए. जिंदगी आपकी है और फैसला आपको करना है.

फोटो- अप्पू नवरंग

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