Women’s Day: प्रतीक चौहान. रायपुर. राजधानी रायपुर के एक नए-नए डॉक्टर ने भोपाल में पहली मुलाकात के बाद जब शादी का रिश्ता पक्का हो गया तो अपनी Fiancee को वे लखनऊ ले गए. वहां मेडिकल कॉलेज (SGPGI Lucknow) दिखाकर कहां- मेरा सपना है ऐसा ही मेडिकल कॉलेज खोलने का… कुछ महीनों बाद शादी हुई. इसके बाद डॉक्टर अपनी पत्नी को लेकर अपने क्लीनिक पहुंचे. जो महज  10×10 का एक कमरा मात्र था.

इतना छोटा सा कमरा देखकर एक मिनट के लिए आंखों के सामने अंधेरा छा गया. लगा मैंने कोई गलत फैसला तो नहीं ले लिया… ये कहना है श्री बालाजी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (मोवा) की मैनेजिंग डायरेक्टर श्रीमती नीता नायक (Smt. Neeta Naik) का. लल्लूराम डॉट कॉम को दिए अपने Exclusive इंटरव्यू में उन्होंने चेरयमैन डॉ देवेंद्र नायक (Dr Devendra Naik) द्वारा कही गई बातों को पहली बार सार्वजनिक किया है. वे कहती हैं जब डॉ नायक उन्हें अपना पुराना क्लीनिक ले गए थे जो 10×10 का एक कमरा मात्र था, उसे देखकर उन्हें ये लगा कि उन्होंने अपनी शादी को लेकर कोई गलत फैसला तो नहीं ले लिया. लेकिन डॉ नायक की कड़ी मेहनत के बाद आज उनका मेडिकल कॉलेज खोलने का सपना पूरा हो गया है और आज वे 150 सीटों के साथ मेडिकल कॉलेज संचालित कर रहे है, जिसे इसी वर्ष से संचालन की अनुमति मिली है.

कई वर्षों गुजारे किराये के घर में
श्रीमती नीता नायक कहती हैं कि हर व्यक्ति के जीवन में संघर्ष होता है और कभी इससे हमें पीछे नहीं हटना चाहिए. वे कहती हैं कि डॉ देवेंद्र नायक ने संकल्प लिया था कि जब तक वे श्री बालाजी भगवान का मंदिर नहीं बनवाएंगे तब तक वे अपने खुद के बनाएं घर में नहीं रहेंगे और मंदिर की ऊंचाई जो होगी वो उनके घर से छोटी होगी. चंद वर्षों पहले उन्होंने अपना ये प्रण पूरा किया, जिसके बाद उन्होंने अपना घर बनाया. लेकिन उक्त घर की ऊंचाई आज भी मंदिर की ऊंचाई से कम है.

महिलाओं का दर्द समझकर डॉ नायक से कही ये बात…

श्रीमती नायक कहती हैं श्री बालाजी अस्पताल की मैनेजिंग डायरेक्टर होने के नाते जब-जब वे अस्पताल के राउंड में निकलती थीं, तो एक बार वे बीलिंग काउंटर के पास खड़ी थीं. तभी देखा कि अपनी पत्नी की डिलीवरी करवाने के बाद वे बिल में कुछ छूट चाह रहा था. लेकिन बीलिंग काउंटर से उक्त मरीज के परिजन को कोई मदद नहीं मिल पा रही थीं. इसी बीच श्रीमती नायक ने उक्त पिता से उनकी परेशानी पूछी. जवाब मिला कि मैडम देखिए न… एक तो बेटी हुई है. ऊपर से अस्पताल में बना ये बिल. मैं गरीब आदमी क्या करूं ? उक्त मरीज से बातचीत करने के बाद एक महिला होने के नाते उन्हें ये लगा कि आज भी बेटियों को बोझ समझा जा रहा है. तत्काल उन्होंने डॉ देवेंद्र नायक से बात की. अस्पताल के उच्च पदस्थ लोगों की मीटिंग ली, जिसमें ये फैसला लिया गया कि आज से श्री बालाजी अस्पताल में जब भी किसी बेटी का जन्म होगा तो उससे किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा और ये आज भी इस अस्पताल में निरंतर जारी है. हालांकि श्रीमती नायक कहती हैं कि ये बात भी उन्होंने कभी किसी से शेयर नहीं की थी, जो आज पहली बार इस इंटरव्यू में शेयर कर रही है.