नागपुर.   पूर्व राष्ट्रपति  प्रणब मुखर्जी ने नागपुर में संघ के कार्यक्रम में शिरकत की और उसे संबोधित भी किया. इस संबोधिन पर पूरे देश की नजरें टिकीं हुईं थी. प्रणब मुखर्जी ने  कहा ‘‘मैं आज यहां देश, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की अवधारणा के बारे में अपनी बात साझा करने आया हूं. इन तीनों को आपस में अलग-अलग रूप में देखना मुश्किल है. देश यानी एक बड़ा समूह जो एक क्षेत्र में समान भाषाओं और संस्कृति को साझा करता है. राष्ट्रीयता देश के प्रति समर्पण और आदर का नाम है.

मुखर्जी ने कहा कि यूरोप के मुकाबले भारत में राष्ट्रवाद का फलसफा वसुधैव कुटुंबकम से आया है. हम सभी को परिवार के रूप में देखते हैं. हमारी राष्ट्रीय पहचान जुड़ाव से उपजी है. ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाजनपदों के नायक चंद्रगुप्त मौर्य थे. मौर्य के बाद भारत छोटे-छोटे शासनों में बंट गया. 550 ईसवीं तक गुप्तों का शासन खत्म हाे गया. कई सौ सालों बाद दिल्ली में मुस्लिम शासक आए. बाद में इस देश पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1757 में प्लासी की लड़ाई जीतकर राज किया.

– ‘‘ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रशासन का संघीय ढांचा बनाया। 1774 में गवर्नर जनरल का शासन आया. 2500 साल तक बदलती रही राजनीतिक स्थितियों के बाद भी मूल भाव बरकरार रखा. हर योद्धा ने यहां की एकता को अपनाया. गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था- कोई नहीं जानता कि दुनियाभर से भारत में कहां-कहां से लोग आए और यहां आकर भारत नाम की व्यक्तिगत आत्मा में तब्दील हो गए.

1800 साल तक भारत दुनिया का ज्ञान का केंद्र रहा है. विविधता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है. सहनसीलता हमारी पहचान है. हम एकता की ताकत को समझते हैं. राष्ट्रवाद किसी धर्म जाति भाषा में नहीं बंटा है. देश के प्रति निष्ठ ही सबसे बड़ी देश भक्ति है और लोकतंत्र कोई उपकार नहीं यह संघर्ष का नतीजा है. हमें इसका सम्मान करना चाहिए.

प्रणब दा ने कहा ‘‘पचास साल के अपने सार्वजनिक जीवन के कुछ सार आपके साथ साझा करना चाहता हूं. देश के मूल विचार में बहुसंख्यकवाद और सहिष्णुता है. ये हमारी समग्र संस्कृति है जो कहती है कि एक भाषा, एक संस्कृति नहीं, बल्कि भारत विविधता में है. 1.3 अरब लोग 122 भाषाएं और 1600 बोलियां बोलते हैं. 7 मुख्य धर्म हैं. लेकिन तथ्य, संविधान और पहचान एक ही है- भारतीय’’
-‘‘मेरा मानना है कि लोकतंत्र में देश के सभी मुद्दों पर सार्वजनिक संवाद होना चाहिए. विभाजनकारी विचारों की हमें पहचान करनी होगी. हम सहमत हो सकते हैं, नहीं भी हो सकते. लेकिन हम विचारों की विविधता और बहुलता को नहीं नकार सकते’’ पूर्व राष्ट्रपति ने अपने संबोधन के अंत में संघ प्रमुख को धन्यवाद दिया.

क्या कहा मोहन भागवत ने

इससे पहले संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि  ‘प्रणब जी अत्यंत ज्ञान और अनुभव समृद्ध आदरणीय व्यक्तित्व हमारे साथ है. हमने सहज रूप से उन्हें आमंत्रण दिया है. इसके बाद भागवत ने कहा  ”हिंदू समाज में एक अलग प्रभावी संगठन खड़ा करने के लिए संघ नहीं है. संघ सम्पूर्ण समाज को खड़ा करने के लिए है. विविधता में एकता हजारों वर्षों से परंपरा रही है. हम यहां पैदा हुए इसलिए भारतवासी नहीं हैं. ये केवल नागरिकता की बात नहीं है. भारत की धरती पर जन्मा हर व्यक्ति भारत पुत्र है.