रायपुर. एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था. एकादशी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थी जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा. इसी दिन से एकादशी व्रत शुरु हुआ था. हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है.

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा –

मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी यानि उत्पन्ना एकादशी से वार्षिक एकादशी व्रत का आरंभ करना चाहिये. क्योंकि सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में इसी एकादशी से इस व्रत का प्रारंभ हुआ माना जाता है.

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उत्पन्ना एकादशी व्रत व पूजा की विधि –

एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि को ही आरंभ हो जाती है. उपवास का आरंभ दशमी की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है. इसमें दशमी तिथि को सायंकाल भोजन करने के पश्चात दातुन करना चाहिये. रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें. एकादशी के दिन प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें. नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद स्नानादि कर स्वच्छ हो लें. भगवान का पूजन करें, व्रत कथा सुनें. दिन भर व्रती को बुरे कर्म करने वाले पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये. रात्रि में भजन-कीर्तन करें.

इसके बाद जाने-अंजाने में हुई गलतियों के लिये भगवान श्री हरि से क्षमा मांगे. द्वादशी के दिन प्रात: काल ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करना चाहिये. इस विधि से किया गया उपवास बहुत ही पुण्य फलदायी होता है.

जानें क्या है उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व

उत्पन्ना एकादशी व्रत भगवान श्री हरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है. इस दिन उपवास करने से मन निर्मल और शरीर स्वस्थ होता है. इस व्रत को करने से जीवन में सुख-शांति आती है. इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्री हरि विष्णु के परम धाम का वास प्राप्त होता है. संतान प्राप्ति और आयोग्य रहने के लिए भी इसे किया जाता है.

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क्या है इसकी शुरुआत की पौराणिक कहानी

पौराणिक कहानी के अनुसार, भगवान विष्णु और मुर नामक राक्षस का युद्ध चल रहा था. राक्षस से युद्ध करते-करते भगवान विष्णु थक गए थे, इसलिए वह बद्रीकाश्रम में गुफा में जाकर विश्राम करने चले लगे. मुर राक्षस भगवान विष्णु का पीछा करते हुए बद्रीकाश्रम पहुंच गया था. गुफा में भगवान विष्णु को निद्रा लग गई. निद्रा में लीन भगवान को मुर ने मारना चाहा तभी विष्णु भगवान के शरीर से एक देवी प्रकट‍ हुईं और उन्होंने मुर नामक राक्षस का तुरंत वध कर दिया. देवी के कार्य से विष्णु भगवान बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने कहा कि देवी आपका जन्म कृष्ण पक्ष की एकादशी को हुआ है इसलिए आपका नाम एकादशी होगा. सभी व्रतों में तुम्हारा व्रत श्रेष्ठ होगा. आज से हर एकादशी को मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी. जो भक्त एकादशी का व्रत रखेगा वह पापों से मुक्त हो जाएगा.