खोज बनी आपसी झगड़ों की वजह, अब तक हो चुकी है कई लोगों की मौत

नई दिल्ली. हिमालय क्षेत्र में एक विशेष तरह की जड़ी-बूटी पाई जाती है. अंतराराष्ट्रीय मार्केट में इसकी बिक्री 60 लाख रुपए प्रति किलो की दर पर होती है. ये जड़ी-बूटी भारत, नेपाल और चीन के कुछ इलाकों में पाई जाती है, जो मुश्किल से मिलने वाला एक फफूंद ‘यार्चागुम्बा’ है. इसे एशिया में हिमालयी स्वास्थ्य वर्धक जड़ी-बूटी के नाम से पहचाना जाता है. हालांकि बाकी दुनिया में इसे कैटरपिल फंगस के नाम से जाना जाता है. जलवायु परिवर्तन के कारण एक विशेष तरह के पहाड़ी कीड़े पर उगने वाले फफूंद को ढ़ूढ़ना मुश्किल हो गया है. नेपाल और चीन में इसे ढ़ूढ़ने को लेकर हुए आपसी झगड़े में कई लोग मारे जा चुके हैं.

नपुंसकता दूर करने में कारगर

भारत, नेपाल और चीन में लोगों का मानना है कि यार्चागुम्बा से नपुंसकता दूर हो सकती है. इसलिए इसे चाय या फिर सूप बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन विज्ञान इस दावे को सही नहीं मानता है. नेपाल और चीन में यह हजारों लोगों की आय का अहम स्रोत है. हिमालयी स्वास्थ्य वर्धक जड़ी-बूटी से बनी दवा भारत में प्रतिबंधित है मगर आयुर्वेद के अनुसार ये शारीरिक शक्ति के साथ साथ श्वास और गुर्दे कि बीमारी के लिए फायेदेमंद है. नेपाल में 2001 तक इस पर प्रतिबंध था. लेकिन अब इसे समाप्त कर दिया गया है.

कैसे होती है पैदावार

वियाग्रा की पैदावार के लिए जिम्मेदार कीड़ा सर्दियों में एक विशेष पौधों के रस से निकलता है, जो मई-जून में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता हैं और मर जाते हैं. मरने के बाद यह कीड़े पहाड़ियों में घास और पौधों के बीच बिखर जाते हैं. इस कीड़े की चीन में भारी मांग है. आंकड़ों के मुताबिक ‘कैटरपिलर फंगस’ का पैदावार कम हो रही है. इसके एक वजह  जलवायु परिवर्तन का बताया गया.