पीताम्बर जोशी, नर्मदापुरम। नर्मदांचल की संस्कृति प्राचीन काल से ही साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे की रही है। करीब 400 साल पहले रामजी बाबा (Ramji Baba) और सूफी संत गौरीशाह बाबा (Gaurishah Baba) की मित्रता ने क्षेत्र में जो अमन चैन के बीज बोये उनकी हरियाली से आज भी नर्मदापुरम (Narmadapuram) और आसपास के क्षेत्रों में हिंदू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim Unity) की मिसाल नजर आती है। इसी कारण आज भी वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वाह नगर में किया जाता है।

इसी कड़ी में सांप्रदायिक सदभावना और हमारी संस्कृति के प्रतीक संत शिरोमणि रामजीबाबा मेले का प्रारंभ गौरीशाह बाबा की दरगाह पर चादर चढ़ाने की रस्म के साथ हुआ। संत शिरोमणि श्री रामजी बाबा के मेले का शुभारंभ प्रतिवर्ष इसी परंपरा के साथ किया जाता है। जिसमें समाधि पर पूजा अर्चना के बाद गौरीशाह बाबा की दरगाह पर चादर पेश की जाती है और अमन चैन की दुआ मांगी जाती है।

बागेश्वर धाम कंट्रोवर्सीः पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के समर्थन में उतरा युवा मुस्लिम समाज, बोले- विदेशी षडयंत्र के तहत साधु-संतों को किया जा रहा बदनाम

मां नर्मदा (Maa Narmada) की गोद में बसे नर्मदापुरम नगर में सैंकड़ों वर्ष पहले आध्यात्मिक संत रामजी बाबा और सूफी संत गौरीशाह बाबा की मित्रता हुई। दोनों संतों ने नर्मदांचल में आपसी प्रेम और भाईचारे की बीज बोए थे। मान्यतानुसार दोनों संतो की मित्रता इतनी प्रगाढ़ हो गई कि उनके दुनिया से जाने के बाद भी मित्रता अमर है।

MP खरगोन दंगाः दो हजार का इनामी फरार आरोपी रिटायर्ड ASI गिरफ्तार, जमानत याचिका खारिज होने के बाद से था फरार

मान्यता के अनुसार रामजी बाबा की समाधि बनाते समय मंदिर की छत नहीं बन पा रही थी, तब एक भक्त को सपना आया कि जब तक गौरीशाह बाबा की दरगाह से पत्थर लाकर नहीं लगाया जाता तब तक मंदिर नहीं बन पाएगा। पहले तो लोगों ने इस बात को नहीं माना लेकिन बाद में ऐसा करने पर छत पूरी हुई।

कुछ ऐसा ही वाक्या गौरीशाह बाबा की दरगाह पर हुआ तब वहां भी समाधि मंदिर से लाकर निशान लगाया गया। तब से लेकर आज तक इस परंपरा को पूरी आस्था के साथ निभाया जाता है। रामजी बाबा का मेला शुरू होने पर समाधि से दरगाह पर चादर पेश की जाती है और गौरीशाह बाबा के उर्स पर दरगाह से समाधि पर निशान चढ़ाया जाता है।

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus