रमेश सिन्हा, पिथौरा। ‘आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है’ यह कहावत आपने भी सुनी होगी. इसे हकीकत में साकार महासमुंद जिले के पिथौरा स्थित शिक्षण संस्थान के शिक्षक और नवमीं में पढ़ने वाले तीन छात्राओं ने नींद भगाने वाले चश्मे का अविष्कार कर दिया है. इस चश्में की खासियत यह है कि इसे लगाने पर झपकी आते ही अलार्म बजने के साथ लाइट जलने लगता है. इससे नींद भाग जाती है.

इस अविष्कार को संस्कार शिक्षण संस्थान के संचालक व युवा वैज्ञानिक शिक्षक गौरव चंद्राकर के मार्गदर्शन में पायल बरिहा, तेजस्वी डडसेना, जितिका डडसेना की टीम ने साकार किया है. टीम ने अपने चश्मे को स्मार्ट चश्मा नाम दिया है. छात्राएं पिथौरा कन्या शाला में कक्षा नवमीं और 11वीं की पढ़ाई कर रही हैं.

उन्होंने बताया कि समाचार पत्र पत्रिकाओं, टीवी अखबारों के माध्यम से गाड़ी चलाते समय चालक को नींद की झपकी आ जाने से काफी लोग दुर्घटना का शिकार होने की खबरों से आहत होकर ही इस प्रोजेक्ट को बनाने का विचार आया. साथ इस टीम के जान पहचान वालों की इसी तरह के दुर्घटना होने से भी समस्या का निदान ढूंढने के लिए प्रेरित हुए.

तीन महीने में पूरा हुआ प्रोजेक्ट

शिक्षण संस्थान के संचालक व युवा वैज्ञानिक शिक्षक गौरव चंद्राकर बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने में लगभग तीन महीने का समय लगा है. 1 नवंबर से इसकी शुरुआत की थी, जो 25 फरवरी को बनकर तैयार हुआ. 28 फरवरी विज्ञान दिवस के दिन इस प्रोजेक्ट को लांच किया गया है. गौरव बताते हैं कि चश्मे में आइआर सेंसर, बजर (अलार्म), वाइब्रेशन सेंसर और एलईडी लाइट लगाई गई है. इस चश्में को गाड़ी चलाते समय आसानी से पहना जा सकता है.

झपकी आते ही बजेगा अलार्म

छात्राओं ने बताया कि गाड़ी चलाने वाले शख्स को जैसे ही झपकी आएगी, वैसे ही चश्में में लगा सेंसर अलर्ट हो जाएगा और बजर बजने लगेगा. इसके साथ ही इसमें लगी लाइट भी जलने लगेगी. इससे चालक सतर्क हो जाएगा. हालांकि, हर इंसान की पलके झपकती हैं. लेकिन चश्में में झपकी को निर्धारित करने के लिए पलक झपकने के समय के हिसाब से समय को सेट किया जाता है. चश्मे के अलर्ट सिस्टम को दो से पांच सेकंड के बीच सेट किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि चश्मे की निर्माण लागत करीब 600 रुपए है.

हेलमेट में भी लग सकता है सिस्टम

दोपहिया वाहन चालक इस सिस्टम का इस्तेमाल हेलमेट में भी कर सकते हैं. इसके लिए हेलमेट के विंड शील्ड में सिस्टम को लगाना होगा. इसके बाद यह हेलमेट भी चश्मे की तरह की काम करने लगेगा. इसके अलावा इस प्रोजेक्ट का इस्तेमाल अस्पतालों में आई ब्लिंक टेस्ट के लिए किया जा सकेगा. टीम का मानना है कि अगर इस प्रोजेक्ट को व्यावसायिक रूप देते हुए स्मार्ट चश्मों का निर्माण कर वाजिब कीमत पर बेची जाए, तो गाड़ी चलाते समय झपकी आने से बड़ी संख्या में होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सकेगा.