पुरुषोत्तम पात्रा,गरियाबंद.  छत्तीसगढ़ में  मोतियाबिंद के ऑपरेशन में एक बार फिर भारी लापरवाही सामने आई है. देवभोग में ऑपरेशन के बाद 10 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है, वहीं 80 से ज्यादा लोगों की आंखों में कई किस्म की तकलीफें बढ़ गई है.  दरअसल यहां स्मार्ट कार्ड से मोतियाबिंद का ऑपरेशन  गिरोह सक्रिय हैं, अकेले देवभोग में पिछले पांच साल में पांच सौ से ज्यादा का ऑपरेशन कर चुके हैं.

गुमराह करके कराया गया आपरेशन

जिले के देवभोग सीएचसी में नेत्र विभाग के ओपीडी में पिछले 14 माह में 85 लोग अपने आंखों की तकलीफ का निदान कराने पहुचे हैं. जिनमें से 10 ऐसे मरीज है, जिनके आंखों की रौशनी खत्म हो रही है. सरकारी इलाज करा रहे इन सभी पीड़ितों की एक ही कहानी है. इन पीड़ितों को गुमराह करके राजधानी के विभिन्न नेत्रालयों में ले जाया गया. सभी का मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ, लेकिन ऑपरेशन के बाद लोगों को इस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

50 से ज्याद मरीज गवां चुके है आंख

टिकरापारा के चित्रांग मरकाम और बागगोड़ा के फुलसिंग ने बताया कि एक महिला उनके पास आई और उसने स्मार्ट कार्ड के बारे में पूछा, बाद में शाम को एक गाड़ी घर पर आकर खड़ी हों गई. जिसमें 10 से ज्यादा मोतियाबिंद के मरीज बैठे हुए थे. मरीजों ने बताया कि आॅपरेशन की पूरी प्रकिया को आधे घंटे में पूरा कर उन्हें छुट्टी दे दी गई थी. उसके बाद से उन्हें उनके ही हाल पर छोड़ दिया गया. मरीजों ने बताया कि देवभोग के अलावा मैनपुर विकासखण्ड में भी मरीजों की यही स्थित है. जहां नियम को ताक में रखकर किये गए ऑपरेशन में अपनी आंखें गवाने वाले मरीजों की संख्या जिले भर में 50 से ज्यादा हो सकती है.

स्मार्ट कार्ड का है सारा खेल

साल 2012 से सरकार ने मोतियाबिन्द का शिविर लगाकर ऑपरेशन करना बंद कर दिया. लेकिन इसके लिये स्मार्ट कार्ड में 7 हजार रुपए का प्रावधान किया हुआ है. शिविर से जुड़े निजी संस्था के लोग गांव गांव में पंचायत स्तर के कर्मी, आंगनबाड़ी कर्मी के अलावा ट्रेवल एजेंटो को अपना एजेंट बनाकर रखा हुआ है. सारे खर्च के अलावा इन एजेंटो को एक केस में 1 से डेढ़ हजार का कमीशन फिक्स कर दिया गया है. कमीशन में व्यय हो रहे खर्च की भरपाई के लिये सीधे मरीज के स्वास्थ्य सुविधाओं में कटौती की जा रही है. तीन दिन के आपरेशन प्रक्रिया को एक दिन में पूरी की जाती है. महीने भर में तीन फॉलोआप की प्रक्रीया की भी अनदेखी की जाती है. जिसका सीधा असर स्वास्थ्य पर दिख रहा है.

डिस्चार्ज लेटर भी नहीं देते

पूरी पड़ताल में सबसे चौकाने वाली बात यह है, कि मरीज केवल स्थानीय व्यक्ति को ही पहचानते है,जो उन्हें ले जाते हैं, रायपुर जा रहे हैं इतना भर पता होता है. किस संस्था में आॅपेरशन हो रहा है. ले जाने वाले लोग किस संस्था के है,ये भी पता नही होता है. इनके पास भर्ती या डिस्चार्ज लेटर भी नही होता. जिससे यहा के स्वास्थ्य विभाग को सही इलाज या कार्यवाही करने में मदद नही मिल पा रही है.

अवैधनिक है पूरी प्रक्रिया

लगातार पीड़तों के पहुचने के बाद देवभोग सीएचसी ने राजधानी के सभी नेत्र संस्थान को पत्र जारी कर इलाके से किये गए मोतियाबिंद की मरीजो कि सूची मांग की गई थी. लेकिन कोई जानकारी नही दी गई. बीएमओ ने बताया कि जिले के मोतियाबिंद मरीजो के ऑपरेशन के लिये सरकार ने पचपेड़ी नाका स्थित गणेश नेत्रालय से अनुबन्ध किया है. इस संस्था के अलावा दूसरे संस्था का ऑपरेशन अवैधनिक है. इसे रोकने जल्द ही ब्लॉक स्तर पर पंचायत प्रतिनिधियों की बैठक रख जागरूकता अभियान चलाया जाएगा. प्रभावितो का उपचार लगातार जारी है.