सुप्रिया पांडेय, रायपुर। तृतीय लिंग के लिए उनकी पहचान ही उनके लिए अभिशाप होता है. सर्जरी के जरिए इस अभिशाप से मुक्ति पाकर महिला या पुरुष के तौर पर सामान्य जिंदगी जीने के लिए स्वास्थ्य विभाग के पास हर साल 10 लाख बजट होता है. लेकिन योजना का आलम यह है कि पांच सालों में महज तीन सर्जरी हुई, तीनों असफल साबित हुए. इन्हीं असफल सर्जरी का शिकार बनी अंकिता आज जिस असहनीय स्थिति से गुजर रही है, वह पूरी व्यवस्था की पोल खोलता है.

राजधानी में रहने वाली 28 साल की अंकिता तृतीय लिंग के शाप से मुक्ति पाकर परिपूर्ण महिला बनना चाहती थी. इसके लिए उसने समाज कल्याण विभाग में आवेदन दिया. आवेदन स्वीकृत हो गया और सर्जरी भी हो गई. अब अंकिता जटिल लैंगिक समस्याओं से जूझ रही है. इन जटिलताओं से निजात पाने के लिए आगे की सर्जरी के लिए उसके पास पैसे नहीं है, और पैसे के लिए दिए गए आवेदन पर विभाग की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

अंकिता बताती है कि उसे पेशाब करने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. डॉक्टर का कहना है कि अगर जल्द सर्जरी नहीं की गई तो योनी मार्ग की नली बंद हो जाएगी. इसके बाद की स्थिति का वह अंदाजा ही नहीं लगाना चाहती है. दरअसल, अंकिता को यह समस्या इसलिए आई क्योंकि लिंग परिवर्तन के पहले हार्मोन्स परिवर्तन के लिए 3-4 महीने तक खिलाई जाने वाली दवा उसे दी ही नहीं गई और सीधे सर्जरी कर दी गई. इस लापरवाही का खामियाजा उसके लिए जीवन भर का दर्द बन गया है.

आवेदनों पर नहीं होती है सुनवाई

भारत सरकार की पूर्व सलाहकार और तृतीय लिंग कल्याण बोर्ड की सदस्य रवीना बरिहा बताती हैं कि सर्जरी की तकनीक से कम्युनिटी के लोग असंतुष्ट हैं. अब तक तीन सर्जरी हुई जो असफल रही, वहीं एक सर्जरी ऐसी भी हुई, जिसमें ट्रांसजेंडर की मौत हो गई. सर्जरी से असंतुष्ट लोगों ने समाज कल्याण विभाग से सहायता की मांग भी की है, लेकिन अब तक उनके आवेदनों पर कोई सुनवाई नहीं हुई है. यही नहीं सर्जरी के क्रियान्वयन के लिए स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत गठित समिति की बैठक नियमित नहीं हो रही है, जिसकी वजह से बहुत से आवेदन लंबित हैं.

आवेदनों के लंबित होने से हर साल आबंटित पैसा लैप्स हो जाता है. यही नहीं इस साल जिन 40 तृतीय लिंग के लोगों ने आवेदन दिए हैं, उसे स्वास्थ्य विभाग ने आगे नहीं बढ़ाया है.

तृतीय लिंग कल्याण बोर्ड की सदस्य विद्या राजपूत बताती हैं कि तृतीय लिंग की सर्जरी काफी जटिल होती है. यही वजह से राज्य के सरकारी अस्पतालों में की गई तीन-चार लोगों की सर्जरी न केवल असफल हुई, बल्कि एक केस में मौत भी हो गई. वे बताती हैं कि समाज कल्याण विभाग के प्रावधानों में निजी अस्पताल के माध्यम से भी लिंग प्रत्यर्पण का काम किया जा सकता है, लेकिन इस दिशा में अब तक पहल नहीं की गई है.

मंत्री को योजना की नहीं जानकारी

तृतीय लिंग के लोगों के लिए विभाग द्वारा चलाई जा रही योजना का हाल इस बात से पता चल जाता है कि विभागीय मंत्री अनिला भेंडिया को योजना में हितग्राही को कितनी राशि दी जाती है, इसकी तक जानकारी नहीं है. लल्लूराम डॉट कॉम ने इस योजना के संदर्भ में जब बात की तो उन्होंने बताया कि प्रति हितग्राही 10 लाख रुपए (ऑपरेशन के दौरान) स्वास्थ्य विभाग को दिया जाता है. जबकि हकीकत में इस कार्य के लिए स्वास्थ्य विभाग का ही कुल बजट 10 लाख रुपए का है, जिसमें प्रति व्यक्ति 2.25 लाख रुपए तक की सहायता की जाती है.

जानकारी देने में लापरवाही या कुछ और

समाज कल्याण विभाग के डायरेक्टर पी दयानंद बताते हैं कि अगर किसी तृतीय लिंग की सर्जरी गलत हुई है, तो इसकी जानकारी या शिकायत नहीं आई है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी कोई रिपोर्ट या फीडबैक नहीं दिया गया है. उन्होंने बताया कि विभाग के पास 10 लाख का बजट है, प्रति व्यक्ति 2 लाख 25 हजार की राशि खर्च की जा सकती है. इसके अलावा डीएमई से लंबित आवेदनों की कोई जानकारी नहीं आई है. शिकायत आएगी तो निराकरण करेंगे.

निजी अस्पताल में सर्जरी का है प्रावधान

डीएमई विष्णु दत्त बताते हैं कि तृतीय लिंग की सर्जरी के लिए समाज कल्याण विभाग से पैसा मिलता है. डीकेएस में प्लास्टिक सर्जन ऑपरेशन करते हैं. एक मरीज को सर्जरी के लिए करीब ढ़ाई लाख रुपए दिए जाते हैं. तृतीय लिंग के लोग सरकारी की बजाए निजी अस्पताल में सर्जरी करा सकते हैं, इसका प्रावधान है. वहीं सर्जरी को लेकर प्राप्त आवेदनों को आगे नहीं बढ़ाए जाने के सवाल पर उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की.