निशाने पर सीएस, चर्चाओं में कलेक्टरी

मुख्य सचिव के लिए 3 अहम अफसरों के दावों में कलेक्टरी की चर्चा हो रही है। मोहम्मद सुलेमान, राजेश राजौरा और अनुराग जैन के दावे सबसे बड़े और अहम समझे जा रहे हैं। इसके लिए जो लोग माहौल बना रहे हैं, उसमें सेवाकाल के दौरान संभाले गए अहम महकमे और अहम जिम्मेदारियों के अलावा कलेक्टरी को भी बड़े हथियार के तौर पर पेश किया जा रहा है। दरअसल, ये भी देखा जाता है कि मुख्य सचिव की कुर्सी का दावा करने वाले महानगरों की कलेक्टरी कितने वक्त की है और क्या परफारमेंस दी है। इन तीन अफसरों में से दो अफसर इंदौर के कलेक्टर रह चुके हैं और एक ने राजधानी भोपाल की कलेक्टरी संभाली है। दावों में बताया जा रहा है कि उन्होंने किस तरह माहौल को बिगड़ने नहीं दिया और हाथ से फिसलते मामलों को संभाला। अफसरों के टारगेट पर सीएस की कुर्सी ज़रूर है, लेकिन हथियार कलेक्टर के कार्यकाल को बनाया जा रहा है। हकीकत ये है कि दावे और माहौल कितने भी बनाया जाए, अगला मुख्य सचिव बनेगा वही, जो शिवराज की पसंद का होगा। यहां ये ज़रूर बता दें कि तीनों अफसरों के नाम सीएम की गुड बुक में हैं, रहस्य केवल यह है कि सबसे ऊपर किसका नाम होगा।

सड़कों का दर्जा

अफसरों को कमल नाथ सरकार के वक्त का जो तजुर्बा मिला, वो अब शिवराज सरकार के वक्त भुनाया जा रहा है। कमल नाथ सरकार के वक्त की तरकीबें सीएम शिवराज के सामने बताकर वाहवाही भी बटोरी जा रही है। बात उस वक्त की है, जब बदहाल सड़कों की खबरों के सुर्खियां बनते देख शिवराज ने मीटिंग में नाराज़गी ज़ाहिर की थी। सीएम ने सड़कों की मरम्मत तुरंत शुरू करने के निर्देश दिए थे। अफसर शिवराज के सामने पहुंचे तो उन्होंने बताया कि सड़कों को 3 कैटेगरी में बांटा गया है। पहली वो सड़कें जो पूरी तरह खराब हैं और पूरी बनायी जानी है, दूसरी सड़कें वह जिन्हें पेंचवर्क की ज़रूरत है, तीसरी श्रेणी की वे सड़कें जो मलवा डालकर ठीक की जा सकती हैं। हर कलेक्टर को ये फार्मूला बताकर सड़कें ठीक करने का टास्क दिया गया। अब अंदर की खबर ये है कि कमल नाथ सरकार के वक्त जब पीडब्ल्यूडी महकमे के अफसर सड़क सुधार के लिए 1200 करोड़ का प्लान लेकर गए थे, तब कमल नाथ ने केंद्रीय मंत्री के तजुर्बे का इस्तेमाल करते हुए अफसरों को सख्त लहजे में हिदायत दी थी कि ऐसे प्लान तैयार नहीं किया जाता है। सड़कों की मरम्मत का सर्वे करके प्रॉपर प्लान तैयार किया जाता है। अफसरों ने जब सर्वे कराया तो 300 करोड़ रुपए के बजट में सब हो गया। अब शिवराज सरकार के वक्त भी कमल नाथ सरकार के वक्त के तजुर्बे इस्तेमाल किए जा रहे हैं। जो खाली खजाने के दौर में काफी कारगर हैं।

विदिशा में बढ़ी सक्रियता

सीएम के गृह जिला होने की वजह से विदिशा की अहमियत सियासत में खास मायने रखती है। ख़ासतौर पर बीजेपी नेताओं के बीच। यहां सीएम के खास नेताओं की बड़ी तादाद है, जिनका जिले में अलग ही रसूख होता है। इशारों में काम हो जाते हैं। लिहाज़ा बैठकों में जाने और सीएम शिवराज के अलावा किसी और नेता की आवभगत में वक्त बरबाद नहीं किया जाता था। मगर वीडी शर्मा के बाद यहां संगठन की बैठकों और कार्यक्रमों को तवज्जो देने की परंपरा को पूरी ईमानदारी से निभाया जाने लगा है। शिवराज के इर्दगिर्द वाले नेता भी अब बैठकों में दिखाई दे रहे हैं। प्रभारी मंत्री विश्वास सारंग के दौरों के वक्त भी पार्टी प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है। यहां वीडी की विद्यार्थी परिषद के वक्त की टीम को भी ताकत मिली है। सबसे खास बात ये कि संगठन की फिक्र करने वाले लोग शिवराज के खासमखास नेताओं की सक्रियता को देखकर फूले नहीं समा रहे हैं।

बीजेपी की चुनावी मॉनीटरिंग शुरू

बीजेपी ने चुनावी मॉनीटरिंग शुरू कर दी है। नेताओं की सक्रियता के साथ ही माहौल खराब करने वालों की भी लिस्टिंग की जा रही है। अखबार और टीवी चैनलों की निगरानी की जा रही है। देखा जा रहा है कि कौन क्या लिख रहा है और क्या दिखा रहा है। लिस्ट बनाई जा रही है कि कौन खबर के साथ है और किसके हाथ में एजेंडा है। इस काम में कुछ पेशेवर पत्रकारों को भी शामिल किया है, जो ‘बिटवीन द लाइंस’ के महारथी हैं। ये सब विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र किया जा रहा है। इसी हिसाब से चुनाव की मीडिया प्लानिंग भी की जाएगी। बीजेपी इस बार के विधानसभा चुनाव में कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती है। चुनाव को गुडी-गुडी माहौल में लेने की बजाय पूरी चुनौती के साथ लेने की तैयारी है। ये तो शुरूआत भर है। सुना है आगे की मीडिया प्लानिंग में कसावट के साथ नए आयाम भी जोड़े जाएंगे।

कमलनाथ खेमे की घेराबंदी

कांग्रेस में हर उभरता लीडर भले ही जय-जय कमल नाथ करता हो। लेकिन बैकग्राउंड चैक होता है तो उसी नेता के दिग्विजय सिंह से लगाव की रिपोर्ट मिलती है। ऐसा दिग्विजय सिंह के मध्य प्रदेश के लोगों से सीधे जुड़ाव की वजह से लगता है। इसलिए कमल नाथ खेमे के सिपहसालार नेता हर उभरते हुए नेता को हिदायत दे रहे हैं। ऐसे नेताओं में ब्रेन फीडिंग की जा रही है कि आगे बढ़ाने वाले नेता कमलनाथ ही हैं, दिग्विजय सिंह या जयवर्धन सिंह के फेर में पड़ोगे तो फायदा दिग्विजय सिंह को मिलेगा और अपना वजूद खो बैठोगे। हाल ही में युवा नेताओं को अलग-अलग बुलाकर ये खास हिदायत दी गई है। ये वो नेता हैं जो कमल नाथ की जय-जयकार खूब करते हैं। लेकिन दिग्गी पलटन में दिखने का कोई मौका नहीं छोड़ते।

जब ऑर्डर से बेखबर रहा टॉप लीडर

बात ओबीसी मामले को लेकर निकले एक सरकारी आदेश की। दरअसल, सीएम ने एक सीनियर लीडर को सब संभालने का जिम्मा देकर रखा था। साहब भी दिलो जान से जुटे हुए थे। हर मीटिंग में शामिल होना और नतीजों को अमल में लाने की पूरी जिम्मेदारी थी। इसी बीच सामान्य प्रशासन विभाग ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण लागू करने को लेकर आदेश निकाल दिया। ये आदेश सीधे ऊपर के निर्देशों के बाद निकले थे। लेकिन अफसरों से गफलत ये हुई कि उन्होंने मामले को लीड कर रहे साहब को बताए बगैर आदेश दे दिए। एक टीवी चैनल ने साहब को फोन पर लाइव बातचीत के जरिए जानकारी लेना शुरू किया, तो साहब ही हैरान रह गए। जैसे-तैसे मामला संभाला गया फिर तुरंत ही उसी लाइव में मामले को संभाला गया। खोज खबर ली तो पता लगा कि मंत्रालय के जिम्मेदार अफसरों की हीलाहवाली से मंत्रीजी उलझन में पड़ गए थे।

दुमछल्ला…

रिश्वतखोरी के तरीके बदल गए हैं। जो ये समझते हैं कि एक लाख को कोड वर्ड में अभी भी एक पेटी कहा जा रहा है वो अपडेट हो जाएं। एक किलो का मिठाई का डिब्बा चाहिए मतलब एक लाख रुपए लाओ। यदि मिठाई काजू कतली है तो मायने अलग होंगे, ढाई किलो काजू कतली का मतलब है 5 लाख रुपए। मिठाई भी मॉर्निंग वॉक के वक्त ली जा रही है। पार्किंग पर खड़ी कार की खिड़की का एक ग्लास खुला छोड़ा जाता है, मिठाई का डिब्बा रखते ही ग्लास बंद हो जाता है। फिर ड्राइवर गाड़ी को कहीं लेकर जाएगा। साहब किसी और तरकीब से घर लौटते हैं। ये तरीका इंदौर की एक फोन रिकॉर्डिंग से खुला है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)