शिवराज-कमलनाथ का टाइम मैनेजमेंट

इन दिनों शिवराज और कमलनाथ के टाइम मैनेजमेंट में बदलाव का नमूना दिख रहा है। शिवराज कमल नाथ के मैनेजमेंट सिस्टम को फॉलो करते दिख रहे हैं और कमल नाथ शिवराज के सिस्टम को। शिवराज के सिस्टम में मिनिट टू मिनिट ध्यान रखा जा रहा है। इसका ख्याल शिवराज खुद रख रहे हैं। बैठक, मुलाकात, फाइलों पर दस्तखत और आने-जाने में भी ख्याल रखा जा रहा है। लेकिन इसका कमल नाथ की तरह कोई दस्तावेजी शेड्यूल नहीं होता है। भरसक बिज़ी शेड्यूल के बावजूद शिवराज कहीं जल्दबाज़ी में नज़र नहीं आते हैं, बल्कि हर काम सहज़ लहज़े में करते हैं। शिवराज अफसरों ये मुलाकातियों को ये मैसेज देना कतई नहीं भूलते कि उनके पास वक्त की कमी नहीं है। शायद इसलिए कि कांग्रेस सरकार के वक्त कमल नाथ का मिनिट टू मिनिट शेड्यूल सहज मुलाकातों में आड़े आता था। इधर, कमल नाथ भी बदले-बदले नजर आते हैं। वे शिवराज की तरह सहज होने की कोशिश करने लगे हैं। हालांकि फिलहाल ऐसा महसूस नहीं हुआ है, लेकिन कमल नाथ और उनके करीबी इस प्रयास में लगातार जुटे हैं कि कमल नाथ सहज उपलब्ध हैं। बीते वीकेंड पर जीतू पटवारी के घर आयोजित लंच पार्टी में कमल नाथ ने खूब वक्त दिया, वे सहज बैठकर लोगों से मिलते रहे। एक तथ्य यह भी है कि मीडिया के लोगों की मुलाकात कमल नाथ के दफ्तर में महीनों से पेंडिंग भी पड़ी है।

कुनबा बदलने की तैयारी में बीजेपी

बीजेपी ने अब ज़मीनी अमले की खोज-खबर लेने का सिलसिला शुरू किया है। उप चुनाव में यह महसूस हुआ कि जिला, मंडल, वार्ड समेत बूथ स्तर के जिम्मेदार पदाधिकारी आमतौर पर खास गुट ही काबिज है। यदि पार्टी उस खास गुट को बायपास कर कोई काम करना चाहती है तो उसका ज़मीनी अमल नहीं हो पाता है। इसलिए अब नयी लिस्ट की तैयारी शुरू कर दी है। चूंकि पूरा काम वीडी की कोर टीम देख रही है, इसलिए ये साफ हो गया है कि काम को 2023 विधानसभा के पहले मुकम्मल कर दिया जाएगा। इसके बाद अब किसी नेता के इशारे पर काम नहीं होगा, बल्कि पार्टी आलाकमान के आदेश का पालन होगा। अपने ज़मीनी अमले में सक्रिय और पार्टी के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं को इस बार तवज्जो मिलने का रास्ता साफ होता दिखाई दे रहा है। लिहाजा उन चेहरों पर चमक भी दिखाई देने लगी है, जो किसी खास गुट या नेता कि वजह से हाशिये पर खड़े कर दिए गए थे।

निकाय चुनाव से पहले होंगे पंचायत चुनाव

मंत्रालय में जिस तरह की तैयारी चल रही है, उससे साफ हो गया है कि पंचायत के चुनाव निकाय चुनाव के पहले कर लिए जाएंगे। पंचायत चुनाव के लिए जिला स्तर पर आरक्षण का काम ही बाकी रह गया है। जिसकी तारीख मोदी के दौरे के बाद किसी भी वक्त घोषित की जा सकती है। इसके बाद पंचायत चुनाव का ऐलान किया जा सकता है। निकाय चुनाव में फिलहाल काफी रोड़े हैं, पार्टी स्तर पर फिलहाल ये तय होना है कि निकाय चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से किए जाने हैं या अप्रत्यक्ष प्रणाली से। इसका फैसला हाईकोर्ट में पेंडिंग हैं। इसलिए पंचायत चुनाव पहले होने की संभावनाएं बन गई हैं। दरअसल, बीजेपी चार सीटों पर हुए उपचुनाव में 3-1 का स्कोर हासिल कर प्रदेश में अपनी मजबूती का संदेश देने में कामयाब रही है। पंचायत चुनाव में जिला पंचायत अध्यक्ष अपनी पार्टी का बता दिया जाए तो आत्मविश्वास का स्तर और बढ़ जाएगा। इसके बाद निकाय चुनाव में कूदकर कामयाबी हासिल कर ली तो विधानसभा चुनाव की नैया भी पार की जा सकती है। बीजेपी का प्लान है कि एक-एक सीढ़ी चढ़कर ये जाहिर किया जा सके कि जनता का विश्वास शिवराज सरकार पर भरपूर है।

रिटायर्ड आईएएस बनेंगे सीएम के ओएसडी

बीते महीनों में रिटायर हुए एक काबिल आईएएस जल्द ही सीएम हाउस में ओएसडी की कुर्सी पर बैठे दिखाई देंगे। साहब सीएम के काफी करीबी रहे हैं और अपनी योग्यता का लोहा सीएम शिवराज समेत बीजेपी मनवा चुके हैं। साहब के संस्कृति और धर्म के प्रति लगाव से पार्टी पहले से ही प्रभावित है। राजस्व मामलों के ज़बरदस्त एक्सपर्ट समझे जाने वाले साहब सीएम के पसंदीदा अफसरों में से एक रहे हैं। चर्चाएं थीं कि रिटायरमेंट तारीख निकलने के बाद ओएसडी का आदेश निकलने में ज्यादा वक्त नहीं निकलेगा। लेकिन किन्हीं कारणों से वक्त लग गया है। अब मोदी के दौरे के बाद आदेश निकालने की तैयारी है। साहब के बारे में बता दें कि वे शिवराज के काफी करीबी अफसरों में शुमार हैं, जनसंपर्क के साथ वे सीएम सचिवालय भी संभाल चुके हैं। सबसे खास बात यह है कि साहब की सीएम साहब के साथ ट्यूनिंग बेहद अच्छी है। विधानसभा चुनाव से पहले साहब की नियुक्ति बीजेपी को मीठे फल के नतीजे दे सकती है।

आदिवासी प्लान के पीछे एक खास अफसर

शिवराज सरकार जिस आदिवासी प्लान पर काम कर रही है। उसके पीछे एक खास अफसर हैं। ये अफसर सीएम सचिवालय में डिप्टी सेक्रेटरी स्तर पर तैनात हैं। आदिवासी मामलों में योजनाएं, अमलीकरण, आदिवासी मामलों की जानकारी, कमियां, आदिवासी उत्थान का प्लान के मामले में साहब इनसाइक्लोपीडिया माने जाते हैं। वैसे तो साहब काफी पहले ही तैनात होकर काम शुरू कर चुके थे। लेकिन भोपाल में मेगा जनजातीय सम्मेलन की बारी आई तो साहब की काबिलियत का लोहा एमपी की अफसर लॉबी मानने लगी है। ये खास अफसर वैसे तो नेवी से हैं, लेकिन एमपी सरकार में डेपुटेशन पर बुलाए गए हैं। वे संघ के काफी करीब हैं और आदिवासी मामलों को लेकर संघ को काफी इनपुट देते रहते हैं। साहब भी आदिवासियों के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखते हैं। नतीजा आप देख ही रहे हैं, जनजातीय दिवस मनाया गया तो मोदी कैबिनेट ने उसकी मंजूरी दी है। ये टॉप सीक्रेट आपको ज़रूर बताते चलें कि साहब एमपी के ही आदिवासी राजपरिवार से ताल्लुक रखते हैं।

दुमछल्ला…

बात सड़कों के दुरुस्त होने की है, सीएम ने एक महीने पहले सख्त लहजे में बदहाल सड़कें सुधारने के निर्देश दिए थे। काम कछुआ गति से चल रहा था। मोदी के भोपाल पहुंचने का प्रोग्राम बना तो अफसरों ने अंधाधुंध रफ्तार से काम किया। काम ऐसा हो रहा है कि लग रहा है भोपाल की सड़कों पर कालीन बिछा दिया गया है। मंत्रालय के कुछ अफसर कहते सुनाई दिए कि शिवराज का सख्त लहज़े का आदेश जो ना कर सका, वह मोदी के दौरे ने कर दिखाया।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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