बीजेपी दिग्गजों का पीआर फोकस

सीएम शिवराज के पीआर मैनेजमेंट की ज़बरदस्त कामयाबी को देखते हुए अब दूसरे बीजेपी दिग्गजों ने भी अपना पीआर बेहतर करने की विचार बना लिया है। मंत्री भूपेंद्र सिंह इसे लेकर गंभीर रहते ही हैं। वे पीआर के लिए अलग से दफ्तर और स्टाफ रखते रहे हैं। इस बार उनकी पीआर टीम बेहतर नतीजे देने लगी है। इसके बाद अब गोविंद सिंह राजपूत और वीडी शर्मा ने भी इस पर अमल शुरू किया है। ये दिग्गज निजी पीआर मैनेजमेंट टीम को ज्यादा कारगर मान रहे हैं। कांग्रेस में तो कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और अरुण यादव अपनी पर्सनल पीआर टीम पर ही भरोसा करते हैं। लेकिन बीजेपी में संगठन से समर्पित व्यक्ति उपलब्ध कराने की परंपरा रही है। लेकिन अब दिग्गजों को पर्सनल पीआर टीम वाला फार्मूला ज्यादा कारगर लग रहा है।

अफसर के साथ ठगी में खुरपेंच

मामला बीते दिनों एक आईएएस अफसर के साथ हुई ठगी का है। शिकायत साइबर पुलिस को कर दी गई है। लेकिन शिकायत मिलते ही पुलिस ने सिर खुजलाना शुरू कर दिया। सवाल यह कि ऑनलाइन शराब खरीदी की कोशिश ही क्यों की गई? एक ही दिन में तीन बार ऑन लाइन ट्रांजेक्शन्स कैसे कर दिए? चौतरफा एक्टिव रहकर सरकार और डीओपीटी तक को हैरान-परेशान करने वाले अफसर आखिर एक मामूली फोन कॉल पर कैसे ठगे गए? पुलिस ने जांच तो शुरू कर दी है, लेकिन इस आशंका के साथ कि होशियार आईएएस अफसर कहीं इस बहाने फिर किसी को निशाने पर तो नहीं ले रहे हैं।

मंत्रालय में काम आई बच्चों की ट्रिक

मंत्रालय में लंबी-लंबी ऑन लाइन मीटिंग का दौर लगातार चल रहा है। पहली लहर में ही मंत्रालय कोरोना की चपेट में आया तो अफसरों ने ज़बरदस्त एहतियातों का पालन किया। लेकिन इन अफसरों को लंबी-लंबी वर्चुअल मीटिंग बोझिल लग रही हैं और परेशान भी कर रही है। अमूमन ये बोरिंग होती हैं और कई जगह बोलने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती है। ऐसे में स्कूली बच्चों वाली ट्रिक काम आ रही हैं। वर्चुअल मीटिंग में खुद को म्यूट रखने के साथ भी वीडियो भी ऑफ रखकर पूरे काम निपटाए जा रहे हैं। दफ्तर में मेल-मुलाकात के साथ लंच, चाय और फाइलें भी निपटा ली जाती हैं। अब अफसर म्यूट के साथ वीडियो को ऑफ करके वर्चुअल मीटिंग में हाजिरी दे रहे हैं। ये तरीका आया घर के बच्चों से, जो सुबह से ही ऑन लाइन क्लासेस में प्रेजेंट हो जाते हैं, लेकिन सुबह-सुबह टूथ ब्रश से लेकर नाश्ता, चाय भी ऑनलाइन क्लासेस के साथ-साथ ही निपटाते हैं।

सीएम के ओएसडी की तलाश

इन दिनों सीएम के एक और ओएसडी की तलाश तेज़ी से चल रही है। सीएम ने रिटायर्ड अफसर को तलाशने को कहा है। खोज-खबर शुरू हुई तो तेज़ी से लॉबिंग भी शुरू हो गई है। कुछ सीएम के करीबी हैं और रिटायर होकर घर पर बैठे हुए हैं, लेकिन सोशल मीडिया में सक्रिय रहकर अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहे हैं। दूसरी तरफ ऐसे अफसर भी हैं, जो जल्द ही रिटायर होने वाले हैं। चंद महीनों में ही रिटायर होने वाले एक अफसर इस मामले में आगे नज़र आ रहे हैं। वे इन दिनों एक संभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। सबकुछ ठीक रहा तो साहब के रिटायर होते ही ओएसडी का तमगा लग जाएगा।

ऐहतियात ‘खास’ मगर नजरअंदाज हैं ‘आम’

बात एक मंत्रीजी के ख़ास ऐहितायाती कदम की। मालवा से आने वाले ये मंत्री तबादला आदेश की लिस्ट पर सबसे नीचे दस्तखत नहीं कर रहे हैं। बल्कि सूची के एक-एक नाम के आगे दस्तखत करके तबादलों को मंजूरी दे रहे हैं। मतलब साफ है, तबादला उन्हीं का होगा जिनके नाम के आगे मंत्री के दस्तखत होंगे। दस्तखत करने में मंत्रीजी इस बात का ख्याल रख रहे हैं कि किसी बीजेपी सांसद या विधायक ने अनुशंसा की है या नहीं। इस खास ऐहतियात में मंत्रीजी खुद का दामन तो साफ कर रहे हैं। लेकिन इसमें मुख्यमंत्री की वह हिदायत नज़रअंदाज़ हो रही है, जिसमें कहा गया था कि किसी भी ज़रूरतमंद का ट्रांसफर रुकना नहीं चाहिए।

महकमे में आई जलेबी बाई

एक विभाग के कमिश्नर स्तर के एक दफ्तर में एक नए अफसर को चार्ज मिला है। अब तक सारे काम आसानी से हो जाते थे, लेकिन अब हर फाइल में गोले लगाकर मीन-मेख निकाल दिए जाते हैं। हालांकि इस तरह के मीन-मेख गलतियां खत्म करने के मकसद से ही निकाले जाते हैं। कभी खामी छोटी होती है, तो कभी बड़ी भी होती हैं। हर फाइल को गंगा की तरह पवित्र करने की कोशिश है। परफेक्शन की इस कवायद में दूसरा पहलू ये है कि फाइल में गोले लगाए जा रहे हैें। ये परंपरा महकमे पर भारी पड़ रही है। फाइलें पेंडिंग हो रही हैं। काम रुकने लगे हैं। फाइलों में पड़े जलेबीनुमा गोले की वजह से लेटलतीफी की चर्चा इस दफ्तर से मंत्रालय तक शुरू हो गई हैं। लेटलतीफी की वजह पूछते हैं तो एक ही जवाब आता है जलेबी बाई की वजह से। दरअसल, संबंधित अफसर मैडम हैं।

दुमछल्ला…

सागर शहर को संवारने की तैयारी शुरू हो गई है। इस पर नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने बाबूलाल गौर फार्मूला शुरू कर दिया है। यानी जिस तरह गौर ने भोपाल के लिए काम शुरू किया, उसी तर्ज पर अब भूपेंद्र सिंह भी करेंगे। अफसरों की तैनाती शुरू हो गई है। प्लान पर काम शुरू हो गया है। कोशिश इस बात की है कि सागर को न केवल बुंदेलखंड के सबसे बड़े और सलीकेदार सिटी के तौर पर पहचान मिले बल्कि उसकी तुलना भोपाल से की जाए। एक अफसर भोपाल से पहुंचा दिए गए हैं, काम शुरू हो गया है। अब ज़मीन पर असर दिखाई देगा।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)