वैभव बेमेतरिहा,। छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार ल आज उहू मन बढ़ धूम-धाम ले मनावत हे, जेन मन अभी तक छत्तीसगढ़ी संस्कृति के मान-सम्मान के खियाल नइ रखत रहिन. जेन मन हमर सुआ, डंडा नाच, राउत नाचा, हरेली, गेड़ी तिहार म टोका-टाकी करत रहिन. जेन मन के भाव अपमान करे के रहत रहिस. इहाँ तक के मीडिया म घलोक बरोबर जगह छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार ल नइ मिलत रहिस. फेर सब जिनिस उलट गे हे.
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अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ से कई मुख्यमंत्री हुए, छत्तीसगढ़ के नेता ऊँच पदों पर विराजित हुए. लेकिन इन सबके बावजूद छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी, छत्तीसगढ़िया उपेक्षित ही रहा. इसी उपेक्षा के बीच छत्तीसगढ़वासियों को नया राज्य मिला, अपना राज्य छत्तीसगढ़. लेकिन अलग राज्य निर्माण के बाद भी छत्तीसगढ़वासी(जिन्होंने भी छत्तीसगढ़ को दिल से अपनाया) उपेक्षा की पीड़ा से उबर नहीं पाये थे. नतीजा अलग-अलग स्तरों पर स्थानीय बनाम बाहरी, छत्तीसगढ़ियावाद, भाषावाद, संस्कृति, आदि को लेकर राज्य के अंदर ही आंदोलन होने लगे. इसी आंदोलन का असर ये भी हुआ कि छत्तीसगढ़ में लंबे समय बाद सत्ता में परिवर्तन हुआ. सत्ता परिवर्तन के बाद उपेक्षित छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार को पहली बार व्यापक स्तर पर सम्मान मिला जिसका हकदार वह हमेशा रहा.

मुखिया ने पहल की. सीएम हाउस में पहली बार हरेली तिहार का जोर-शोर से आयोजन हुआ. जब मुख्यमंत्री गेड़ी चढ़कर नाचने लगे तो पूरे छत्तीसगढ़ में लोग गेढ़ी चढ़ने लगे. वे लोग भी जो कि छत्तीसगढ़ियों के इस लोक पर्व का मजाक उड़ाथे थे. कुछ इसी तरह से फिर सावन झुला, तीजा-पोरा का भी आयोजन हुआ. इसके बाद अब दीपावली में गोबर्धन पूजा का आयोजन सीएम हाउस में हुआ तो पूरे प्रदेश भर में इसका असर दिखने लगा है.

मुख्यमंत्री एक आम छत्तीसगढ़िया की तरह या कहिए कि सिर्फ भूपेश बघेल होकर गौरा-गौरी में साटा लेते हैं. किसी मुख्यमंत्री को साटा मारना आसान नहीं है, लेकिन अच्छी बात ये कि भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री को अलग कर इसे आसान बना दिया. साटा मारने वाले भी सहज और खुद मुख्यमंत्री भी साटा लेते हुए भी.

मुख्यमंत्री ने अपने गाँव, मिट्टी की खुशबू को भी याद रखा. वे अपने राउत नाचा को नहीं भूले, भले ही कुछ देर के लिए खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर भूल गए. वे मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, नेता बनने से पहले अपने गाँव में जैसे गोबर्धन पूजा मनाते रहे होंगे, उसी रंग, उसी अंदाज़ में वे सीएम हाउस में भी दिखे. सीएम हाउस में पहली बार गोबर्धन पूजा का आयोजन हुआ, राउत नाच हुआ. सीएम दोहा पारकर, डंडा लेकर नाचे भी.

जब कोई मुखिया(मुख्यमंत्री) अपनी मिट्टी और संस्कृति के लिए इसी तरह से समर्पित हो, तो स्वभाविक कि उसका असर भी अच्छा होगा. मुख्यमंत्री की ओर से किए गए इन प्रयासों का असर ये हुआ कि आज हर तरफ छत्तीसगढ़ के तीज-तिहारों की धूम है. अब शायद किसी में यह हिम्मत भी नहीं है कि वे सुआ नाचने वालों का अपमान कर सके, किसी डंडा नाचने वाला का तिरस्कार कर सके, किसी राउत नाचने वाले का उपहास उड़ा सके. वे लोग भी जो शायद मजबूरी में सही मुख्यमंत्री या सरकार को दिखाने के लिए अपने आस-पास छत्तीसगढ़ी संस्कृति के साथ दीपावली(देवारी) तिहार मना रहे होंगे या मनाए होंगे. वास्तव में इन प्रयासों के लिए मुखिया(मुख्यमंत्री) की तारीफ तो की ही जानी चाहिए.

तियाग-तपस्सिया, भक्ति के गढ़ छत्तीसगढ़
सबले सुघ्घर, सबले उज्जर, हमर छत्तीसगढ़