Vaikuntha Chaturdashi: 14 नवंबर को वैकुंठ चतुर्दशी है. ऐसा बहुत कम होता है कि एक ही दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा की जाए. देश में कई हरिहर मंदिर भी हैं. ऐसे में वैकुंठ चतुर्दशी के दिन श्रीहरि और भगवान शिव के एक साथ दर्शन से हर मनोकामना पूरी होती है और संसार मार्ग से वैकुंठ की प्राप्ति होती है.

पुराणों के अनुसार इस दिन किया गया दान, जप आदि दस यज्ञों के समान फल देता है. जीवन के अंत में उसे भगवान विष्णु के निवास स्थान वैकुंठ में जगह मिलती है. जानकारी के अनुसार भारत में सबसे प्राचीन हरिहर मंदिर बिहार के सोनपुर, राजस्थान के उदयपुर, कर्नाटक के हरिहर, मध्य प्रदेश के ग्वालियर, उत्तर प्रदेश के संभल में श्री हरिहर मंदिर हैं.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैकुंठ चतुर्दशी पर विश्व सत्ता का हस्तांतरण होता है. भगवान विष्णु, योग निद्रा से बाहर आकर, फिर से भगवान शिव से संसार पर शासन करने का कार्य प्राप्त करते हैं. इस दिन से, श्री हरि विष्णु संसार के संरक्षक और प्रशासक की भूमिका निभाते हैं. चतुर्मास में भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं.

Vaikuntha Chaturdashi की पूजा कब करें?

Vaikuntha Chaturdashi पर, भगवान विष्णु की पूजा निशिथकाल के दौरान की जाती है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार आधी रात है. इस दिव्य अवसर पर, भक्त विष्णु सहस्रनाम, यानी भगवान विष्णु के एक हजार नामों का पाठ करते हुए भगवान विष्णु को एक हजार कमल के फूल चढ़ाते हैं. इस दिन सुबह-शाम भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा करें और फिर शिवलिंग या शिव की मूर्ति की पूजा करें. इस दिन भगवान विष्णु के मंत्र जाप और भजन करने से वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.