शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्‍यप्रदेश में मोहन सरकार ने कमलनाथ सरकार के एक और फैसले को पलट दिया। अब  नगर पालिका और नगर परिषदों के अध्‍यक्ष को सीधे जनता चुनेगी। इसके लिए चर्चा के बाद संशोधन विधेयक को सदन ने पास भी कर दिया है। एमपी में नगरपालिका-परिषद अध्यक्षों के चुनाव डायरेक्ट होंगे। विधानसभा में नगर पालिका संशोधन विधेयक 2025 पारित पारित हो गया। 

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मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि पहले ढाई साल राइट टू रिकॉल के लिए तय था। अब इसे 3 साल कर दिया गया है। जनता अब जनप्रतिनिधि को तीन साल बाद ही वापस कर सकेगी। साल 1994 में महापौर और अध्यक्ष को अप्रत्यक्ष प्रणाली से पार्षद चुनते थे। लेकिन साल 1997 में दिग्विजय सरकार ने प्रत्यक्ष प्रणाली लागू की। इसके बाद साल 1999 से 2014 तक सीधे जनता ने महापौर और अध्यक्ष को चुना। लेकिन साल 2019 में कमलनाथ सरकार ने फिर अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू कर दी। इससे एक बार फिर पार्षदों को अध्‍यक्ष चुनने का अधिकार मिल गया। साल 2022 में बीजेपी सरकार के दौरान पार्षदों ने ही अध्यक्ष चुने थे। मेयर को जरूर सीधे जनता ने चुना था। अब मोहन सरकार में 2027 के चुनाव में जनता सीधे अध्यक्ष को चुनेगी।


-अब नगर पालिका, परिषद के अध्यक्ष चुनेगी जनता
-पहले पार्षद चुनते थे नगर पालिका, परिषद के अध्यक्ष
-प्रदेश में 2027 में होंगे नगरीय निकाय चुनाव
-प्रदेश में 99 नगर पालिका, 298 नगर परिषद
-2022 में पार्षदों ने चुने थे नगर पालिका, परिषद के अध्यक्ष
-केवल महापौर को जनता ने सीधा चुना था
-1999 से 2014 तक सीधे जनता ने मेयर, अध्यक्ष को चुना
-2019 में कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू की थी

इस फैसले पर अब सियासत भी शुरू हो गई। पूर्व नगरीय विकास एवं आवास विभाग मंत्री जयवर्धन सिंह  ने कहा कि विरोध नहीं किया है, विधेयक में सुधार के लिए कहा है। डेमोक्रेसी की मजबूती के लिए राइट टू रिकॉल का समय 5 साल की बजाय तीन साल का तय किया गया है। उन्होंने कहा कि ये  BJP का केवल चुनावी हथियार है। इस बिल का राजनैतिक लाभ ज्यादा है। इस बिल से क्या पीने का पानी सड़क बिजली मिल जाएगी। इस बिल के बाद छोटे तबके के व्यक्ति को मौका नही मिल पायेगा।

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प्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव से पूरा चुनावी माहौल बनने लगता है। इसी के साथ विधानसभा,लोकसभा चुनाव की तैयारी भी तेज हो जाती। बीजेपी इस फैसले को जनता में भुनाने की कोशिश भी करेगी। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, कि जनता से जुड़े इस फैसला का वह विरोध कैसे करेगी। 

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