(सुधीर दंडोतिया की कलम से)
अटल जी के परिवार पर नजर
कांग्रेस के अंदर लोकसभा प्रत्याशियों के नाम पर मंथन चल रहा है। उम्मीद लगाई जा रही है इस हफ्ते नामों का ऐलान हो जाएगा, लेकिन कांग्रेस की बीजेपी नेताओं पर भी नजर है। भाजपा के भीष्म पितामह अटल जी के परिवार के सदस्य को पार्टी टिकट देने की तैयारी कर रही है। ये नेता बीजेपी सरकार में विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं। विधानसभा चुनाव में भी पार्टी छोड़ने की इनकी अटकलें लगाई गई थी, अब देखना होगा लोकसभा चुनाव में क्या होता है।
जाति के कारण बचा टिकट
मध्यप्रदेश में बीजेपी ने पहली लिस्ट में चार ऐसे नेताओं को टिकट दिया है, जो विधानसभा का चुनाव हारे हैं। इनमें से एक नेता सिर्फ इसलिए टिकट पा गए, क्योंकि वो पिछड़ा वर्ग से आते हैं। उनके लोकसभा इलाके मे जमीनी स्थिति उनकी खराब है। इसके बावजूद पार्टी ने दूसरी सीटों पर समाज को साधने के लिए आखिरी समय पर ये फैसला लिया। इस मामले में ये कह सकते हैं कि जाति ने टिकट को बचा लिया।
बिना काम के मंत्रीजी
सरकार में जगह मिली तो पहली बार विधायक बने नेताजी का तो भाग्य ही उदय हो गया। पद मिला राज्यमंत्री का और मिला भी तो अच्छा-खासा विभाग। नेताजी जननेता तो थे ही, मंत्री बनते ही क्षेत्र के मतदाताओं की थोक में सिफारिश आने लगी और मंत्रीजी ने उन्हें पूरा करने का आश्वासन भी दिया। अब नेताजी की दुविधा ये है कि उन्हें पद और प्रभार तो मिल गया लेकिन अब तक विभाग के काम की कोई जिम्मेदारी नहीं मिलने से काम करने का मौका नहीं मिल रहा। अब मतदाताओं की आ रही सिफारिशें मंत्रीजी के कमरे में धूल खा रही हैं और मंत्रीजी चाहकर भी कोई फैसला नहीं करवा पा रहे।
हम कांग्रेस में हैं, लेकिन नेता वही हैं
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी बीजेपी के दफ्तर पहुंचे तो आनन-फानन में कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष सहित बड़े नेताओं की हलचल शुरू हुई। इस बीच ये आश्वस्त करने सुरेश पचौरी के समर्थक भी पीसीसी पहुंचे कि वो कांग्रेस में ही हैं और पचौरी के साथ भाजपा नहीं जा रहे। पचौरी समर्थकों को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में देख प्रदेश अध्यक्ष का सीना भी चौड़ा हुआ, लेकिन आपसी बातचीत में नेता यह कहते हुए नजर आए कि हम तो कांग्रेस में ही हैं, लेकिन हमारे नेता तो वही हैं।
व्यवस्था फिर हो गई भंग
मीडिया में विषय आधारित पार्टी का पक्ष कौन रखेगा। प्रदेश के प्रमुख विपछी दल में कुछ दिन पहले ही नए सिरे से फिर व्यवस्था लागू हुई। पहले-चैथे दिन सब कुछ इसी व्यवस्था से ही तय हुआ कि कौन सा प्रवक्ता किस विषय पर और कौन से चैनल पर पार्टी का पक्ष रखेगा। बीच में थोड़ी ढील हुई और व्यवस्था फिर पुराने ढर्रे पर चली गई। कौन कहां, कब, किस विषय पर जा रहा है। अब ये सब स्वतंत्रता पूर्वक होने लगा है।
मंत्रालय जैसे कलेक्टर कार्यालय हो
मध्य प्रदेश के कलेक्टर कार्यालयों में ये आम व्यवस्था है कि काम से कलेक्टोरेट आने वाले लोगों को साहब अपने कैबिन में न बुलाकर कैबिन के बाहर ही सबसे बारी-बारी से चार-चार, छह-छह सेकेंड के लिए मिल लेते हैं, लेकिन मंत्रालय में बैठने वाले बड़े साहबों का अपना एक अलग प्रोटोकॉल है और बातचीत कैबिन में ही होती है। लेकिन कुछ समय से मंत्रालय के कुछ विभागों में कलेक्टरेट जैसा नजारा देखने को मिल रहा है। जहां मिलने का इंतजार करने वालों से साहब कैबिन से बाहर आकर ही मुलाकात करते हैं। अब काम से आने वाले लोगों के आवेदनों का क्या होता है ये सिर्फ साहब ही जानते हैं।
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