दिल्ली. नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है. हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है. इस साल नाग पंचमी 13 अगस्त को मनाई जाएगी. इस तिथि पर नागदेवता की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है. पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं इसलिए इस दिन उनका पूजन करने से अनिष्ट टलता है और शुभ की प्राप्ति होती है.

गरुड़ पुराण में भी कहा गया है, कि नागपंचमी पर घर में अनंत सहित प्रमुख नागदेवता का सचित्र पूजन करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कई भारतीय पौराणिक कथाओं में नाग और मनुष्य का गहरा संबंध बताया गया है. माना जाता है कि शेषनाग के सहस्त्र फनों पर ही पृथ्वी का भार है.

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भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में शेषनाग पर विश्राम पाते हैं. शिवजी के गले में सर्प के हार है. कृष्ण-जन्म पर नाग देवता की सहायता से ही वसुदेव यमुना पार करके वृंदावन आते हैं. समुद्र-मंथन के समय देवताओं की मदद के लिए वासुकि आगे आए थे. वर्षा ऋतु में जब सांपों के बिल में पानी भर जाता है तो वह बाहर निकल आते हैं और तब उन्हें मारा न जाए बल्कि उन्हें सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया जाए इसकी स्मृति कराने के लिए ही संभवत श्रावण मास में यह पर्व आता है.

ये है नाग पंचमी की पूजा विधि

  • प्रातः उठकर घर की सफाई कर नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएँ.
  • पश्चात स्नान कर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
  • पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएँ. कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी खाना खाया जाता है.
  • इसके बाद दीवाल पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है. फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवाल पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति बनाते हैं.
  • कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पाँच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजते हैं.
  • सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ा आते हैं.
  • और फिर दीवाल पर बनाए गए नागदेवता की दधि, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं.
  • इसके पश्चात आरती कर कथा श्रवण करना चाहिए.