आज वर्ल्ड टॉयलेट-डे है. दुनिया को स्वच्छता के प्रति जागरुक करने और शौचालय का महत्व समझाने के लिए वर्ल्ड टॉयलेट ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक जैक सिम 2001 में पहली बार इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी. भारत में बिंदेश्वर पाठक के प्रयासों से ही 19 नवंबर 2013 में संयुक्त राष्ट्र ने वर्ल्ड टॉयलेट-डे को मान्यता दी. उन्हीं के प्रयासों से एक संग्रहालय दिल्ली में स्थापना किया है.

देश का ऐसे संग्रहालय कहीं ओर नहीं मिलेगा. जहां शौचालय के 4000 साल पुराने इतिहास को संरक्षित कर रखा गया है. पश्चिमी दिल्ली के द्वारका स्थित सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स अन्य संग्रहालयों से हटकर है. यहां 2,500 ईसा पूर्व से स्वच्छता के विकास को दर्शाते दिलचस्प तथ्य चित्र और वस्तुओं का अद्भुत संग्रह है.

कब हुआ फ्लश शौचालय का आविष्कार

मोहनजोदड़ो की खुदाई में स्नान घरों में निजी शौचालय के अस्तित्व की पुष्टि होती है. यह स्पष्ट नहीं है कि सबसे पहले फ्लश शौचालय का आविष्कार किसने किया था. हालांकि, उत्तर-पश्चिम भारत में पुरातात्विक खुदाई से 4000 साल पुरानी जल निकासी प्रणाली का पता चला है, जो शौचालय हो सकता है. यह स्पष्ट नहीं है कि यह वास्तव में मामला है या नहीं.

हालांकि, पहले शौचालय का निर्माण करने का सम्मान या तो स्कॉट्स (3000 ईसा पूर्व में एक नवपाषाण बस्ती में) या यूनानियों को जाता है, जिन्होंने फ्लशिंग पानी की आपूर्ति से जुड़े बड़े मिट्टी के बर्तनों के साथ पैलेस ऑफ नोसोस (1700 ईसा पूर्व) का निर्माण किया था.

विभिन्न प्रकार की सीटों का संग्रह

अपने आप में खास इस संग्रहालय में विभिन्न प्रकार की शौचालय सीटें प्रदर्शित हैं. यहां लकड़ी से लेकर सजावटी, विद्युत से लेकर फूलों के विभिन्न प्रकार के शौचालय लोगों को चकित करते हैं. सुलभ शौचालय का कंसेप्ट देने वाले सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने ऑस्ट्रिया की फ्रीट्ज लिस्चाका और दुनिया भर के 80 से 90 पेशेवरों की मदद से स्थापित किया.

इस संग्रहालय में प्राचीन मिस्र, बेबीलोनिया, ग्रीस, जेरूशलम, क्रीत और रोम में इस्तेमाल में लाए जाने वाले शौचालयों और स्व’छता की प्रथाओं पर आधारित लेख, चित्रकारी और प्रतिरूप देखने को मिलते हैं. यह संग्रहालय लोगों को नि: शुल्क प्रवेश देता है और राष्ट्रीय अवकाश के अलावा हर दिन खुला रहता है.

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