Emergency 1975: आज से ठीक 50 साल पहले साल 1975 में 25 और 26 जून की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। आज इस आपातकाल को 50 साल पूरे हो गए। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। बाद में केंद्रीय कैबिनेट ने इस उद्घोषणा का अनुमोदन किया था। इसी के साथ देश ने अगले 19 महीने ऐसी स्थिति देखी, जिसे भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय माना जाता है। 

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आज 50 साल बाद भी आपातकाल कांग्रेस पार्टी का पीछा नहीं छोड़ रहा है। उस उसय तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी अपने पास रखने के लिए जो तानाशाही फैसले लिए उसका खामियाजा शायद कांग्रेस को हमेशा भोगना पड़ेगा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तानाशाही फैसले के विरोध में उस समय की सभी राजनीति पार्टियां और प्रेस सड़कों पर उतर आई थी।

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उस समय इंदिरा गांधी ने तानाशाही भरे कई फैसले लिए थे। इन्हीं फैसलों में से एक है नसबंदी कार्यक्रम। उस समय लोगों को जबरदस्ती पकड़कर नसबंदी किया गया था। नसबंदी का ये किस्सा दिल्ली के तुर्कमान गेट से कुछ ज्यादा की करीब है। : दिल्ली के तुर्कमान गेट में आज भी इमरजेंसी के जख्म ताजा हैं। बुलडोजर, गोलीबारी और जबरन नसबंदी जैसे अत्याचारों की कहानियां अब भी बुजुर्गों की आंखों में जीवित हैं। जबरन नसबंदी अभियान, अचानक हुए घरों के ध्वस्तीकरण और परिवारों के बिछड़ने की पीड़ा आज भी बुजुर्गों की आंखों में साफ दिखाई देती है।

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तो चलिए हम आपको अतित के उस पन्ने की तरफ लेकर चलते हैं, जहां जानेंगे आपातकाल के दौरान दिल्ली के तुर्कमान गेट के लोगों को कौन सी यातना दी गई थी। उससे पहले जानते हैं इमरजेंसी लगाने की नौबत क्यों आई?

इंदिरा गांधी ने क्यों लगाया था आपातकाल-1975

दरअसल, 1975 में आपातकाल लागू करने का ऐलान इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद आया था। हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका पर 12 जून 1975 को फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली से निर्वाचन को रद्द कर दिया था और अगले 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध भी लगा दिया था। इसके बाद इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग शुरू हो गई थी।देश में जगह-जगह आंदोलन होने लगे थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था। अपने हाथों से पीएम की कुर्सी जाते देखकर तत्कालिन प्रधानमंत्री ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इसके बाद विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और लोगों पर शुरू हुआ था इंदिरा गांधी का आपातकाल वाला टॉर्चर।

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क्या है तुर्कमान गेट का इतिहास?
नंद नगरी, जहां इन्हें बसाया गया था, उस समय केवल खुला मैदान था। न पानी, न शौचालय, न कोई मकान- महिलाएं झुंड में बाहर जाती थीं, क्योंकि डर हर वक्त साथ चलता था। अब्दुल हमीद याद करते हैं कि उनके मोहल्ले के लोग जब अपने घर बचाने की कोशिश कर रहे थे, तभी पुलिस ने फायरिंग कर दी और लोग घायल हो गए। ये सिर्फ घरों का उजड़ना नहीं था, यह पूरी जिंदगी का बिखरना था। इसके साथ ही टर्कमान गेट नसबंदी अभियान की भी चपेट में आ गया, जिसे उस समय संजय गांधी की अगुवाई में चलाया गया।

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नसबंदी करवाने वालों को घी, रेडियो और 250 रुपये दिए गए- रजिया 
75 वर्षीय रजिया बेगम, जो उस वक्त यूथ कांग्रेस से जुड़ी थीं, बताती हैं कि उन्होंने खुद संजय गांधी को जामा मस्जिद के पास भीड़ दिखाते हुए नसबंदी शिविर लगाने की सलाह सुनी। रजिया खुद घर-घर जाकर लोगों को ‘छोटा परिवार’ का संदेश देती थीं, लेकिन उन्हें अपमान का सामना करना पड़ता। लोग डर और गुस्से में थे, और जब बुलडोजर रजिया के घर तक पहुंचा, तो वह भी प्रदर्शन में शामिल हुईं और घायल हो गईं। उस दौर में नसबंदी करवाने वालों को घी, रेडियो और 250 रुपये तक दिए जाते थे, लेकिन यह मुआवजा उनके टूटे घरों और बिखरे सपनों की भरपाई नहीं कर सका।

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शाहिद गंगोई, उस वक्त कॉलेज में फर्स्ट ईयर के छात्र थे, जब उन्हें स्कूल में बताया गया कि उनके घर को गिराया जा रहा है। वह दौड़ते हुए पहुंचे, लेकिन तब तक उनका घर मिट्टी में मिल चुका था और उनके पिता नमाज के दौरान गिरफ्तार कर लिए गए थे। गलियों में आंसू गैस, टूटा कांच और चीखें थीं और फिर पुलिस ट्रकों में भरकर उन्हें नंद नगरी भेज दिया गया।

अब आधी सदी बीत चुकी है, लेकिन तुर्कमान गेट में आज भी वो दर्द सांसे भर रही है- किसी की खामोश सिसकी में, किसी टूटी ईंट में तो किसी बुजुर्ग की झुकी आंखों में।

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