सुशील सलाम, कांकेर. 21वीं सदी के भारत में जहां देश चांद पर पहुंच चुका है, वहीं कांकेर जिले के गोण्डाहुर ग्राम पंचायत के आश्रित गांव मतालकुरूम आज भी आदिम युग जैसी जिंदगी जीने को मजबूर है. विकास के हर दावे को झुठलाता यह गांव आज भी सड़क, बिजली, पीने के साफ पानी और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है.

करीब 150 की आबादी वाले इस गांव में 25 घर हैं और सभी ग्रामीण आदिवासी हैं, लेकिन आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी यहां न तो बिजली पहुंची, न पक्की सड़क और न ही पीने के स्वच्छ पानी की सुविधा है. गांव के लोग आज भी झिरिया के प्रदूषित पानी को पीने को मजबूर हैं, जिससे अक्सर बच्चे और ग्रामीण बीमार पड़ते हैं.

बिजली नहीं, लालटेन का सहारा

बिजली नहीं होने की वजह से बच्चों को आज भी लालटेन की रौशनी में पढ़ाई करनी पड़ती है. मोबाइल चार्ज करना, रात को रोशनी में काम करना या किसी भी तरह की आधुनिक सुविधा महज एक सपना बनकर रह गई है.

न स्वास्थ्य सुविधा, न आंगनबाड़ी

गांव में एक भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, जिससे ग्रामीणों को इलाज के लिए 3 किलोमीटर जंगल पार कर गोण्डाहुर पंचायत तक पहुंचना पड़ता है. वहीं आंगनबाड़ी केंद्र का भी अभाव है, जिससे गांव के मासूम बच्चे ना तो पौष्टिक आहार पा रहे हैं और ना ही प्राथमिक शिक्षा पा रहे.

झिरिया का पानी पीने की मजबूरी

गांव के अंजोर राम उइके बताते हैं कि गांव में मात्र एक हैंडपंप है, लेकिन उसका पानी आयरन युक्त है, जिसे पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. ऐसे में ग्रामीण झिरिया का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. बरसात के मौसम में यह समस्या और भयावह हो जाती है, क्योंकि झरिया का पानी और भी गंदा हो जाता है.

ग्रामीण गुहार रहे पर सुनवाई नहीं

ग्रामीणों का कहना है कि वे कई बार शासन-प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई. अब वे निराश हो चुके हैं और खुद को विकास की दौड़ से बहुत पीछे महसूस कर रहे हैं. ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से मांग की है कि इस गांव को मूलभूत सुविधाएं जल्द से जल्द उपलब्ध कराई जाए, ताकि यहां के लोग भी एक सामान्य और सम्मानजनक जीवन जी सकें.