Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

अफ्रीका से समाधान (1)

केंद्र सरकार ने देश के सर्वाधिक सूखे जिलों की सूची में बेमेतरा को शामिल किया है. बेमेतरा की जमीन सूख चुकी है, नदी-नाले संकटग्रस्त हैं और जिला प्रशासन अफ्रीकी कहावतों के जरिए इस संकट से उबरने का समाधान ढूंढ रहा है. दरअसल पिछले दिनों विश्व पर्यावरण दिवस पर बेमेतरा में एक संगोष्ठी हुई. इस संगोष्ठी के लिए कलेक्टर ने खूब मेहनत कर रखी थी. कलेक्टर का प्रेजेंटेशन अंग्रेजी में था, लेकिन लोगों की सुविधा के लिए वह हिंदी में समझा रहे थे. उनके प्रेजेंटेशन में अफ्रीकी तस्वीरें, अफ्रीकी किस्से और कहानियां और यहां तक की अफ्रीकी कहावतें भी थी. संगोष्ठी में सरकार के मंत्री और आला अधिकारी थे, उन्हें समझने में वक्त लग गया कि बेमेतरा की समस्या का हल आखिर अफ्रीका से कैसे ढूंढा जाएगा? इसे लेकर संगोष्ठी में खूब कानाफूसी हुई. वहां मौजूद लोग एक-दूसरे से सवाल पूछने लग गए कि क्या कलेक्टर साहब को राज्य के भीतर कोई उदाहरण नहीं मिला? राज्य छोड़िए, क्या देश के भीतर एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिला कि वह इस समस्या का समाधान ढूंढने सीधे अफ्रीका पहुंच गए! एक मंत्री ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि लगता है कि कलेक्टर ने रात भर अफ्रीकी किताबें पढ़ी थी. बहरहाल, बेमेतरा क्रिटिकल जिला घोषित है, ऐसे में यह अपेक्षित था कि चर्चा स्थानीय संदर्भों, संसाधनों और समाधान पर केंद्रित होती, लेकिन जब समस्या स्थानीय हो और समाधान की भाषा विदेशी, तो जनता और जनप्रतिनिधियों के लिए उसे समझना और आत्मसात करना कठिन हो जाता है. कलेक्टर साहब की सोच वैश्विक है. सूबे की सरकार को उनकी इस खूबी को देखते हुए एक ऐसा उपक्रम बनाना चाहिए, जहां उनका सदुपयोग हो सके.

दो मिनट का मौन (2)

संगोष्ठी चल ही रही थी कि वहां मौजूद लोगों को बताया गया कि जिले की चार प्रमुख नदियां सूख चुकी हैं. शिवनाथ, सुकरी, सकरी और हाफ नदी में पानी ही नहीं है. शिवनाथ तो 70 सालों में पहली बार इस तरह  निर्दयी हुई कि पानी-पानी के लिए लोगों को तरसा दिया. वहां मौजूद एसीएस रिचा शर्मा भावुक हो उठी, उन्होंने कहा, अगर नदियां मर चुकी हैं, तो दो मिनट का मौन रख लें. दरअसल यह साधारण टिप्पणी नहीं थी, यह जल संकट के प्रति हमारी संवेदनहीनता का सजीव दर्पण थी. नदियों का सूख जाना चेतावनी है, सूचना मात्र नहीं. सभ्यता नदियों के किनारे पनपती रही हैं. नदियों का सूख जाना, सभ्यता पर संकट है. बेमेतरा के किसानों को शिवनाथ, सुकरी, सकरी और हाफ नदी की स्थिति अधिक जाननी है, न कि अफ्रीकी नाइजर नदी की कहानी. नदी की चिंता तब होगी जब प्रशासनिक शुष्कता खत्म होगी. 

मंत्री का प्यून

मंत्री का प्यून होना भी किस्मत की बात है. पांच साल बाद यह तय नहीं है कि मंत्री की कुर्सी बचेगी या नहीं? लेकिन प्यून की सरकारी नौकरी पक्की होगी, इसकी पूरी गारंटी है. मंत्री अपने कोटे से एक गैर सरकारी प्यून रख सकता है. पाँच साल बीतने के बाद को टर्मिनस ग्राउंड पर उस प्यून का सरकारी करण हो जाता है. वह सरकारी नौकर बन जाता है. प्यून की भर्ती के लिए ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट करने वाले युवाओं के बीच होने वाली मारा मारी से बचते हुए मंत्री का प्यून मंत्रालयीन कैडर में वाइल्ड कार्ड एंट्री पा लेता है. इस एंट्री के साथ ही उसे हर पांच साल में प्रमोशन की गारंटी मिलती है. पहले सहायक ग्रेड 3, फिर सहायक ग्रेड 2, इसके बाद सहायक ग्रेड 1 और फिर सेक्शन ऑफिसर बनते हुए डिप्टी सेक्रेटरी के पद पर वह काबिज होता है. अगर नौकरी की शुरुआत 18 साल की उम्र से हुई हो, तब की स्थिति में मुमकिन है कि एक प्यून ज्वाइंट सेक्रेटरी भी बन जाए. यूपीएससी की कठिन परीक्षा पास कर आईएएस बनने वालों को अपने अथक संघर्ष से कोई सीधी चुनौती देता है, तो वह मंत्रालय का एक प्यून ही है. अगली बार किसी मंत्री के बंगले जाए, तो वहां चाय-पानी पिलाने वाले प्यून को साधारण आदमी न समझे. उसके हाथों की लकीरों में एक लकीर ऐसी है, जो उसे एक दिन बड़ा आदमी जरूर बनाएगी. 

हेकड़ी 

राजधानी के एक सीमावर्ती जिले की बात है. एक मालवाहक गाड़ी में मनुष्यों की ढुलाई हो रही थी. मालवाहक गाड़ियों में मनुष्यों की ढुलाई की कुछ घटनाओं में दर्जनों लोग काल के गाल में समा गए हैं. इन घटनाओं के बाद सरकार सख्त हुई. सरकार ने मालवाहक गाड़ियों से मनुष्यों की ढुलाई पर रोक लगा दी. सरकार की रोक थी, यही सोचकर एक महिला डीएसपी ने अपने जिले में मनुष्यों की ढुलाई कर रहे एक मालवाहक गाड़ी पर पुलिस का डंडा चला दिया. डंडा मालवाहक गाड़ी पर चलाया था, मगर डंडे की चोट सांसद पति के अहंकार को लग गई. वह सीधे थाने पहुंच गए. डीएसपी को खूब खरी खोटी सुना दी. वर्दी की इज्जत को तार-तार कर दिया. डीएसपी ने एसपी से सारा वाक्या साझा किया. जिले के एसपी ने वह चश्मा पहन रखा है, जिसमें सिर्फ कर्तव्य और कानून की लकीर साफ-साफ दिखती है. जिस वक्त सूबे के कई जिलों के एसपी अपनी करतूतों से परफॉर्मेंस के सूचकांक पर गिरावट का नया रिकॉर्ड बना रहे हैं, ठीक उस वक्त इस जिले के एसपी की दिलेरी ने बिरादरी की थोड़ी इज्जत बचाई है. एसपी ने सांसद पति की हेकड़ी निकाल दी. मालूम चला है कि इस घटना के बाद सांसद खुद एसपी दफ्तर पहुंच गईं और न केवल पूरे मामले पर सफाई दी, बल्कि अपने पति की करतूत के लिए माफी भी मांगी. एसपी साहब फील्ड पर ज्यादा सक्रिय न दिखते हो, मगर इतना तो जरूर है कि अब तक उनकी वर्दी मटमैली नहीं हुई है. वर्दी पर उठने वाली उंगलियों को मरोड़ने का हुनर उन्हें मालूम है. बिरादरी के लोग कहते हैं कि एसपी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं, मगर उन्हें हरी झंडी नहीं मिल रही है.

चीफ सेक्रेटरी कौन?

इस महीने की आखिरी तारीख में चीफ सेक्रेटरी अमिताभ जैन रिटायर हो जाएंगे. रिटायरमेंट नज़दीक है, लेकिन नए चीफ सेक्रेटरी को लेकर सुगबुगाहट दिखाई नहीं पड़ रही. जब रिटायरमेंट को लेकर महीनों बाकी थे, तब सुगबुगाहट तेज थी और अब जब रिटायरमेंट के दिनों की उल्टी गिनती शुरू हो गई है, तब फुसफुसाहट भी नहीं. लगता है हर कोई इंतज़ार कर रहा है. राज्य की सरकार केंद्र के इशारे का इंतज़ार, मौजूदा चीफ सेक्रेटरी राज्य सरकार के इशारे का इंतज़ार और संभावित चेहरे अपनी-अपनी नई भूमिका का इंतज़ार. फ़िलहाल इंतज़ार के अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं है. भाजपा शासित राज्यों में चीफ सेक्रेटरी तय करने के समीकरण अब बदल गए हैं. सब कुछ राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर नहीं करता. केंद्र की भूमिका बड़ी हो गई है या शायद बड़ी बना दी गई है. पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री अपने पसंदीदा अफसर राजेश राजौरा को चीफ सेक्रेटरी बनाना चाहते थे. मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में यह मैसेज भी था. मंत्रालय में राजेश राजौरा का कमरा गुलदस्तों से भर गया था. किस्म-किस्म के फूलों से किस्म-किस्म की खुशबू आ रही थी, मगर जब आदेश जारी हुआ, तब उस पर अनुराग जैन का नाम था, जिन्हें दिल्ली से भेजा गया था. फूलों की खुशबू आर्टिफ़िशियल निकली. लगता है साय सरकार ने इस घटना से सबक लिया है. निगाहें केंद्र की ओर है और केंद्र है, जो इशारा ही नहीं कर रहा. इस बीच चर्चाओं में समीकरण भी तरह-तरह के बन रहे हैं. एक चर्चा यह है कि अमिताभ जैन को एक्सटेंशन मिल सकता है. छह-छह महीने के दो एक्सटेंशन पाकर वह करीब एक साल तक चीफ सेक्रेटरी बने रह सकते हैं. एक चर्चा है कि दिल्ली से एसीएस सुब्रत साहू के पक्ष में मजबूत पैरवी आई है. एक चर्चा है कि मध्य प्रदेश की तर्ज पर दिल्ली में पदस्थ किसी अफ़सर को भेजा जा सकता है.  एक चर्चा है कि एसीएस मनोज पिंगुआ प्रशासनिक महकमे के नए कप्तान बन सकते हैं, लेकिन इसके लिए सरकार को कई सीनियर्स बायपास करने होंगे. बहरहाल हर तरफ चर्चा ही चर्चा है. ठोस कुछ नहीं दिख रहा सिवाय इस सवाल के कि अगला चीफ सेक्रेटरी कौन होगा? 

हाल ए डीजीपी

न जाने कौन सी अड़चन आ खड़ी हुई है कि पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति भी अधर में लटक गई है? डीपीसी के लिए राज्य की ओर से चार नाम भेजे गए थे. यूपीएससी ने दो नामों का पैनल बनाकर राज्य सरकार को भेज दिया. अब इन दो नामों में से एक नाम पर मुहर लगना है. एक हैं प्रभारी डीजीपी अरूण देव गौतम और दूसरे हैं हिमांशु गुप्ता. आला अफसर कहते हैं कि यूपीएससी से पैनल आने के बाद आदेश जारी होना था, मगर यह ठहर गया. अब दिन गुजर रहे हैं, लेकिन आदेश जारी नहीं हो रहा. टकटकी निगाह जमाए हर कोई इंतजार कर रहा है. कोई कहता है कि राजस्थान के रास्ते पैरवी आई है, कोई कहता है कि सरकार में किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन रही. कोई कहता है कि चार नामों के पैनल में से जो दो नाम डीपीसी में कट गए उन लोगों ने अड़चन लगा दी है, जिसकी वजह से सरकार फैसला नहीं कर पा रही. चर्चाओं पर किसका रोक है. जितने लोग उतनी बातें. मगर यह हैरान करता है कि यूपीएससी के भेजे गए नामों में से किसी एक नाम को चुनने के लिए आखिर सरकार इतना वक्त क्यों ले रही है? सरकार को झट से फैसला ले लेना चाहिए. सरकार कहती है कि ला एंड आर्डर सरकार की प्राथमिकता में है और डीजीपी चुनने के लिए सिवाए इसके कोई दूसरा एजेंडा भी नहीं होना चाहिए.