कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री और सिंधिया राजपरिवार के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों ग्वालियर चंबल अंचल के प्रवास पर है। इस दौरान वे अपने राजपरिवार की शाही परंपरा के तहत महाराजबाड़ा गोरखी स्थित देवघर पहुंचे। सिंधिया परिवार के आराध्य और मार्गदशक बाबा मंसूर शाह औलिया के उर्स में शामिल हुए। उन्होंने उनकी शाही परंपरा के तहत पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया।
दरअसल, सिंधिया राज घराने की पंरपरा के तहत केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराजबाड़ा के गोरखी परिसर में स्थित देवघर पहुंचे। वहां उन्होंने परंपरागत अंदाज में धोती पहन और ओढ़कर बाबा मंसूर शाह औलिया की इबादत की। यहां फूलों का गुम्बद सजाया। सिंधिया तब तक वही बैठकर इंतजार करते रहे, जब तक उस गुम्बद से एक फूल नीचे नहीं गिर गया। इस बीच परंपरागत अंदाज में वाद्य यंत्रों की धुन के साथ भजन होते रहे। जैसे ही फूल गिरा, वैसे ही उन्होंने उसे भक्ति भाव से उठाया और मत्था टेका, फिर वहां मौजूद सिंधिया राजशाही परिवार के पुराने सरदारो और लोगों के परिजनों ने उन्हें बधाई दी।
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इबादत की ये है कहानी
सिंधिया परिवार सूफी औलिया की इबादत की परंपरा को 300 साल से अधिक समय से निभा रहा है। इसके पीछे की कहानी बहुत रोचक है। बताया जाता है कि मंसूर शाह ने ही सिंधिया परिवार को राजवंश में परिवर्तित होने का आशीर्वाद दिया था और साथ में आधी रोटी दी थी। यह रोटी आज भी सिंधिया परिवार के पास सुरक्षित है। सिंधिया राजशाही के संस्थापक महान मराठा सेना नायक महाद जी के गुरु औलिया मंसूर शाह सोहरावर्दी थे। मंसूर शाह का मूल स्थान महाराष्ट्र के बीड जिले में है और सिंधिया परिवार भी मूलतः महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव से संबंध रखता है।
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साल में तीन बार परंपरागत पूजा
सिंधिया परिवार की ओर से ग्वालियर के महाराजबाड़ा पर देवघर नाम से मंदिर बनवाया था। इसके गर्भगृह में सिंधिया परिवार के कुलदेवता ज्योतिबा नाथ महाराज के अलावा सभी हिन्दू देवी और देवताओं की प्रतिमाओं का विग्रह है। इसी में बाबा मंसूर शाह के अवशेष भी सुरक्षित हैं। इनकी नियमित पूजा की जाती है। गौरतलब है कि राजवंश की परंपरा के अनुसार वर्ष में कम से कम तीन बार राज परिवार के वर्तमान मुखिया यहां तय राजशाही परिधान में परंपरागत पूजा करने जरूर पहुंचते हैं। खासकर के विजयादशमी, श्राद्ध पक्ष की द्वितीया और मंसूर शाह के उर्स के मौके पर, इसी परंपरा के तहत ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उर्स में शामिल हुए।

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