पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) की संयुक्त टीम सैटेलाइट डाटा से हर दिन पंजाब-हरियाणा में होने वाली आगजनी की घटनाओं पर निगरानी रख रही है। टीम के अनुसार बीते 23 से 29 सितंबर तक पराली जलाने के करीब 150 मामले सामने आ चुके थे। हरियाणा से ज्यादा पंजाब के किसान पराली जला रहे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि धान की कटाई शुरू होने के साथ ही पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही हैं और अक्टूबर–नवंबर में इनकी संख्या और तेजी से बढ़ सकती है। पीजीआई से इस टीम का नेतृत्व सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डाॅ. रविंद्र खैवाल, जबकि पीयू का नेतृत्व पर्यावरण विभाग की डाॅ. सुमन मोर कर रही है। डाॅ. रविंद्र खैवाल ने बताया कि वर्ष 2021 की तुलना में इस वर्ष अब तक करीब 80 प्रतिशत मामलों में गिरावट दर्ज की गई है।

डाॅ. खैवाल व डाॅ. सुमन ने बताया कि हमारी टीम बीते दस वर्षों से लगातार पराली जलाने के मामलों पर निगरानी रखने के लिए सैटेलाइट की मदद ले रही। बीते वर्षों के अध्ययन के मुताबिक पंजाब में पराली जलने का प्रतिशत हर वर्ष 80 से 85 प्रतिशत रहता है, जबकि हरियाणा में यह प्रतिशत 15 से 20 प्रतिशत रहता है। पंजाब में अमृतसर, गुरदास, पठानकोट समेत अन्य जिलों में सबसे अधिक पराली को जलाने के मामले सामने आते है। वहीं, हरियाणा के करनाल, सिरसा और हिसार जैसे जिले इसमें शामिल है।

हर वर्ष की तरह पंजाब-हरियाणा की पराली का धुआं चंडीगढ़ वासियों की परेशानी बढ़ाने वाला है। पराली के धुएं का शहर में नुकसानदायक असर दिखता है। विशेषज्ञों के अनुसार पराली और दीवाली के धुंए के कारण शहर में माह के अंक तक एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 पार पहुंच सकता है।

पराली के धुएं में जहर होता है। इस धुएं से आंख, नाक, गले व सांस की तकलीफ बढ़ने लगती हैं। चिकित्सकों के अनुसार बच्चों, बुजुर्ग, महिलाओं व छोटे बच्चों को पराली का धुआं बहुत नुकसान पहुंचाता है। इससे सांस लेने में तकलीफ, त्वचा की समस्या, आंखों में जलन और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।