जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) ने शनिवार को अपने नए अध्यक्ष के रूप में पूर्व आर्थिक सुरक्षा मंत्री साने ताकाइची को चुन लिया है। ताकाइची ने कृषि मंत्री शिंजिरो कोइज़ुमी को कड़े मुकाबले में हराया। इस जीत के साथ ताकाइची के देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का रास्ता लगभग साफ हो गया है। कोइजुमी को जापान के सबसे उदारवादी नेताओं में से एक माना जाता है। संसद में अगले हफ्ते होने वाले मतदान में एलडीपी-कोमेइतो गठबंधन के बहुमत के कारण उनकी नियुक्ति तय मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ताकाइची का नेतृत्व न केवल जापान की राजनीति में लैंगिक संतुलन का प्रतीक होगा, बल्कि देश की विदेश नीति और आंतरिक दिशा में भी एक नया अध्याय जोड़ेगा।
पहले दौर के मतदान में ताकाइची को 183 और कोइज़ुमी को 164 वोट मिले। लेकिन किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर तुरंत दूसरे दौर का रनऑफ आयोजित किया गया, जिसमें ताकाइची ने जीत दर्ज की। यह फैसला एलडीपी सांसदों और लगभग दस लाख पंजीकृत सदस्यों के वोटों से हुआ। एलडीपी के इस चुनाव में कुल पांच उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें दो वर्तमान मंत्री और तीन पूर्व मंत्री शामिल थे। शुरुआती दौर में प्रमुख दावेदारों में ताकाइची, कोइज़ुमी और मुख्य कैबिनेट सचिव योशिमासा हायाशी का नाम सबसे आगे माना जा रहा था।
ताकाइची पार्टी की अल्ट्रा-रूढ़िवादी धड़े से आती हैं। अगर वह संसद के मध्य-अक्टूबर में होने वाले मतदान में भी बहुमत हासिल कर लेती हैं तो वह जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बन जाएंगी। वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी कोइज़ुमी चुने जाने पर एक सदी से भी अधिक समय में जापान के सबसे युवा प्रधानमंत्री होते।
वर्तमान प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने सितंबर में इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने जुलाई के संसदीय चुनावों में पार्टी की ऐतिहासिक हार की जिम्मेदारी लेते हुए कदम उठाया। इशिबा ने अक्टूबर 2024 में पदभार संभाला था, लेकिन ऊपरी और निचले सदनों में गठबंधन की बहुमत खोने के बाद पार्टी में बढ़ते असंतोष के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। एलडीपी ने हाल के दिनों में लगातार चुनावी हार झेली है और संसद के दोनों सदनों में अल्पमत में पहुंच गई है। पार्टी अब ऐसे नेता को सामने लाना चाहती है जो जनता का विश्वास वापस जीत सके और विपक्ष के सहयोग से नीतियों को लागू कर सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि सभी उम्मीदवारों ने जानबूझकर विभाजनकारी सामाजिक मुद्दों जैसे लैंगिक समानता, यौन विविधता और ऐतिहासिक विवादों पर खुलकर बात करने से परहेज किया। इसके बजाय उन्होंने महंगाई पर काबू, वेतन वृद्धि, रक्षा और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने तथा विदेशी श्रमिकों पर सख्त नियंत्रण जैसे मुद्दों पर अभियान चलाया।
अमेरिका-जापान संबंधों पर मजबूत पकड़
साने ताकाइची की सबसे बड़ी ताकत मानी जा रही है उनकी अंतरराष्ट्रीय समझ और अमेरिका के साथ गहरे रिश्ते। उन्होंने अपने करियर के शुरुआती दौर में अमेरिका में काम किया और लंबे समय से दोनों देशों के संबंधों पर करीबी नज़र रखती रही हैं। ताकाइची ने कहा है कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ एक मजबूत व्यक्तिगत रिश्ता बना सकती हैं, क्योंकि उनकी नीति ‘जापान फ़र्स्ट’ पर केंद्रित है, जो ट्रंप की ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ नीति से मेल खाती है। साने ताकाइची की सोच यह है कि जापान को अपनी सैन्य और आर्थिक नीतियों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। वे मानती हैं कि जापान को अपनी क्षेत्रीय और वैश्विक भूमिका को मजबूती से स्थापित करना चाहिए। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, ताकाइची की यह नीति अमेरिका के साथ संबंधों को और गहरा बना सकती है, लेकिन यह पड़ोसी देशों के साथ संतुलन साधने की उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी।
एशियाई पड़ोसियों के साथ संबंधों पर विवादित रुख
साने ताकाइची अपने रूढ़िवादी विचारों और द्वितीय विश्व युद्ध की विरासत से जुड़े मुद्दों पर अपने आक्रामक रुख़ के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने कई बार यासुकुनी तीर्थस्थल जाने पर ज़ोर दिया है यह वही स्थान है जहां जापान के युद्ध नायकों की स्मृति में पूजा होती है, लेकिन इसे चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में युद्ध अपराधियों के सम्मान के रूप में देखा जाता है। उनके इस रुख़ से जापान के पड़ोसी देशों चीन और दक्षिण कोरिया के साथ संबंधों में तनाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद ताकाइची को अंतरराष्ट्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए अपने विचारों में कुछ लचीलापन दिखाना होगा, वरना क्षेत्रीय संबंधों पर इसका असर पड़ सकता है।
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