रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरकारी विश्वविद्यालयों में अब किसी भी अधिकारी, शिक्षक या कर्मचारी के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले राज्यपाल से अनुमति लेनी होगी। जांच पूरी होने के बाद अंतिम निर्णय लेने के लिए भी कुलाधिपति की स्वीकृति जरूरी होगी। इस संबंध में लोकभवन से आदेश जारी किया गया है। बता दें कि इस आदेश के बाद छत्तीसगढ़ में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच अधिकारों को लेकर टकराव की स्थिति पैदा हो गई है।
दरअसल अब तक विश्वविद्यालयों में कुलपति स्तर तक राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में रहा है। इसके बाद के अधिकारियों से जुड़े मामलों में राज्य सरकार निर्णय लेती है, लेकिन नई व्यवस्था के तहत कुलसचिव या प्रभारी कुलसचिव के अलावा अब किसी भी अधिकारी, शिक्षक या कर्मचारी के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले राज्यपाल से अनुमति लेना जरूरी हो गया है।

बता दें कि छत्तीसगढ़ में कई ऐसे विश्वविद्यालय हैं, जहां विभागीय जांच जारी है। फिर चाहे वो छत्तीसगढ़ का कृषि विद्यालय बीज घोटाला मामला हो, बिलासपुर स्थित अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय में कथित भ्रष्टाचार का मामला हो या आदर्श महाविद्यालय लोहारकोट में जेम पोर्टल के माध्यम से की गई 1.06 करोड़ों की खरीदी का मामला हो। लोक भवन द्वारा जारी इस नए आदेश के बाद इस तरह के मामलों की जांच प्रक्रिया पर असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
राज्य में संचालित 15 शासकीय विश्वविद्यालयों से जुड़े अधिनियमों का हवाला देते हुए कहा गया है कि राज्यपाल इन विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं। इसी आधार पर निर्देश जारी कर सभी विश्वविद्यालयों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि किसी भी नियुक्ति प्रक्रिया या अनुशासनात्मक कार्रवाई से पहले आवश्यक अनुमोदन लिया जाए। साथ ही जांच के बाद लिए जाने वाले हर अंतिम फैसले में भी कुलाधिपति की स्वीकृति अनिवार्य होगी। इन आदेशों के बाद विश्वविद्यालयों से जुड़े मामलों में सरकार और राजभवन के बीच अधिकारों को लेकर खींचतान के संकेत मिल रहे हैं।

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