मथुरा. गर्लफ्रैंड-बॉयफ्रेंड, लिव इन रिलेशनशिप जैसे कल्चर और युवाओं को लेकर प्रेमानंद महराज जी के दिए बयान का विरोध हो रहा है. इस बीच अब उनका एक नया वीडियो सामने आया है. महराज जी ने कहा कि “शास्त्रों से दूरी है, तो भले-बुरे का ज्ञान कैसे होगा? गंदी नाली के कीड़े गंदगी में ही खुश रहते हैं”. इतना ही नहीं, महराज जी ने आगे कहा कि ‘संतों को उपदेश देने से नहीं रोक सकते. बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड संस्कृति छोड़ो, आचरण सुधारो. जो लोग गंदा आचरण कर रहे हैं, जो गंदे हैं, उन्हीं को बातें बुरी लग रही हैं. बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड बनाना बंद करो आचरणों में सुधार करो, सन्मार्ग की तरफ जाओ.’

बता दें कि महराज जी ने कहा था कि कहा कि आजकल के लड़के-लड़कियों के चरित्र पवित्र नहीं हैं. एक श्रद्धालु ने प्रेमानंद महराजा से सवाल किया कि आज कल के बच्चे चाहे अपने पसंद से शादी करें या हमारे पसंद से, लेकिन दोनों ही स्थिति में परिणाम अच्छे नहीं आ रहे हैं. इस पर महराज ने कहा कि ‘अच्छे आएंगे कैसे, आजकल के बच्चों के चरित्र पवित्र नहीं है.’

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महराज ने आगे कहा कि आज बच्चे बच्चियां कैसे पोशाकें पहन रहे हैं, कैसे आचरण कर रहे हैं. एक लड़के से ब्रेकअप, दूसरे से व्यवहार, फिर दूसरे से ब्रेकअप तीसरे से व्यवहार, व्यवहार व्यभिचार में परिवर्तित हो रहा है. कैसे शुद्ध होगा? मान लो हमें चार होटल में खाने की आदत पड़ गई तो घर की रसोई का भोजन अच्छा नहीं लगेगा. जब चार पुरुष से मिलने की आदत पड़ गई है तो एक पति स्वीकर करने की हिम्मत उसमें नहीं रह जाएगी. ऐसे ही जब लड़का चार लड़कियों से व्यभिचार करता है तो वो अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं हो सकता. क्योंकि उसने चार से व्यभिचार करने की आदत बना ली है.

अच्छी बहू या पति मिलना मुश्किल- प्रेमानंद महराज

प्रेमानंद महराज ने आगे कहा कि हमारी आदतें खराब हो रही हैं, हमारे बच्चों की आदत खराब हो रही है. ये सब जो मोबाइल चल गया है, जो गंदी बातें चल गई हैं, ऐसे में आजकर अच्छी बहू मिलना या अच्छा पति मिलना बहित मुश्किल है. सौ में 2-4 कन्याएं ऐसी होंगी जो अपना पवित्र जीवन रखकर किसी पुरुष को समर्पित होती होंगी. कैसे वो सच्ची बहू बनेगी जो चार लड़कों से मिल चुकी है. जो चार लड़कियों से मिल चुका है वो सच्चा पति बन पाएगा?

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लिव इन रिलेशन पर बोले महराज

प्रेमानंद महराज ने कहा कि हमारे देश में विदेश माहौल घुस गया है. ये लिव इन रिलेशन क्या है? गंदगी का खजाना. अरे हमारे यहां तो जब मुगलों का आक्रमण हुआ तो हमारी माताओं ने जान दे दी लेकिन अपने शरीर को छूने नहीं दिया. हमारे देश में पति के लिए प्राण देने भावना रही है. पत्नियों के प्राण माना गया है, अर्धांगिनी माना गया है. कहां गईं ये भावनाएं? पहले शादी होती थी तो पूरे गांव के देवी-देवताओं की पूजा होती थी. बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता था. अब तो पहले से ही व्यभिचार और गंदे आचरण किए बैठे हैं, क्या जानें उस पवित्र धारा को? क्या मानेंगे पाणिग्रहण को? ये भारत देश है, विदेश नहीं कि आज इसके साथ कल उसके साथ, परसो उसके साथ.