Origin of Chhath Puja: कहते हैं, छठ सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि भगवान सूर्य की उपासना का वह उत्सव है जिसने मानव और प्रकृति के बीच संबंध को सबसे खूबसूरती से जोड़ा. लेकिन क्या आप जानते हैं, इस पर्व की जड़ें त्रेतायुग तक जाती हैं, जब भगवान राम ने स्वयं इसकी परंपरा की नींव रखी थी.

राम-राज्य की स्थापना के बाद, भगवान राम और माता सीता अयोध्या लौटे थे. राज्याभिषेक के छठे दिन सीता माता ने सूर्यदेव की आराधना कर व्रत रखा. उन्होंने उषा यानी सूर्य की किरणों की देवी से प्रार्थना की कि उनके परिवार और समस्त प्रजा पर सदैव प्रकाश और समृद्धि बनी रहे. उसी दिन से इस षष्ठी तिथि को छठ कहा गया और इसे सूर्य उपासना का सबसे पवित्र पर्व माना गया.

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Origin of Chhath Puja
Origin of Chhath Puja

किंवदंती यह भी कहती है कि करुणा की देवी उषा, जिन्हें छठी मइया कहा जाता है, बालक के जीवन की रक्षा करती हैं और मातृत्व का वरदान देती हैं. बिहार और पूर्वांचल में जब महिलाएं नदी किनारे डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं, तो वह केवल सूर्य नहीं, बल्कि उषा और प्रकृति के उस सजीव रूप की पूजा करती हैं जिसने जीवन को गति दी है.

Origin of Chhath Puja. इस बार छठ पर्व 25 अक्टूबर को ‘नहाय-खाय’ से शुरू होगा. 26 अक्टूबर को ‘खरना’ होगा. 27 अक्टूबर को डूबते सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा और 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को उषा अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा. छठ का यह व्रत दर्शाता है कि संयम, शुद्धता और प्रकृति के प्रति समर्पण से मनुष्य ईश्वरीय ऊर्जा को अनुभव कर सकता है. यही कारण है कि बिना किसी मूर्ति या मंदिर के, केवल जल, प्रकाश और संकल्प से यह व्रत पूरा होता है.

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