लखनऊ. जेलकर्मियों को जल्द ही भारी-भरकम 303 (थ्री-नाट-थ्री) राइफल से छुटकारा मिलने वाला है. अब जेलकर्मियों के पास भी पुलिसकर्मियों की तरह ही अत्याधुनिक इंसास राइफल देखने को मिलेगी. जेल विभाग ने इंसास राइफल खरीदने के लिए प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है. बताया जा रहा है कि इसी साल इनकी खरीदी भी शुरु हो जाएगी.
बता दें कि अंग्रेजों के जमाने से प्रयोग की जा रही इस भारी-भरकम राइफल को पुलिस विभाग ने वर्ष 2020 में विदाई दे दी थी. अब खाकी के हाथों में इंसास राइफल है.
प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में हुआ था .303 राइफल का उपयोग
.303 राइफल, ब्रिटिश सेना की एक प्रमुख राइफल है. जिसने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भारत में भारतीय सेना ने इसका उपयोग 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान किया था. इसके बाद इसे विभिन्न राज्य पुलिस बलों को सौंपा गया, लेकिन अब कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में इसका उपयोग बंद हो चुका है. राजस्थान पुलिस ने अपनी सभी .303 राइफल्स को नष्ट कर दिया है.
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.303 राइफल से जुड़े कुछ तथ्य
.303 राइफल की लंबाई लगभग 44.5 इंच होती है और ये .303 इंच के कारतूस का उपयोग करती है. इसकी गोली करीब नौ इंच मोटी लोहे की चादर को भेद सकती है और इसकी मारक क्षमता 750 से 3000 मीटर तक होती है. इसका तेज मोड़ दर इसे उच्च भेदन क्षमता देता है. इस राइफल को स्कॉटिश-अमेरिकी जेम्स पी. ली ने विकसित किया था.
इंसास राइफल
इंसास (इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम) को 1990 में भारतीय सेना ने अपनाया था. इसकी कीमत करीब 81 हजार रुपये है. इंसास में असॉल्ट राइफ़ल और लाइट मशीन गन (एलएमजी) शामिल हैं. इन हथियारों का विकास आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ने किया,और ये आयुध निर्माणी बोर्ड द्वारा निर्मित होते हैं. इंसास की रेंज 100 से 400 मीटर होती है.
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