रायपुर। आज सुबह आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामराजू ज़िले में हुई मुठभेड़ में नक्सल संगठन की एक महिला नक्सल लीडर मारी गई है। वह विशाखापट्टनम ज़िले के पेंडुर्थी मंडल के करकवानीपालेम गांव की रहने वाली थी। करीब ढाई दशक पहले उसने माओवादी विचारधारा को अपनाया और पूर्वी डिवीजन सचिव जैसी अहम भूमिका तक पहुंच गई। मौजुदा समय में अरुणा माओवादी संगठन की सेंट्रल जोनल कमेटी की सदस्य थी और उसपर 20 लाख का इनाम रखा गया था।

अपने से दोगुनी उम्र के नक्सल लीडर से की शादी
अरुणा की ज़िंदगी में बड़ा मोड़ तब आया, जब उसकी मुलाकात संगठन के ताकतवर और उम्र में काफी बड़े माओवादी नेता चलपति से हुई। चलपति का असली नाम जयराम था। वह आंध्र प्रदेश के चिंत्तूर ज़िले के माटेमपल्ली गांव का रहने वाला था और माओवादी केंद्रीय समिति का सदस्य था। उस दौर में चलपति संगठन में इतना ऊपर था कि उसकी सुरक्षा में 10–12 हथियारबंद बॉडीगार्ड तैनात रहते थे। तकनीक से लैस, तेज दिमाग वाला चलपति जब अरुणा के करीब आया, तब दोनों के बीच उम्र भले ही बड़ा अंतर था, लेकिन रिश्तों में गहराई और समर्पण था।
सन 2000–2001 के आसपास दोनों ने जंगल में ही शादी कर ली। इस रिश्ते के कारण चलपति को संगठन ने एक साल के लिए सस्पेंड भी किया, लेकिन दोनों साथ रहे। दोनों ने जंगल में रहते हुए वैवाहिक जीवन जिया।
एक सेल्फी बनी मौत की वजह
पिछले साल सुरक्षा एजेंसियों को एक सेल्फी हाथ लगी, जिसमें अरुणा और चलपति साथ दिखे। यही एक फोटो उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी चूक बन गई। इस साल जनवरी महीने में छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले में चलपति को सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में मार गिराया। तब माना गया कि अरुणा भी उसके साथ थी, लेकिन वह बच निकली।

अब पांच महीने बाद आंध्रप्रदेश के मारडेपल्ली के जंगल में पुलिस और ग्रेहाउंड्स बल के साथ मुठभेड़ में अरुणा भी मारी गई। उसके साथ मारे गए अन्य नक्सलियों में केंद्रीय समिति सदस्य गजराला रवि उर्फ उदय और एसीएम स्तर की महिला नक्सली अंजू का नाम शामिल है।
भाई की मौत, खुद की बीमारी, फिर भी नहीं टूटी
अरुणा का भाई आज़ाद भी नक्सली था और गलीकोंडा एरिया का कमांडर था। 2015 में उसकी भी मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई। अरुणा खुद हाल के वर्षों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही थी, लेकिन फिर भी उसने संगठन नहीं छोड़ा।
चलपति और अरुणा की कहानी किसी फ़िल्म जैसी लगती है, लेकिन यह हकीकत थी। माओवादी विचारधारा, बंदूक और जंगल के बीच उन्होंने अपना जीवन जिया। दोनों कई बार आत्मसमर्पण करने की सोच में रहे, लेकिन आख़िरकार बंदूक छोड़ने का फ़ैसला नहीं कर सके और दोनों का अंत भी एक सा हुआ।
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