रायपुर। हास्य-व्यंग्य की कविताओं से छत्तीसगढ़ को देश-विदेश में पहचान दिलाने वाले पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे के निधन से शोक का माहौल है. उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने आए सुप्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास ने डॉ. सुरेंद्र दुबे से जुड़ी यादों का ताजा करते हुए बताया कि किस तरह से उनसे उनकी पहली मुलाकात हुई थी.

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डॉ. कुमार विश्वास ने बताया कि सुरेंद्र दुबे से उनकी पहली मुलाकात 35 साल पहले 1991 में एक कार्यक्रम में हुई थी. मैने देखा कि कैसे उन्होंने परिश्रम कर बेमेतरा से दुर्ग और फिर दुर्ग से रायपुर आए, और अपनी प्रतिष्ठा बनाई. डॉ. दुबे के निधन का जिक्र करते हुए कुमार विश्वास ने कहा कि यह बहुत हृदयविदारक है, परसों ही मेरी उनके स्वास्थ्य को लेकर बात हुई थी. मुझे आशु ने बताया था कि चाचा सब ठीक है, दो-तीन दिन में छुट्टी मिल जाएगी.

उन्होंने कहा कि हम अभी छत्तीसगढ़ को बिना सुरेंद्र दुबे के महसूस नहीं कर पा रहे हैं. कोई भी बड़ा कवि हो, उनकी आभा मंच पर सुरेंद्र दुबे से नीचे ही रहती है.

डॉ. दुबे के पक्ष-विपक्ष पर आलोचना को लेकर कुमार विश्वास ने कहा कि कवि तो वैसे भी स्वस्थ्य आलोचक होता है. सबसे अच्छी बात है कि वह जिस राजनीतिक दल से जुड़े, उनके बड़े लीडर्स के सामने भी डॉ. दुबे अपनी बात मुखरता से कहते थे. साथ ही यह राजनेताओं की महत्ता है कि वे उसे स्वीकार करते थे. उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने भी अपनी बात बेझिझक रखी थी. 

कुमार विश्वास ने कहा कि सुरेंद्र दुबे का जाना छत्तीसगढ़ के लिए बड़ी क्षति है. मैने उनके साथ अमेरिका, दुबई, शाहजहा और लंदन में कार्यक्रम किया है. एक छोटे से हॉल में, जहां 2 हजार प्रवासीय भारतीय है, हो सकता है कि उनमें केवल 10-15 लोग ही छत्तीसगढ़ के रहे हों, लेकिन वह मंच से छत्तीसगढ़ के बारे में, यहां की भाषा और खान-पान के बारे में जरूर बात करते थे. उनका जाना बड़ी क्षति है, छत्तीसगढ़ को इससे उबरने के लिए वक्त लगेगा.