रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में साफ किया है कि अगर किसी पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के लागू होने से पहले हुई है और पुत्र जीवित है, तो पुत्री को उस संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता.

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जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने कहा कि मिताक्षरा कानून के अनुसार पुरुष की स्व-अर्जित संपत्ति केवल उसके पुरुष वंशजों को ही हस्तांतरित होती है. यदि कोई पुरुष वंशज न हो, तभी वह संपत्ति अन्य उत्तराधिकारियों जैसे- पुत्री को दी जा सकती है.

निचली अदालत का फैसले

सरगुजा जिले के एक परिवारिक विवाद में निचली अदालत के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में द्वितीय अपील दायर की गई थी. विवाद इस बात पर था कि मृत पिता की संपत्ति में पुत्री को अधिकार मिलेगा या नहीं, जबकि पिता की मृत्यु वर्ष 1950-51 में यानी 1956 से पहले हो चुकी थी.

पीठ ने कहा कि जब पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 के लागू होने से पहले हो गई थी और पुत्र जीवित है, तो पुत्री को उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा.

हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि परिवार में कोई पुत्र नहीं है, तो पुत्री ऐसी संपत्ति पर अपना अधिकार जता सकती है. इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि 1956 से पहले हुई मृत्यु की स्थिति में मिताक्षरा परंपरा लागू होगी, जबकि 1956 के बाद की स्थितियों में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे.