Arif Mohammad Khan: आरिफ मोहम्मद खान बिहार के नए राज्यपाल बने हैं. बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को केरल भेजा गया है. इससे पहले 2019 में आरिफ मोहम्मद खानको केरल का राज्यपाल बनाया गया था. राज्यपाल बनाए जाने के बाद से खान का विवादों से गहरा नाता रहा है. शायद ही ऐसा कोई दिन होता था, जब राज्य सरकार और खान के बीच तनातनी खबरें सामने नहीं आई हो, फिर चाहे वह कुलपतियों की नियुक्ति पर असहमति की हो या फिर उनके साथ की गई धक्का-मुक्की की हो.

वाम नेता को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे कन्नूर

हालांकि पश्चिम बंगाल में जगदीप धनखड़ बनाम सीएम ममता बनर्जी की लड़ाई या दिल्ली एलजी वीके सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच खुले विद्वेष के विपरीत, खान ने कई मौकों पर अपने विरोधियों को आश्चर्यचकित भी करते हैं. इस महीने की शुरुआत में जब सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो के सदस्य कोडियेरी बालकृष्णन की मृत्यु हुई, तब खान वरिष्ठ वाम नेता को श्रद्धांजलि देने कन्नूर पहुंचे थे.

मूल तौर पर यूपी के बुलंदशहर के रहने वाले आरिफ मोहम्मद खान के करीबी बताते हैं कि एक राजनेता के रूप यह उनकी विशेषता रही है कि, दशकों लंबे राजनीतिक करियर के दौरान पार्टियों को बदलने में उनकी यही विशेषता काम आयी है. बता दें कि खान कांग्रेस से लेकर जनता दल, बसपा और भाजपा तक में रहे हैं

छात्र राजनीति से की थी शुरुआत

आरिफ मोहम्मद खान ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक छात्र नेता के रूप में की थी. 1970 के दशक की शुरुआत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष और महासचिव रहें. खान के बारे में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने इस्लामी मौलवियों को विश्वविद्यालय में आमंत्रित करने से इंकार कर दिया था. महज 26 वर्ष की उम्र में वह उत्तर प्रदेश के सियाना से जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बने थे.

लखनऊ दंगा के बाद दिया इस्तीफा

खान को जनता पार्टी सरकार में उत्पाद शुल्क, निषेध और वक्फ का प्रभारी उप मंत्री बनाया गया था. लेकिन शिया और सुन्नियों के बीच लखनऊ में दंगा होने के कुछ माह बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. बाद में वह कांग्रेस के इंदिरा गुट में शामिल हो गए. 1980 में एआईसीसी का संयुक्त सचिव रहते हुए खान पहली बार संसद पहुंचे. जल्द ही उन्हें सूचना और प्रसारण के प्रभारी उप मंत्री के रूप में इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में जगह मिली.

शाह बानो मामले में दिया इस्तीफा

राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में एक युवा राज्य मंत्री के रूप में उन्होंने जो रुख अपनाया था, उसकी आज भी चर्चा होती है. सरकार ने शाह बानो मामले में संसद में एक कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था. राजीव गांधी सरकार के इस फैसले के नाराज होकर आरिफ मोहम्मद खान ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

बसपा ज्वाइन कर छोड़ी पार्टी

खान के इस कदम के बाद राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया था. इसके बाद उन्होंने वीपी सिंह से हाथ मिलाया और जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ संसद पहुंचे. वीपी सिंह सरकार का पतन होने के बाद, वह बसपा में शामिल हो गए और उसके महासचिव बने. लेकिन जब यह स्पष्ट हो गया कि पार्टी यूपी में सरकार बनाने के लिए भाजपा से हाथ मिलाएगी, उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के मद्देनजर बसपा से इस्तीफा दे दिया.

आलोचना कर भाजपा में हुए शामिल

हालांकि इतना गतिरोध होने के दो साल बाद खान उसी पार्टी में शामिल हो गए, जिसकी उन्होंने इतनी कड़ी आलोचना की थी. 2004 में मोहम्मद आरिफ खान ने भाजपा के टिकट पर कैसरगंज सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि, तीन साल बाद उन्होंने पार्टी पर यूपी में “दागी” नेताओं को टिकट देने का आरोप लगाते हुए भाजपा छोड़ दिया.

संघ की तरफ से बोलने का आरोप

बतौर केरल राज्यपाल जब भी उनका राज्य सरकार से सामना हुआ, सत्तारूढ़ माकपा के नेताओं ने उन पर संघ की तरफ से बोलने का आरोप लगाया. सीएए से लेकर कृषि कानूनों तक, जब-जब राज्यपाल ने केंद्र का पक्ष लिया, माकपा ने इसे संघ परिवार और वाम मोर्चे का संघर्ष बताया.

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