रायपुर। राजधानी रायपुर के टाटीबंध स्थित शांतिनाथ नगर निवासी संथारा साधिका शांति देवी जी बैद ने आजीवन अनशन व्रत अर्थात जीवित रहते तक अन्न और जल का त्याग कर लिया है। जिसे देखते हुए आज इनके निवास में आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर जी के सान्निध्य में “संथारा अनुमोदनार्थ” का विशेष आयोजन किया गया।

मुनिश्री सुधाकर ने इस दौरान जानकारी देते हुए कहा कि आज हम टैगोर नगर पटवा भवन से प्रस्थान करके टाटीबंध आए हैं। शांति देवी बैद ने संथारा स्वीकार किया है। अनशन व्रत जैन समाज की विशेष साधना है। जिस अनशन व्रत में व्यक्ति आत्मा भिन्न है शरीर भिन्न है की अनुभूति करता हैं, वह आत्मा को अलग समझता है और शरीर को अलग समझता है। एक अवस्था के बाद या किसी लंबी बीमारी या अत्यंत सच्ची भावना से और वैराग्य से थोड़ा सा पहले आत्मकल्याण निमित्त व्यक्ति यह अनशन व्रत स्वीकार करता है।

मुनि सुधाकर ने बताया संथारा और आत्महत्या का अंतर

मुनिश्री सुधाकर ने संथारा के महत्व को समझाते हुए कहा की संथारा और आत्महत्या में अंतर होता है। कई बार यह गलती होती है की संथारा और आत्महत्या को एक मान लिया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। आत्महत्या आवेश और आवेग में होती है, जबकि संथारा तब होता है। जब मन में संसार के प्रति ममत्व के विसर्जन की भावना जागृत होती है, मन में किसी प्रकार की इच्छा नहीं होती है, किसी प्रकार की लालसा नहीं होती है, कोई राग नहीं होता है, कोई द्वेष नहीं होता है, केवल यह अनुभूति का भाव होता है कि शरीर अलग है आत्मा अलग है। जब यह किसी जैन श्रावक को अनुभव हो जाता है कि यह शरीर पोषण के लायक नहीं है। उसे शरीर को अध्यात्म के मार्ग पर धर्म के मार्ग पर, त्याग और वैराग्य मार्ग पर प्रशस्त कर देना चाहिए की भावना जागृत होती है, तब अनशन व्रत को स्वीकार किया जाता है। जिसमें श्रावक आजीवन के लिए अन्न और जल को त्याग देता है।

मुनिश्री ने बताया की शांति देवी बैद ने 9 दिन पूर्व अन्य जल त्याग दिया है। विशेष बात यह है साधना एक दिन में समाप्त नहीं होती है। यह साधना साधना से पूर्व जिसे संलेखना कहते हैं, जो संथारे से पूर्व की जाती है से शुरू होती है। शांति देवी जी 31 बरस से निरंतर एकांतर तप कर रही हैं। यानी एक दिन खाना और एक दिन नहीं खाना यह एक दो बरस नहीं 31 बरस से यह निरंतर करते आ रहे हैं। साथ में करीब 50 वर्ष से वह रात्रि में चौविहार करतें है। सूर्य अस्त होने के बाद यह पानी की एक बुंद और अन्न का एक दाना भी अपने मुंह में नहीं रखते हैं।

मुनिश्री ने कहा कि शांति देवी बैद ने अपने जीवन में अनेक नाना प्रकार की साधनाएं की हैं, तपस्या की है और निरंतर वर्षों से वह साधन तपस्या करते हुए आज यह चरम स्थिति में पहुंची हैं। इनका शरीर ऐसा लगता है जैसे मात्र केवल हड्डियों का ढांचे से बना है। मैने इनसे चर्चा की है उनके विचार इतने पवित्र और निर्मल है जैसे शक्ति योग्य इन्होंने जीवन में ले लिया है। इनकी एक ही भावना है मैं आत्मा का त्याग करूं। इन्होंने आचार्य श्री महाश्रमण के आशीर्वाद से आज से 9 दिन पूर्व अनशन व्रत स्वीकार किया था, उनकी निरंतर जो जागरूकता है जैसे ही इन्हें गुरुदेव के बारे में कुछ बताया जाता है या कुछ कहा जाता है तो वह अपने आप में इन्हें ऐसा लगता है जैसे कोई सोई शक्ति जाग जाती है। मैं शांति देवी बैद की इन संथारा साधना की अनुमोदना करने के लिए आज मै यहां आया हूं।

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