अनिल मालवीय, इछावर। आज के इस आधुनिकता के दौर में जहां मान्यता और परंपराएं तेजी से विलुप्त हो रही हैं. वहीं सीहोर जिले का एक गांव बिसनखेड़ा सालों पुरानी मान्यताओं को आज भी संजोए हुए है. दशकों पहले गांव में की गई शराबबंदी को वहां के लोग परंपरा मानते हुए उसका आज भी कढ़ाई से पालन कर रहे हैं. गांव में न तो शराब बेची जाती है और न ही ग्रामीणों सेवन करते हैं. यहां तक कि मेहमान भी शराब पीकर गांव में प्रवेश नहीं करते हैं.

इतना ही नहीं वहां मांस-मछली का उपयोग भी पूरी तरह से वर्जित है. शायद यही कारण है कि गांव में घरेलू हिंसा के मामले लगभग शून्य है. इसके अलावा खासबात यह भी है कि दुग्ध उत्पादक दूध बेचन में भी परहेज करते हैं. घरेलू उपयोग के अलावा वह दूध का उपयोग मक्खन, मावा, घी आदि बनाने में करते हैं. ग्रामीणों में आपसी सहयोग और सौहार्द्र इस गांव की विशिष्ट पहचान है.

ये है शराबबंदी का कारण

दरअसल, गांव में स्थित देवकावाजर बाबा के मंदिर के कारण वहां शराबबंदी के साथ ही मांस-मछली का उपयोग भी पूरी तरह से वर्जित है. वहां कोई भी व्यक्ति इन चीजों का उपयोग नहीं करता है. इसके अलावा पशुपालक अपनी मवेशियों का दूध बेचने में भी परहेज करते हैं. जो व्यक्ति नियमों का पालन नहीं करता, उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतना पड़ते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. जिसका पालन वह आज भी कर रहे हैं.

सदियों से चली आ रही परंपरा

बुजुर्ग धन सिंह मेवाड़ा, दौलत सिंह और हुकुम सिंह ने बताया कि गांव में मांस और शराब बंदी की शुरुआत कैसे हुई. इस बारे में उन्हें सही जानकारी तो नहीं है, लेकिन कुछ साल पहले कुछ लोगों ने इस रिवाज को तोड़ने का प्रयास किया था. जिसका उन्हें गंभीर परिणाम भुगतना पड़ा. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. जिनका वह भी कढ़ाई से पालन कर रहे हैं.

लगभग न के बराबर है घरेलू हिंसा

यह भी सच है कि गांव में कोई भी व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं और न ही किसी में कोई दिव्यांगता है. यहां तक कि घरेलू हिंसा और अपराधिक मामले भी लगभग न के बराबर है. उन्होंने यह भी कहा कि इसे मानने के लिए किसी समुदाय और पंचायत की कोई बाध्यता नहीं है. बावजूद इसके सभी लोग अपनी स्वेच्छा से इसका पालन कर रहे हैं.

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