Supreme Court On Dowry Case: सुप्रीम कोर्ट ने क्रूरता और अपनी पत्नी की दहेज के लिए हत्या (Murder) करने के मामले में दोषी ठहराये गये व्यक्ति को रिहा कर दिया. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दहेज हत्या के मामले में निचले अदालतों (courts) के फैसले पर टिप्पणी की. पीठ ने कहा कि अधीनस्थ अदालतें ऐसे मामलों में बार-बार एक जैसी गलतियां कर रही हैं.

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मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज की मांग के संबंध में अपनी गवाही के समय पीड़िता की मां ने पति पर किसी प्रकार की क्रूरता या उत्पीड़न का आरोप नहीं लगाया था. कोर्ट ने कहा, ‘‘यह धारा 304-बी का एक अनिवार्य घटक है. साक्ष्यों से यह साबित नहीं होता है…’’

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पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता के विरुद्ध आरोपित दोनों अपराध अभियोजन पक्ष की ओर से संदेह से परे साबित नहीं किये गये. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट और अधीनस्थ अदालत के आदेशों को दरकिनार करते हुए पीठ ने व्यक्ति को बरी कर दिया.

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दरअसल इस दंपति का विवाह 25 जून 1996 को हुआ था और महिला की मौत दो अप्रैल, 1998 को हो गई थी. पोस्टमार्टम के बाद चिकित्सकों ने बताया था कि मौत फांसी लगाने से दम घुटने के कारण हुई. जिसके बाद अपीलकर्ता और उसके माता-पिता पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी (दहेज हत्या) और 498ए (पति या पति के रिश्तेदार की ओर से महिला के साथ क्रूरता करना) तथा धारा 34 के तहत मुकदमा चलाया गया. अधीनस्थ अदालत ने हालांकि उसके माता-पिता को बरी कर दिया और उस व्यक्ति को दोषी ठहराया

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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि इस मामले में ‘‘आवश्यक सामग्री’’ का अभाव है, क्योंकि गवाहों के बयानों में क्रूरता या उत्पीड़न का कोई विशेष उदाहरण नहीं है. अदालत ने कहा, ‘‘इस न्यायालय ने धारा 304बी के तहत अपराध की सामग्री को बार-बार निर्धारित और स्पष्ट किया है लेकिन अधीनस्थ अदालतें बार-बार वही गलतियां कर रही हैं.’’

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