बालोद। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर बालोद में आयोजित कार्यक्रम में व्याख्यान देते हुए प्रदेश के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ एवं अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि वैज्ञानिक ढंग से सोचने, समझने एवं आचरण करने से समाज में वैज्ञानिक जागरूकता का विकास होगा। वैज्ञानिक जागरूकता के विकास से विभिन्न अंधविश्वासों व कुरीतियों का निर्मूलन संभव है। किसी व्यक्ति को अपनी बीमारी, समस्या या असफलता का दोष ग्रह-नक्षत्रों पर न थोपने की बजाय स्वयं की खामियों का विश्लेषण करना चाहिए। कोरोना काल में सावधानी और सतर्कता, गाइडलाइन का पालन करने से देश में कोरोना का संक्रमण जल्द ही नियंत्रण में आया।

डॉ. मिश्र ने कहा कि आमजन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए लगातार कार्यक्रम संचालित करने की आवश्यकता है। किसी भी व्यक्ति को बचपन से ही अक्षर ज्ञान के साथ तर्क सम्मत जानकारी व सामाजिक अंधविश्वासों व कुरीतियों के संबंध में सचेत किया जाना चाहिए। हमारे देश के विशाल स्वरूप में अनेक जाति, धर्म के लोग हैं जिनकी परंपराएँ व आस्थाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन धीरे-धीरे कुछ परंपराएँ अंधविश्वासों व कुरीतियों के रूप में बदल गई हैं, जिनके कारण आम लोगों को न केवल शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है बल्कि ठगी का शिकार भी होना पड़ता है। कुछ चालाक लोग आम लोगों के मन में बसे अंधविश्वासों, अशिक्षा व आस्था का दोहन कर ठगते हैं। उन अंधविश्वासों व कुरीतियों से लोगों को होने वाली परेशानियों व नुकसान के संबंध में समझाकर ऐसे कुरीतियों का परित्याग किया जा सकता है।

विभिन्न सामाजिक व चिकित्सा के संबंध में व्याप्त अंधविश्वासों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि देश के अनेक प्रदेशों में विभिन्न प्रकार के अंधविश्वास प्रचलित हैं, जो न केवल समाज की प्रगति में बाधक हैं बल्कि आम व्यक्ति के भ्रम को बढ़ाते हैं और उसके मन की शंका-कुशंका में वृद्धि करते हैं।

डॉ. मिश्र ने कहा कि काला जादू, डायन जैसी मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं है। अज्ञानता, चिकित्सा सुविधाओं की कमी, जानकारी के अभाव और रूढ़िवादी परंपराओं के कारण इस प्रकार की घटनाएँ घटती हैं। मध्यप्रदेश सहित देश के 17 प्रदेशों में डायन और जादू-टोने का अंधविश्वास बना हुआ है, जहाँ से महिला प्रताड़ना की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। जादू-टोने का कोई अस्तित्व नहीं होता है और सिर्फ अपने अंधविश्वास व भ्रम के कारण किसी की हत्या करना, मारना-पीटना या प्रताड़ित करना गलत, गैरकानूनी और अमानवीय है।

अक्सर जादू-टोने के आरोप में महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। किसी महिला को जादू-टोना करके नुकसान पहुँचाने के संदेह में हत्या या मारपीट कर दी जाती है, जबकि कोई भी नारी टोनही या डायन नहीं हो सकती। उसमें ऐसी कोई शक्ति नहीं होती जिससे वह किसी व्यक्ति, बच्चों या गाँव का नुकसान कर सके। जादू-टोने के आरोप में महिला प्रताड़ना को रोकना आवश्यक है। अंधविश्वासों के कारण होने वाली डायन (टोनही) प्रताड़ना, सामाजिक बहिष्कार, बलि प्रथा जैसी घटनाओं से भी मानव अधिकारों का हनन हो रहा है।

अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों के निर्मूलन के लिए हम पिछले तीस वर्षों से जन-जागरण अभियान चला रहे हैं।

डॉ. मिश्र ने कहा कि कई बार लोग चमत्कारिक सफलता प्राप्त करने की उम्मीद में ठगी के शिकार हो जाते हैं, जबकि किसी भी परीक्षा, साक्षात्कार, नौकरी या प्रमोशन के लिए कठोर परिश्रम व सुनियोजित तैयारी आवश्यक है। तुरंत सफलता के लिए किसी चमत्कारिक अंगूठी, ताबीज, तंत्र-मंत्र या कथित बाबाओं के चक्कर में फँसने की बजाय परिश्रम का रास्ता अपनाना ही उचित है।

उन्होंने कहा कि समाज में जादू-टोना, टोनही आदि के संबंध में भ्रामक धारणाएँ सदियों से चली आ रही हैं, जिनमें किसी भी बीमारी या मुसीबतों का कारण नजर लगने या जादू-टोने को ही माना जाता है, जबकि वास्तव में ऐसी धारणाएँ काल्पनिक हैं, जिनका कोई प्रमाण नहीं है। पहले बीमारियों के उपचार के लिए चिकित्सा सुविधाएँ न होने के कारण लोगों के पास झाड़-फूँक व चमत्कारिक उपचार ही एकमात्र रास्ता था, लेकिन चिकित्सा विज्ञान के बढ़ते कदमों व अनुसंधानों ने कई बीमारियों व संक्रामकों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया है तथा कई बीमारियों के उपचार की आधुनिक विधियाँ खोजी जा रही हैं। बीमारियों के सही उपचार के लिए झाड़-फूँक व तंत्र-मंत्र की बजाय प्रशिक्षित चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

अंधविश्वासों के कारण होने वाली घटनाओं की शिकार आमतौर पर महिलाएँ ही होती हैं। अपनी सरल प्रवृत्ति के कारण वे सहज ही चमत्कारिक दिखाई देने वाली घटनाओं व अफवाहों पर विश्वास कर लेती हैं और ठगी व प्रताड़ना की शिकार होती हैं। भगवान दिखाने के नाम पर रुपये व गहने दुगुना करने के नाम पर ठगी की जाती है। अंधविश्वास एवं सामाजिक कुरीतियों के निर्मूलन व सामाजिक जागरण में स्थानीय नागरिक भी अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं। उन्हें अपने आस-पास के लोगों को इस संदर्भ में विज्ञान सम्मत जानकारी देनी चाहिए।

कार्यक्रम में प्राचार्य अरुण साहू, बी. एन. योगी (समन्वयक), मिश्रा (प्राचार्य, गुंडरदेही), बलराम साहू (प्राचार्य, शासकीय विद्यालय), सुखदेवे (शासकीय उ. मा. विद्यालय) सहित गणमान्य नागरिक व स्कूली छात्र उपस्थित रहे।

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