Holi Special: देश भर में होली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। रंगों की मस्ती, गुलाल की बारिश और ढोल-नगाड़ों की गूंज से हर कोई नाचने लगता है। लेकिन मध्य प्रदेश का एक गांव ऐसा भी है, जहां बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक होली खेलना तो दूर, उसका नाम तक कोई नहीं लेता। अब ऐसा क्या कारण है यह तो खबर पढ़कर ही समझ आएगा। तो आइए जानते हैं यह राज।

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हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के खरगोन के चोली गांव की। जहां छोटे से लेकर बड़ों तक कोई होली नहीं खेलता। यह गांव अपने अनोखे रीति रिवाजों और परंपराओं के लिए जाना जाता है। जहां एक ओर देश भर में होली के दिन रंगों की मस्ती, ठंडाई-भांग, गुलाल की बारिश से हर कोई रंगों में डूब जाता है, वहीं इस गांव में होली के एक दिन बाद होली खेलने का रिवाज है।

दरअसल, यह परंपरा कई सदियों से इस गांव में चली आ रही है। जिसे लोग बखूबी से निभा भी रहे हैं। बताया जाता है कि, होली दहन के बाद अगले दिन धुलंडी के दिन यहां कोई भी एक दूसरे पर रंग नहीं डालता और न रंग को हाथ लगाता है। पूरे गांव में शांति छाई रहती है। वहीं अगले दिन होली का शोरगुल सुनाई देता है और लोग जमकर होली खेलते है।

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जानकारी के अनुसार, विंध्याचल पर्वत की तलहटी में बसा चोली गांव, अपने सिद्ध मंदिरों और ऐतिहासिक धरोहरों के साथ-साथ अपने रीति रिवाजों और परंपराओं के लिए भी देश भर में जाना जाता है। इस गांव को देवों की नगरी देवगढ़ भी कहा जाता है। होली के दिन भी जब पूरा देश रंग में झूम रहा होता है, तब इस गांव में शांति छाई रहती है। यहां के निवासी बताते हैं कि, गांव में होली एक दिन बाद मनाने का चलन है। जिसमें समाज के सभी लोग एकत्रित होकर उन परिवारों के घर जाते हैं, जिनके घर में पूरे साल में कोई शोक हुआ हो। उन्हें गुलाल लगाया जाता है। इसके बाद उन्हें शुभकामना देते हैं।

बतादें कि, इस गांव में यदुवंशी-ठाकुर समाज के लगभग 700 परिवार रहते हैं। जो आज के बदलते दौर में भी पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपराओं को धरोहर मानकर निभा रहे है।

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