अजयारविंद नामदेव, शहडोल। जिले की 391 ग्राम पंचायतों में सचिवों की तबादला सूची तैयार हो चुकी है, लेकिन अंतिम मुहर से पहले ही सत्ता की गलियों में सिफारिशों की गूंज सुनाई देने लगी है। इस बार पंचायत सचिवों के तबादले महज़ प्रशासनिक कवायद नहीं, बल्कि राजनीतिक दखल और संगठन की साख का प्रदर्शन बनते जा रहे हैं। 81 पंचायत सचिवों की कुर्सी को लेकर शहडोल की राजनीति में जैसे शतरंजी बिसात बिछ चुकी है, जिसमें हर कोई अपनी-अपनी चाल चल रहा है।

नेताओं और खद्दरधारी दखल के बीच सिफारिशों की बाढ़

ग्राम पंचायतें भले ही विकास की पहली इकाई हों, लेकिन सचिवों की नियुक्ति अब ग्राम हित से ज़्यादा सियासी हितों पर निर्भर नजर आ रही है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की गाइडलाइन एक ओर, तो दूसरी ओर जनप्रतिनिधियों, नेताओं और खद्दरधारी दखल के बीच सिफारिशों की बाढ़ सी आ गई है। जिला प्रशासन ने सूची भले ही तैयार कर ली है, परंतु अंतिम आदेशों से पहले ही मनमाफिक पंचायत की होड़ शुरू हो गई है।

जिला अध्यक्ष सहित विधायक सबसे आगे सांसद सबसे पीछे

इस तबादला संग्राम में सबसे आक्रामक मोहरे के रूप में सामने आए हैं ब्यौहारी विधायक शरद कोल, जिन्होंने अकेले 21 सचिवों के तबादले की सिफारिशें कर डालीं, वहीं जैतपुर विधायक जयसिंह मरावी ने 17 और जयसिंहनगर विधायक मनीषा सिंह ने 16 सिफारिशें देकर पीछे-पीछे कदमताल किया, जिले में भाजपा का संगठन मानो सचिवों की नियुक्ति में किंग मेकर की भूमिका निभा रहा है।

सिर्फ एक ही नाम की सिफारिश

भाजपा जिलाध्यक्ष अमिता चपरा के 10 सिफारिशी पत्र चर्चा का विषय बने हुए हैं। संगठन का असर इतना कि विरोधी दलों की सिफारिशें या तो पहुंच ही नहीं सकीं या फिर सीधे रद्दी की टोकरी में डाल दी गईं। दिलचस्प बात ये रही कि केशवाही मंडल अध्यक्ष ने तो जिला स्तर पर दखल देकर अपनी पसंद के सचिव की नियुक्ति सुनिश्चित करवा ली, संसदीय क्षेत्र की सांसद हिमाद्री सिंह इस सिफारिशी दौड़ में कहीं पीछे रह गईं और सिर्फ एक ही नाम की सिफारिश की है।

जनपद अध्यक्ष भी पीछे नहीं

बुढ़ार जनपद की अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने भी क्रमशः 6 और 2 सचिवों की सिफारिशें भेजी हैं, जिससे साफ है कि सचिवों की कुर्सी अब विकास नहीं, बल्कि प्रभाव और पहुंच का आईना बनती जा रही है। शहडोल में पंचायत सचिवों के तबादले अब सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि सत्ता, संगठन और सिफारिशों की जंग का मैदान बन गए हैं। अब देखना ये है कि कौन बनेगा किस पंचायत का राजपुरुष, और किसकी सिफारिश पर प्रशासनिक गाइडलाइन भारी पड़ेगी।

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