पटना। बिहार में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सियासी हलचल तेज होती जा रही है। केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान एक बार फिर चर्चा में हैं। विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना को लेकर लगातार अटकलें लगाई जा रही हैं। चिराग खुद भी इस बात के संकेत दे चुके हैं कि उन्हें केंद्र की राजनीति से ज्यादा बिहार की सियासत में रुचि है। अब उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नगर विकास मंत्री जीवेश मिश्रा को पत्र लिखकर अपनी ही एनडीए सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए हैं।

मुख्यमंत्री को लिखा मुआवजा प्रक्रिया पर सवालों भरा पत्र

चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेजे गए पत्र में सड़क दुर्घटनाओं में पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिए जाने की संशोधित प्रक्रिया को कठघरे में खड़ा किया है। पत्र में उन्होंने लिखा, हाल ही में सरकार द्वारा मुआवजा प्राप्ति की प्रक्रिया में जो बदलाव किए गए हैं, वे जनता के लिए बेहद जटिल और पीड़ादायक साबित हो रहे हैं। पहले जिलाधिकारी या अनुमंडल पदाधिकारी के माध्यम से तुरंत राहत मिल जाती थी, लेकिन अब परिवहन विभाग के जरिए वाहन मालिक या इंश्योरेंस कंपनी से राशि वसूली की जटिल प्रक्रिया अपनाई जा रही है।

पीड़ितों को तत्काल राहत नहीं मिल रही

चिराग ने इस प्रक्रिया को तकनीकी और समय लेने वाला बताते हुए कहा कि इससे पीड़ित परिवारों को तत्काल राहत नहीं मिल पा रही है। दुर्घटना झेल रहे परिवार मानसिक और आर्थिक संकट में होते हैं। ऐसे समय में यह जटिलता अमानवीय और असंवेदनशील प्रतीत होती है।

उपेक्षा का आरोप वाला पत्र

इसी क्रम में चिराग पासवान ने बिहार के नगर विकास मंत्री एवं भाजपा नेता जीवेश मिश्रा को भी पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने नगर विकास विभाग पर हाजीपुर शहर की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है। चिराग ने लिखा कि हाजीपुर की सड़कों की हालत बेहद खराब है, जिससे आमजन को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है। उन्होंने सड़कों की मरम्मत और नगर विकास कार्यों में तेजी लाने की मांग की है।

क्या है इसके पीछे सियासी संदेश?

चुनाव से पहले इस तरह मुख्यमंत्री और बीजेपी मंत्री को सार्वजनिक रूप से पत्र लिखना राजनीतिक हलकों में कई सवाल खड़े कर रहा है। क्या चिराग पासवान अपने तेवर दिखाकर एनडीए में अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित करना चाहते हैं या वे आने वाले चुनाव में खुद को मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं?

यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए में इस कदम को किस रूप में लिया जाता है और आगामी चुनावी रणनीति में इसका क्या असर पड़ता है।