पुष्पेंद्र सिंह, दंतेवाड़ा. बोधघाट जल विद्युत परियोजना के नाम पर 56 गांव की जनभावनाओं की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए ग्रामीणों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. बोधघाट संघर्ष समिति के बैनर तले हितालकूडूम गांव में सैकड़ों ग्रामीणाें ने बैठक कर आगे की रणनीति बनाई. ग्रामीणों ने इस परियोजना का विरोध करते हुए कहा कि जान दे देंगे पर जमीन नहीं देंगे. बैठक में ग्रामीणों ने उग्र आंदोलन का फैसला लिया है.
बोधघाट परियोजना बस्तर की इंद्रावती नदी पर आधारित एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसकी शुरुआत 1980 में हुई थी. इसका प्रारंभिक उद्देश्य बिजली उत्पादन था, लेकिन बाद में इसमें सिंचाई को भी शामिल किया गया. इस परियोजना शुरू होने के बाद 3.7 लाख हेक्टेयर सिंचाई, 125 MW बिजली, 4,824 टन मत्स्य उत्पादन व लगभग 7 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षेत्र का विस्तार होने की बात सरकार कर रही है. इस परियोजना में लगभग 29000 करोड़ रुपए अनुमानित खर्च होंगे. पिछली कांग्रेस सरकार में भी इस परियोजना के सर्वे के नाम पर जमकर पैसा खर्च हुआ पर जनविरोध के चलते काम रुक गया. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक सरकार विस्थापन नीति नहीं बनाएगी और क्षेत्रीय ग्रामीणों का विश्वास नहीं जीतेगी तब तक इस परियोजना का काम शुरू नहीं होने देंगे.


10 हजार हेक्टेयर से ज्यादा वन और निजी भूमि प्रभावित होगी
पूर्व में हुए सर्वे के अनुसार, प्रोजेक्ट से 5407 हेक्टेयर वन भूमि, 5010 हेक्टेयर निजी भूमि और 3068 हेक्टेयर राजस्व भूमि मिलाकर 13783 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हो रही है. 56 गांव पूरी तरह प्रभावित होंगे. इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि डूबान क्षेत्र और बांध को मिलाकर 50 लाख से ज्यादा पेड़ खत्म होंगे. हालांकि इसकी भरपाई के लिए अलग से प्रोजेक्ट बनाकर काम करने की बात कही गई है.
500 मेगावॉट होगा बिजली का उत्पादन
इंद्रावती बस्तर की सबसे प्रमुख नदी है. यह ओडिशा में करीब 174 किमी बहने के बाद छत्तीसगढ़ पहुंचती है. बस्तर में यह 234 किमी बहती है. पहले हुए सर्वे के मुताबिक, इंद्रावती नदी सालाना 290 TMC पानी गोदावरी नदी में छोड़ती है. इस पानी का कोई उपयोग न तो कृषि के लिए हो रहा है और न बिजली उत्पादन के लिए. पानी को रोकने के लिए बांध सिर्फ आधा दर्जन जगहों पर छोटे-छोटे एनीकट हैं. इस प्रोजेक्ट से इंद्रावती नदी के व्यर्थ बह रहे पानी का उपयोग होगा और 500 मेगावॉट बिजली का उत्पादन भी होगा.
जानिए बोधघाट परियोजना के बारे में
- जगदलपुर से करीब 100 किमी दूर इंद्रावती नदी पर पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1979 में पावर प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी.
- गीदम से करीब 20 किमी अंदर बारसूर में बोगदा पहाड़ के पास यह बांध बनना है.
- नदी के दोनों तरफ के दो पहाड़ों को जोड़कर 855 मीटर लंबा और 90 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाना है.
- 1950 में इंद्रावती नदी पर बोधघाट जल विद्युत परियोजना की कल्पना की गई थी.
- फिर 1979 में विज्ञान और तकनीकी विभाग से पर्यावरण के लिए मंजूरी मिली.
- 1983 में भारत सरकार ने विश्व बैंक से आर्थिक मदद के लिए प्रस्ताव भेजा.
- 1984 में वाशिंगटन में विश्व बैंक और भारत सरकार के बीच आधिकारिक चर्चा हुई.
- 1985 में विश्व बैंक ने 300.4 मिलियन डॉलर (करीब 360 करोड़) सहायता की मंजूरी दी.
- 1986 में तत्कालीन केंद्रीय वन सचिव टीएन शेषन ने पर्यावरण के संबंध में आपत्तियां उठाईं.
- 1988 में विश्व बैंक ने फॉरेस्ट अड़ंगे के कारण वित्तीय सहायता स्थगित कर दी और काम बंद कर दिया गया.
- 2004 में काम फिर शुरू हुआ, लेकिन नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र में होने के कारण काम आगे नहीं बढ़ सका.
- 2014 में बेंगलुरु की कंपनी ने काम शुरू किया, लेकिन स्थानीय विरोध के चलते वह भी भाग गई.
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